Tuesday 21 August 2018

ताकि भविष्य में ऐसे नुकसान से बचा जा सके ....

केरल में हुए जल प्रलय को गंभीर आपदा घोषित कर दिया गया । अब इस राज्य को केंद्रीय स्तर पर आपदाग्रस्त मानकर राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से मदद दी जावेगी । प्रधानमन्त्री ने बाढ़ का हवाई अवलोकन करने के बाद 500 करोड़ की राशि राज्य सरकार को प्रदान की थी । उसके पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी 100 करोड़ देने का ऐलान किया था । विभिन्न राज्यों की तरफ  से भी इस आपदा में केरल के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए जो राशि दी गई उसे मिलाकर देखें तो तकरीबन 1 हज़ार करोड़ केरल को प्राप्त हो चुके हैं । देश-विदेश से सहायता की खबरें आ रही हैं । उद्योगपतियों और अभिनेताओं ने भी दरियादिली दिखानी शुरू कर दी है। विभिन्न समाजसेवी संगठन केरलवासियों पर आई अभूतपूर्व मुसीबत में उनके साथ खड़े होने आगे आ रहे हैं । रास्वसंघ एवं सिख समाज के स्वयंसेवक न सिर्फ  मुसीबत में फंसे लोगों को निकालकर सुरक्षित स्थानों तक पहुंचा रहे हैं अपितु उनके लिए भोजन, वस्त्र, दवाई इत्यादि की व्यवस्था भी कर रहे हैं । सेना के तीनों अंगों और अर्धसैनिक बलों के जवान जिस समर्पित भाव से राहत और बचाव के अभियान में दिन रात जुटे हैं उसकी प्रशंसा के लिये तो शब्द भी कम पड़ जाएंगे । कल से इन्द्रदेव का प्रकोप कुछ कम होने से थोड़ी राहत अनुभव की जा रही है लेकिन जिस बड़े पैमाने पर तबाही हुई है उसने इस तटवर्ती राज्य को कम से कम 10 साल पीछे धकेल दिया है । देश के सबसे सुशिक्षित राज्य के तौर पर प्रतिष्ठित केरलवासी पूरी दुनिया में फैले हैं । खाड़ी देशों में तो उनकी भरमार है ही , देश का कोई भी ऐसा दफ्तर और अस्पताल नहीं होगा जहां केरल का प्रतिनिधित्व न हो । केरल के विकास और समृद्धि में इन प्रवासियों की महती भूमिका है । आज भी केरल की अर्थव्यव्यस्था को मजबूत आधार देने में प्रवासियों द्वारा भेजे जाने वाले पैसे का बड़ा योगदान है । पर्यटन केंद्र के तौर पर भी ये राज्य काफी अग्रणी है । प्राकृतिक सौंदर्य और सर्वत्र बिखरी हरीतिमा ने इसे पर्यटकों का स्वर्ग बना दिया था । लेकिन बीते कुछ दिनों में केरल की समूची समृद्धि और सौंदर्य प्रकृति के कोप की भेंट चढ़ गए। अभी नुकसान का आकलन होना शेष है । बाढ़ पूरी तरह उतर जाने के बाद ही ये पता चल सकेगा कि कुल क्षति कितने की है ? लेकिन केवल रुपए भेजने मात्र से केरल का पुनरूद्धार नहीं हो सकेगा क्योंकि जिस पैमाने पर बर्बादी हुई है उससे उबरने में बरसों लग जाएंगे । फिलहाल तो बचाव और राहत के बाद लोगों के पुनर्वास की समस्या से जूझना होगा । लाखों लोग ऐसे हैं जिनका सब कुछ तबाह हो गया । ऐसे लोगों की जि़न्दगी को दोबारा पटरी पर लाना बहुत बड़ा काम होगा जिसके लिए हर तरह की सहायता की जरूरत पड़ेगी । देश इसके पहले भी ऐसी आपदाओं का सामना कर चुका है । भूकम्प, बाढ़, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं में जिस हिम्मत और संवेदनशीलता का परिचय देशवासियों ने दिया उसके आधार पर ये कहा जा सकता है कि केरल इस विनाशलीला से उबर जाएगा लेकिन बुद्धिमत्ता इसी में है कि इस हादसे से कुछ सीख ली जाए । जानकारों ने इस त्रासदी के लिए बड़े पैमाने पर किये गए अवैध और बेतरतीब निर्माणों को भी जिम्मेदार माना है । ये समस्या कमोबेश पूरे देश की है । जब इस तरह की मुसीबत आती है तब उसके कारणों और निदान की भी चर्चा होती है किन्तु वह केवल बुद्धिविलास तक सीमित रहने से उनकी पुनरावृत्ति को रोकना कठिन होता है । केरल छोटा सा राज्य है । वहां जनसंख्या के अनुपात में भूमि की उपलब्धता अपेक्षाकृत कम है । बीते कुछ दशक के दौरान खाड़ी देशों में कार्यरत केरलवासियों ने बड़े पैमाने पर जो धन भेजा उसने गांव -गांव में पक्के मकान बनवा दिए । अतिक्रमण के कारण इस राज्य की प्राकृतिक भौगोलिक संरचना भी प्रभावित हुई। इस वर्ष जो हुआ वह सौ साल बाद हुआ बताया जा रहा है लेकिन तब और अब में काफी फर्क है । तब राहत और बचाव के इतने साधन नहीं थे । बावजूद उसके आपदा प्रबंधन यदि अपर्याप्त साबित होकर रह गया तब  ये विचारणीय प्रश्न है कि क्या विकास की अंधी दौड़ हमें विनाश के रास्ते पर तो नहीं ले जा रही? प्राकृतिक आपदाएं सदैव आती रही हैं और अपनी संघर्षशीलता के कारण मानवजाति दोबारा सृजन भी करती रही है किंतु बढ़ती आबादी के कारण अब जान-माल का नुकसान पहले की तुलना में कहीं ज्यादा होता है। ये देखते हुए समय की मांग है कि इस के बाद का पुनर्निर्माण ऐसा हो जिससे दोबारा कभी वैसा होने पर नुकसान पूर्वापेक्षा कम हो। केरल में बाढ़ का पानी उतरने के बाद संक्रामक रोग फैलने का खतरा भी बड़ी समस्या के तौर पर सामने आएगा । वहां के निजी और सरकारी चिकित्सालयों में दवाईयों की उपलब्धता मांग के अनुपात में बेहद कम है। ऐसे में जरूरी है कि जो भी लोग वहां सहायता भेज रहे हों वे जरूरतों को ध्यान में रखकर वैसा करें। 130 करोड़ की जनसँख्या वाला ये विशाल देश केरल पर आई इस विनाशकारी आपदा में एकजुट होकर मदद हेतु तैयार है । राष्ट्रीय विपदा के समय राष्ट्रीय एकता का भी प्रगटीकरण जमकर होता है किंतु विश्वशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत में न सिर्फ  विश्वस्तरीय आपदा प्रबंधन की जरूरत है बल्कि ये भी देखने वाली बात होगी कि विनाश के बाद जो पुनर्निर्माण हो वह भविष्य को ध्यान में रखकर किया जावे । इस संबंध में जापान एक बढिय़ा उदाहरण है जहां भूकम्प रोजमर्रे की बात है किंतु लंबे समय तक उसकी त्रासदी भोगने के बाद वहां रिहायशी मकान इस डिजायन के बनाये जाने लगे जो पूरी तरह भूकंपरोधी हैं । अब वहां भूकम्प के झटके भयभीत नहीं करते। न सिर्फ  केरल अपितु उत्तराखंड सहित उन सभी इलाकों में जहाँ हाल ही के वर्षों में प्रलयंकारी विपदाएं आ चुकी हैं, पुनर्निर्माण का कार्य इस तरह किया जाए जिससे भविष्य में इस तरह की विपदाओं में इतने बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति न हो । 21 वीं सदी के भारत में अब नई सोच का विकास जरूरी है। प्राकृतिक आपदाएं तो आती रहेंगी किन्तु उनसे निबटने के लिए जो इंतजाम हों वे इस तरह के रहें जिससे कि विकास के नाम पर हासिल की गईं उपलब्धियों पर पलक झपकते पानी न फिर जाए । केरल की बाढ़ निश्चित रूप से एक बड़ी क्षति है किंतु उसे एक सबक के रूप में लिया जाए तो भविष्य में ऐसी ही विपदाओं से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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