Thursday 16 August 2018

दूसरी पारी की तैयारी पर केंद्रित भाषण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत दिवस लालकिले की प्राचीर से पांचवीं बार देश को सम्बोधित किया । उनकी सरकार का कार्यकाल चूंकि अगले वर्ष मई में समाप्त होने वाला है इसलिए उनके भाषण में चुनावी झलक खुलकर दिखाई दी जो निश्चित रूप से उनके विरोधियों को नागवार गुजरी । 82 मिनिट के धाराप्रवाह भाषण के दौरान श्री मोदी ने बीते साढ़े चार साल की उपलब्धियों के साथ भविष्य की रूपरेखा भी प्रस्तुत की । पूर्ण आत्मविश्वास और जोशोखरोश के साथ बोलते हुए उन्होंने देश को ये एहसास कराने की भरपूर कोशिश की कि उनकी सरकार ने 2014 में मिले ऐतिहासिक जनादेश का पूरी तरह सम्मान किया और इस आधार पर उसे एक अवसर और दिया जाना देशहित में होगा । प्रधानमंत्री ने जो उपलब्धियां गिनाईं वे वास्तविकता की कसौटी पर कितनी प्रामाणिक हैं ये तो मतदाता ही तय करेंगे किन्तु इतना तो कहा ही जा सकता है कि श्री मोदी ने प्रधानमंत्री पद को जीवंत तो किया ही है । कल उनके भाषण के बाद एक टीवी चैनल पर बहस  के दौरान उनके विरोधी कहे जाने जाने वाले योगेंद्र यादव ने भी माना कि लालकिले से डॉ. मनमोहन सिंह का भाषण सुनते समय उन्हें नींद आ जाती थी जबकि मोदी जी उन्हें जगाए रखते हैं । यद्यपि उन्होंने श्री मोदी के भाषण की आलोचना करते हुए उनमें आत्मविश्वास की कमी पाई लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री ने अवसर का लाभ लेते हुए देश और दुनिया को जिस अंदाज में सम्बोधित किया उससे लगा कि वे एक सक्रिय और शक्तिशाली नेता हैं जिसके पास अपने कामों की पूरी-पूरी जानकारी होने के साथ मस्तिष्क में भविष्य का चित्र भी है । लोकतंत्र में जनता ही सर्वोच्च निर्णायक होती है इसलिये मोदी सरकार के मूल्यांकन के लिए आगामी लोकसभा चुनाव तक रुकना होगा किन्तु दूसरी तरफ  ये भी उतना ही सच है कि गठबंधन के इस दौर में चुनाव जाति , धर्म और क्षेत्रीयता पर जिस तरह केंद्रित होते जा रहे हैं उसकी वजह से कोई अनुमान लगाना जल्दबाजी होती है और फिर अशिक्षा की वजह से मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग मुख्य मुद्दों की अनदेखी करने की हद तक चला जाता है जिसका सबसे अच्छा उदाहरण 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का पराभव था जिसने लगभग सभी मोर्चों पर अच्छा काम किया था । उस लिहाज से  2019 में 2014 को दोहराए जाने की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती लेकिन इतना तो मानना ही पड़ेगा कि अपने पूर्ववर्ती डॉ. मनमोहन सिंह की तुलना में श्री मोदी में जबरदस्त निर्णय क्षमता और दृढ़ता है । इसका कारण शायद ये है कि फिलहाल भाजपा में कोई और शक्ति केन्द्र नहीं है जैसा 10 जनपथ के रूप में डॉ . सिंह को झेलना पड़ा । अमित शाह के रूप में पार्टी संगठन भी प्रधानमंत्री के सर्वथा अनुकूल रहा जिस वजह से वे पूरी तरह निश्चिंत होकर कार्य कर सके । अपनी हिंदूवादी छवि के चलते उन्हें रास्वसंघ का पूरा समर्थन भी मिलता रहा । अब जबकि प्रधानमंत्री पूरी तरह से चुनाव के लिए मुस्तैद हो चुके हैं और भाजपा चाह रही है कि लोकसभा के साथ दर्जन भर राज्यों के भी चुनाव हो जाएं तब लालकिले से कल दिए उनके भाषण को 2019 के मुकाबले का ऐलान मान लेना गलत नहीं होगा । नरेंद्र मोदी चूंकि आगे बढ़कर नेतृत्व करने वाले कप्तान हैं और बीते पांच साल में वे भाजपा और केंद्र सरकार के इकलौते चेहरे बनकर उभरे हैं इसलिए अगला चुनाव जीतने की जि़म्मेदारी उन्हीं के कंधों पर होगी । श्री मोदी ये भी समझते हैं कि अपार लोकप्रियता और स्वीकार्यता के बाद भी अब तक उन्हें महानता की श्रेणी प्राप्त नहीं हो सकी  जिसके कारण उनके जितने विरोधी बाहर है उतने ही पार्टी के भीतर भी उपयुक्त अवसर की तलाश में बैठे हुए हैं । यही वजह है कि श्री मोदी ही नहीं बल्कि रास्वसंघ भी चाहता है कि 2019 में पुन: दिल्ली की सत्ता हासिल की जाए। क्योंकि इस कार्यकाल में प्रधानमंत्री ने भाजपा के प्रभाव क्षेत्र में आश्चर्यजनक वृद्धि करते हुए उस पर लगे उत्तर भारतीय ठप्पे को भले धो दिया हो किन्तु भाजपा के मूल मुद्दे अधर में हैं । रामजन्मभूमि , धारा 370 और समान नागरिक संहिता जैसे विषय अभी भी नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली स्थिति में ही हैं । नरेंद्र मोदी ने बीते साढ़े चार साल में इन मुद्दों को राष्ट्रीय एजेंडे की मुख्य धारा में तो ला दिया किन्तु जैसा संघ परिवार चाहता है वैसा होने की परिस्थिति नहीं बन सकी । यही वजह रही कि सरकार की तमाम उपलब्धियां भाजपा के परम्परागत समर्थकों को पसंद आने के बाद भी संतुष्टि प्रदान करने में सफल नहीं हो सकीं । उस आधार पर ये कहना काफी हद तक सही होगा कि श्री मोदी ने किसी कारपोरेट कंपनी के सीईओ (मुख्य कार्यपालन अधिकारी) की भूमिका तो बड़ी ही कुशलता से निभाई किन्तु जिन सिद्धांतों और नीतियों के लिए भाजपा अपने आपको औरों से अलग ( पार्टी विथ डिफ रेंस ) होने का दम्भ भरते नहीं थकती उन्हें लागू करने के लिए अपेक्षित और ठोस प्रयास अभी तक धरातल पर नजर नहीं आ सके और ये बात भाजपा और प्रधानमंत्री दोनों के लिए परेशानी का कारण बने बिना नहीं रहेगी । यही सब जानते और समझते हुए श्री मोदी ने स्वाधीनता दिवस के मौके पर देश को ये आश्वस्त करने की पुरजोर कोशिश की यदि उन्हें एक अवसर और मिले तो वे उन उम्मीदों को पूरा कर दिखाएंगे जो उनसे लगाई गई। क्या होगा , क्या नहीं  ये आगामी चुनाव तय करेगा किन्तु इतना जरूर है कि नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से ये संकेत दे दिया है कि वे सेनापति की अपनी भूमिका के निर्वहन के लिए कमर कसकर तैयार हैं ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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