जैसी आशंका थी वैसा ही हो रहा है। असम में 40 लाख लोगों को बांग्लादेशी घुसपैठिया मानकर राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर से बाहर करने को लेकर संसद में हंगामा शुरू हो गया। सत्ता पक्ष और विपक्ष में गर्मागर्मी के बीच सदन को स्थगित करने की नौबत आ गई। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यसभा में काँग्रेस और अन्य विपक्षी दलों पर जोरदार हमला बोलते हुए याद दिलाया कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर ये सब किया गया जिसका आश्वासन स्व. इंदिरा गांधी ने दिया था और बाद में स्व. राजीव गांधी ने असम समझौते के अंतर्गत ये तय किया कि एक निश्चित तारीख को आधार बनाकर अवैध बांग्ला देशी घुसपैठियों की पहिचान कर उन्हें निकाल बाहर किया जावेगा।
विपक्ष इसे भाजपा की वोट बैंक राजनीति से जोड़ रहा है क्योंकि जिन 40 लाख लोगों के नाम नागरिकता रजिस्टर में नहीं हैं उनमें से कुछ अपवाद छोड़कर शेष सभी मुसलमान जो हैं। उधर सर्वोच्च न्यायालय ने भी प्रारूप पर अमल के पहले उन 40 लाख लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने हेतु समुचित अवसर दिए जाने के निर्देश भी दे दिए। इसके पहले ही संसद में गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी तदाशय का आश्वासन दे चुके थे किंतु विपक्ष को चिंता ये है कि भाजपा इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाकर ध्रुवीकरण करने में कामयाब हो सकती है। राजनाथ सिंह द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताने संबंधी बयान देकर भी ये इशारा कर दिया गया कि भाजपा की नीति और लक्ष्य दोनों पूर्णत: स्पष्ट हैं।
इस मसले में एक बात और ध्यान देने वाली है कि असम के कांग्रेसी नेता और समर्थक बांग्ला देशी घुसपैठियों को निकाल बाहर करने के पक्ष में हैं क्योंकि उनकी वजह से उत्पन्न समस्या का वे भी अनेक दशकों से सामना कर रहे हैं। वैसे 1971 के बांग्ला देश युद्ध के काफी पहले से असम में अवैध घुसपैठ होती रही लेकिन वोट बैंक के लालच में तत्कालीन शासकों ने उसे नजरअंदाज किया। लेकिन इस समूचे विवाद में सबसे आपत्तिजनक प्रतिक्रिया गत दिवस बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी की ओर से आई।
उन्होंने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के ताजा प्रारूप के लागू होने पर देश में गृहयुद्ध छिडऩे जैसी आशंका व्यक्त कर 40 लाख घुसपैठियों को एक तरह से रास्ता दिखा दिया। एक राज्य का निर्वाचित मुख्यमंत्री अपनी संवैधानिक हैसियत को भूलकर इस तरह की बात करे तो उसे पद पर रहने का कोई अधिकार नहीं है। ममता के कहने का आशय तो यही लगाया जाएगा कि 40 लाख लोगों को नागरिक न मानते हुए अवैध घुसपैठियों की श्रेणी में रखने पर वे बगावत कर देंगे। लेकिन प्रश्न ये भी उठता है कि उनके समर्थन में खड़ी हुईं सुश्री बैनर्जी भी क्या गृहयुद्ध की स्थिति में उनके साथ रहेंगी?
सवाल और भी हैं लेकिन संसद में ममता के गृहयुद्ध संबंधी बयान का संज्ञान लिया जाना जरूरी है क्योंकि एक राज्य का मुख्यमंत्री किसी नीतिगत मामले में गृहयुद्ध की धमकी दे तो ये संघीय ढांचे के लिए बड़ा खतरा है जिसका असर देश की एकता पर पड़े बिना नहीं रहेगा। यहां ये कहना उपयुक्त रहेगा कि बंगाल में लगभग चार दशक के शासन में गृहयुद्ध जैसी धमकी तो वामपंथी शासक भी नहीं दे सके जिनका चीन प्रेम जगजाहिर था। ममता बैनर्जी हमेशा गुस्से में रहती हैं। हो सकता है ऐसा वे जानबूझकर करती हों। केंद्र सरकार से उनका छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है। प्रधानमंत्री उन्हें फूटी आँखों नहीं सुहाते। बंगाल में भाजपा के उभार से बौखलाहट में उनका मुस्लिम तुष्टीकरण, कांग्रेस और मुलायम सिंह यादव को भी मात दे रहा है लेकिन 40 लाख बांग्ला देशी घुसपैठियों की नागरिकता खत्म होने की संभावना पैदा होते ही वे गृहयुद्ध की धमकी देने लगें ये किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है।
होना तो ये चाहिए कि संसद में सभी दल अपने मतभेद दरकिनार करते हुए ममता के सन्दर्भित बयान की जोरदार शब्दों में निंदा करें। जो व्यक्ति देश का प्रधानमन्त्री बनने की कोशिश कर रहा हो वह गृहयुद्ध जैसी धमकी दे इससे ज्यादा निंदनीय और क्या होगा? हमेशा मेरी मुर्गे की डेढ़ टांग की कहावत पर अमल करने के लिए विख्यात ममता का ताजा बयान देश की एकता और आंतरिक सुरक्षा के लिए बेहद नुकसानदेह है। वैसे भी काफी समय से उनका मुस्लिम प्रेम तमाम सीमाएं लांघ चुका है। उनकी नीतियों के चलते बंगाल में साम्प्रदायिक दंगों का भयावह रूप भी सामने आया है। लेकिन असम के 40 लाख अवैध बांग्ला देशी घुसपैठियों की पहिचान होने से आक्रोशित होने पर गृहयुद्ध जैसा बयान देना या तो उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ाने का प्रमाण है या फिर वे अपने राजनीतिक हित साधने के लिए देश के हितों की बलि चढ़ाने पर आमादा हैं।
ममता बैनर्जी द्वारा जो धमकी दी गई उसकी पूरे देश में कड़ी निंदा होनी चाहिए। विपक्षी एकता का राग अलापने वाली नेत्री को ये नहीं भूलना चाहिए कि राष्ट्रीय एकता उससे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है और जो भी व्यक्ति या राजनीतिक दल इसके विरुद्ध बोले या काम करे उसकी देशभक्ति पर सन्देह किया जाना गलत नहीं होगा। बेहतर होगा सभी राजनीतिक दल ममता बैनर्जी के गृहयुद्ध संबंधी बयान पर उन्हें आढ़े हाथों लें वरना अवैध बांग्ला देशी घुसपैठियों के वोट हासिल करने के फेर में वे देशविरोधी ताकतों को देशप्रेमी होने का प्रमाणपत्र बाँटने लगें तो आश्चर्य नहीं होगा।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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