Monday 27 August 2018

सब पर भारी पड़ेंगे पेट्रोल-डीजल

पेट्रोल-डीजल की कीमतें रिकार्ड तोड़ रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां इसके लिए बेशक उत्तरदायी हैं किंतु भारत सरीखे देश के लिए कच्चे तेल की कीमतों में उछाल बहुत मायने रखता है क्योंकि ये अपनी जरूरतों का 85 प्रतिशत आयात करता है। उससे भी बड़ी बात ये है कि पेट्रोल-डीजल की आसमान छूती कीमतों के बावजूद भी भारत में इनकी खफत दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। एक जमाने में तो स्कूटर ही प्रतिष्ठा का सूचक होता था लेकिन अब तो चौपहिया वाहन भी किसी की रईसी नहीं दिखाता क्योंकि छोटे और मझोले किस्म की कार मध्यमवर्गीय स्तर की मानी जाने लगी है। एसयूवी और उससे भी आगे विलासिता की प्रतीक कारें धड़ाधड़ बिक रही हैं। पहले केवल महानगरों में नजर आने वाली लम्बी-लम्बी कारें अब बी श्रेणी के शहरों में भी दिखाई देने लगी हैं। यहां तक कि ग्रामीण क्षत्रों में भी साधारण जीप से ऊपर उठकर 15-20 लाख वाले वाहन जमकर बिक रहे हैं। मोटर सायकिल तो निम्न मध्यम वर्ग तक की प्राथमिकता बन चुकी है। महानगरों को छोड़कर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का चूंकि सर्वत्र अभाव है इसलिए निजी वाहनों का उपयोग लोगों की मजबूरी है। इस वजह से पेट्रोल-डीजल भी दूध और पानी की तरह दैनिक जि़न्दगी की जरूरत बन गई है। इस कारण कच्चे तेल का आयात बढ़ता ही जा रहा है। हाल ही के कुछ महीनों में देश का व्यापार घाटा जिस तरह बढ़ा है उसमें अन्य बातों के अलावा कच्चे तेल का आयात भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों ने भी भारत की मुसीबतें बढ़ा दी हैं क्योंकि ईरान से उसे सस्ता तेल मिल जाया करता था। वैश्विक परिस्थितियां जिस तरह बदल रही हैं उनके मद्देनजर भारत में पेट्रोल-डीजल क्रमश: 100 और 90 रुपये प्रति लीटर तक पहुंचने की आशंका निर्मूल नहीं है। लेकिन हाथ पर हाथ धरे बैठने रहने से भी इसका हल नहीं निकलने वाला। सरकार की मजबूरी ये है कि वह पेट्रोलियम पदार्थों की राशनिंग करने जैसा अलोकप्रिय कदम भी नहीं उठा सकती। ऐसे में केवल एक ही बात जो आसानी से की जा सकती है और वह है उक्त वस्तुओं पर लगाया जा रहा कर घटाकर जनता को राहत देना। मोदी सरकार के सत्ता में आने बाद से लम्बे समय तक कच्चे तेल के दाम घटते गए या स्थिर रहे। बावजूद उसके पेट्रोल-डीजल की कीमतों में उसी अनुपात से कमी नहीं की गई जबकि वृद्धि होने पर कीमतें उछलते देर नहीं लगी। इस बारे में केंद्र सरकार ने जो आश्वासन अतीत में दिए उनके आधार पर जनअपेक्षा है कि कम कीमतें रहने के समय की गई मुनाफाखोरी के एवज में अब उसे राहत मिले जो न्यायोचित है। मोदी सरकार की तरफ से कई मंत्री इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी विकास कार्यों के लिए पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि का औचित्य साबित करते रहते हैं किंतु इससे अर्थव्यव्यस्था के बाकी क्षेत्र कितने प्रभावित होते हैं ये देखा जाना भी जरूरी है। बिन पानी सब सून की तरह अब बिन पेट्रोल-डीजल सब सून वाला दौर आ गया है। लेकिन भारत के इर्द-गिर्द स्थित छोटे-छोटे देशों तक में इनके दाम भारत की तुलना में काफी कम होना ये दर्शाता है कि हमारे देश में सरकार चाहे केंद्र की हो या फिर राज्यों की वह पेट्रोल-डीजल पर भारी-भरकम कर लगाकर आम जनता का तेल निकाल रही हैं। जीएसटी लागू होने के पहले उम्मीद थी कि सरकार पेट्रोलियम पदार्थो को उसके अन्तर्गत लाकर लोगों को राहत प्रदान करेगी किन्तु केंद्र सरकार की ढिलाई और राज्यों की रुखाई ने वह उम्मीद तोड़ दी जिससे सरकारी मुनाफाखोरी पूर्ववत जारी रही। अब जबकि पानी गर्दन से ऊपर आने को है तब एक बार फिर ये मांग उठना स्वाभाविक कि सैकड़ों अन्य वस्तुओं के साथ पेट्रोल-डीजल को भी जीएसटी के दायरे में लाकर उनकी कीमतों को युक्तियुक्त किया जाए। यद्यपि जीएसटी काउंसिल में शामिल राज्य इसके लिए कितने राजी होंगे ये कहना मुश्किल है लेकिन भाजपा और उसके सहयोगियों की अधिकतर राज्यों में सत्ता होने से ऐसा करना कठिन भी नहीं लगता। निकट भविष्य में कुछ राज्यों के साथ ही लोकसभा चुनाव भी सन्निकट हैं तब भाजपा के रणनीतिकार इस मामले में उदासीन क्यों हैं ये समझ से परे है। मोदी सरकार ने विभिन्न मोर्चों पर जो उपलब्धियां हासिल की हैं वे पेट्रोल-डीजल की कीमतों के आगे बेअसर होकर रह जाती हैं। चूंकि ये आम जनता से जुड़ा विषय है इसलिए चुनाव पर असर डाले बिना नहीं रहेगा। यदि अभी भी सरकार नहीं चेती तो फिर ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि भाजपा का हश्र 2004 की तरह हो सकता है जब स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की उज्ज्वल छवि और इंडिया शाइनिंग के धुआंधार प्रचार अभियान के बावजूद सत्ता उसके हाथ से खिसक गई थी। मौजूदा संदर्भ में नरेंद्र मोदी को लेकर भी वही स्थिति है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने यदि बुद्धिमत्ता नहीं दिखाई तो चुनाव में सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबन्दी, जीएसटी और तीन तलाक जैसे मुद्दे काम नहीं आएंगे। भाजपा को अर्थशास्त्र की ये युक्ति नहीं भूलना चाहिए कि मनुष्य की प्रत्येक क्रिया आर्थिक परिस्थितियों से प्रभावित होती है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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