Monday 6 August 2018

गडकरी का सुझाव सामयिक और विचारणीय


केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी बहुत ही व्यवहारिक इंसान हैं जो अपने काम में पूरे मनोयोग से जुटते हैं। उनकी उद्यमशीलता और दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि आज देश में सड़कों का जाल तेजी से बिछ रहा है। उनकी कार्यकुशलता के विपक्षी दल भी कायल हैं।  ये कहना भी हर दृष्टि से उचित होगा कि भाजपा के समकालीन नेताओं की अग्रणी पंक्ति में श्री गडकरी को ही नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है। सहयोगी दलों के बीच वे काफी लोकप्रिय हैं क्योंकि विकास कार्य को लेकर जो भी सांसद उनके पास जाता है वे उसे संतुष्ट करके ही लौटाते हैं। यही वजह है कि जब भी वे किसी चर्चित विषय पर राय व्यक्त करते हैं तो उस पर लोगों का ध्यान बरबस चला जाता है। गत दिवस उन्होंने आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत करते हुए दो टूक कह दिया कि जब नौकरियां ही नहीं है तब आरक्षण से किसी लाभ की कामना करना व्यर्थ है। महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन के संदर्भ में श्री गडकरी ने स्पष्ट किया कि कम्प्यूटरीकरण के बाद अनेक क्षेत्रों में चूंकि नौकरियां कम हुई हैं इसलिए आरक्षण हासिल होने से विशेष फायदे की उम्मीद करना व्यर्थ है। उनका कहना है कि समय आ गया है जब नौकरियों में आरक्षण का आधार आर्थिक स्थिति को बनाया जाए। उन्होंने अनेक उच्च जातियों में  गरीबी और बेरोजगारी का उदाहरण देते हुए कहा कि गरीब की कोई जाति, मजहब या पंथ नहीं होता। सभी समुदायों में ऐसा वर्ग है जिसके पास भोजन और वस्त्र नहीं है। निश्चित रूप से उनका आशय उनके गृह राज्य महाराष्ट्र में मराठा समुदाय द्वारा आरक्षण के लिए किये जा रहे उग्र आंदोलन से था किन्तु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनु.जाति/जनजाति कानून में किये बदलाव को निष्प्रभावी करने के लिए संसद में प्रस्तुत संशोधन विधेयक पर भाजपा की परंपरागत समर्थक सवर्ण जातियों में जो रोषपूर्ण प्रतिक्रिया हुई है उसने मोदी सरकार को चिंता में डाल दिया है। कुछ लोग तो इसकी तुलना स्व.राजीव गांधी द्वारा शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को संसद में पलटवाने से करते हुए भाजपा को परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दे रहे हैं । बीच-बीच में ये खबर भी उड़ी कि मोदी सरकार आरक्षण की जाति आधारित व्यवस्था के साथ ही आर्थिक दृष्टि से कमजोर सवर्णों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान करने जा रही है जिससे उसका स्थायी वोट बैंक न गड़बड़ाये। अब चूँकि श्री गडकरी सदृश वरिष्ठ मंत्री द्वारा इस संवेदनशील मुद्दे को छेड़ दिया गया है तब ये कहा जा सकता है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण विषय पर राष्ट्रीय बहस शुरू हो सकती है जिससे ये आगामी लोकसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बन सके। भाजपा की चिंता का कारण ये है कि जाट, गुर्जर और पाटीदार आरक्षण आंदोलन से उसके प्रभाव वाले राज्यो में एक बड़ा वर्ग उद्वेलित है। सर्वोच्च न्यायालय की बंदिश के चलते वह एक निश्चित सीमा से आगे आरक्षण दे नहीं सकती वहीं अनु.जाति/जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के लिए चल रही मौजूदा व्यवस्था को बंद करने का खतरा भी नहीं उठा सकती । इसलिये हो सकता है जैसा संकेत श्री गडकरी द्वारा दिया गया, आर्थिक स्थिति को आधार बनाकर आरक्षण सुविधा को ऐसा रूप दिया जाए जिससे समाज में बढ़ रहे जातिगत वैमनस्य को रोका जा सके। श्री गडकरी का ये कहना सत्य की अभिव्यक्ति ही है कि सरकारी नौकरियां घटते जाने से आरक्षण अपना अर्थ खोता जा रहा है। जाति व्यवस्था का शिकंजा और कसने से सामाजिक समरसता का उद्देश्य भी अधर में लटककर रह गया। यद्यपि बात उतनी आसान नहीं है जितनी श्री गडकरी ने कह दी किन्तु ये भी सही है कि कभी न कभी तो ये करना ही पड़ेगा और जैसा रास्वसंघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत कई बार कह चुके हैं आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा का समय आ गया है। श्री गडकरी के बयान को उसी सन्दर्भ में प्रासंगिक मानते हुए गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment