Tuesday 7 August 2018

विडंबना : संरक्षण गृहों में भी असुरक्षित नारी


बिहार के मुजफ्फरपुर के बाद उप्र के देवरिया स्थित एक नारी संरक्षण गृह में व्यभिचार की जानकारी सामने आने से पूरे देश में हड़कम्प मच गया है। संसद में भी खूब हंगामा हुआ । बिहार और उप्र के मुख्यमंत्री से त्यागपत्र मांगने की औपचारिकता का निर्वहन भी हो गया। नीतिश कुमार ने तो तुरन्त सीबीआई जांच के आदेश दे दिए। योगी आदित्यनाथ भी वैसा करके मामले को ठंडा करने में पीछे नहीं रहेंगे। दो शहरों के नारी संरक्षण गृह में अनैतिक कृत्यों का भंडाफोड़ होने के बाद से देश भर में चल रहे ऐसे ही संरक्षण गृहों के बारे में खबरें आने लगीं । वैसे उनमें से लड़कियों के गायब होने के समाचार यदाकदा आया ही करते हैं। इस बारे में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का ये कथन महत्वपूर्ण है कि मुजफ्फरपुर और देवरिया जैसे मामले देश में और भी हो सकते हैं । उन्होंने ये खुलासा भी किया कि वे सभी सांसदों को पत्र लिखकर उनके निर्वाचन क्षेत्र में कार्यरत नारी संरक्षण गृहों का  निरीक्षण करने का अनुरोध कर चुकी थीं किन्तु किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया। अब चूंकि दो बड़े मामले सामने आ गए हैं इसलिए पूरे देश का ध्यान इस तरफ  खिंच गया वरना इस तरह का गंदा खेल लम्बे समय से चला आ रहा था। मेनका गांधी ने नारी संरक्षण गृहों का संचालन निजी स्वयंसेवी संस्थाओं से छीनकर सरकार द्वारा स्वयं किये जाने का सुझाव दिया है। नीतिश कुमार ने तो मुजफ्फरपुर हादसे के फौरन बाद ही ऐसे फैसले का ऐलान कर दिया था। लेकिन ये भी इस समस्या का इलाज नहीं है क्योंकि सरकार द्वारा संचालित नारी संरक्षण गृहों को लेकर भी इस तरह की खबरें निरन्तर आती रहती हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि नारी संरक्षण गृहों को मिलने वाले अनुदान की एवज में सरकारी अधिकारी और राजनेताओं द्वारा इन संस्थाओं का दुरुपयोग अपनी अय्याशी के लिए किया जाना। दरअसल जिन निजी संस्थाओं को सरकारी अनुदान मिलता है उनके संचालक नेताओं तथा सरकारी अधिकारियों को उपकृत करते रहते हैं जिससे उनके घिनौने धंधे में कोई बाधा न आए। सभी नेता और अफसर व्यभिचारी हों ऐसा नहीं है लेकिन आर्थिक लेनदेन में अधिकतर की संलिप्तता से इंकार नहीं किया जा सकता। ये कहना गलत नहीं होगा कि चाहे सरकारी हों या अनुदान प्राप्त कर संचालित होने वाले निजी संस्थान, अपवाद स्वरूप इक्का-दुक्का को छोड़कर शेष सबकी छवि बेहद गंदी है । वहां से लड़कियों का गायब हो जाना मामूली बात है। जो  निराश्रित युवतियां और महिलाएं उनमें रहने आती हैं वे बेसहारा होती हैं। उनकी असहाय अवस्था का लाभ लेकर उनका शारीरिक शोषण करने और करवाने वाले निश्चत तौर पर गिरे हुए चरित्र वाले ही होते होंगे। ये आरोप पूरी तरह से सही है कि पुलिस और प्रशासन यदि सतर्क और ईमानदार रहें तो इस तरह के गंदे धंधे कतई नहीं चल सकते लकिन उससे भी बड़ी बात ये है कि राजनीतिक वरदहस्त के बिना सरकारी अमला भी इस तरह के कुकर्मों को खुली छूट  नहीं दे सकता। ऐसे प्रकरणों के बारे में पूरे कुए में भांग घुली होने वाली कहावत चरितार्थ होती है। नीतिश कुमार और योगी आदित्यनाथ भले ही इस आरोप से मुक्त हों किन्तु स्थानीय नेता गण अपने क्षुद्र स्वार्थों की खातिर अवैध कारोबारियों की पीठ पर हाथ धरते हैं, ये बात साधारण व्यक्ति भी जानता है और इसी आधार पर मेनका गांधी का ये कहना गलत नहीं लगता कि पूरे देश में कमोबेश इसी तरह के हालात हैं। कुल मिलाकर ये घटनाएं समाज के घोर चारित्रिक पतन का एक और उदाहरण है। दुराचार की घटनाओं का सैलाब आने से हर समझदार इंसान पहले से ही दुखी और भयभीत है। हर मां-बाप अपनी बेटी को लेकर चिंतित है। नारी संरक्षण गृह में भी जब इस तरह की घृणित गतिविधियां चल पड़ी हों तब कुछ कहने को कहाँ बचता है? सबसे ज्यादा दु:ख ये देखकर होता है कि महिलाएं भी ऐसे दुष्कर्मों में सहयोगी बन जाती हैं। देवरिया का केंद्र तो पति-पत्नी मिलकर संचालित कर रहे थे। एक बार फिर ये कहना पड़ रहा है कि इन दुष्प्रवृत्तियों को शासन और प्रशासन मिलकर भी तब तक नहीं रोक सकते जब तक समाज का दबाव इतना जबरदस्त न हो जाए कि व्यभिचार करने की हिम्मत किसी की न हो । संस्कारों के क्षरण का जो सिलसिला बेरोकटोक चल रहा है उसे यदि नहीं रोका तब आधुनिकता के तमाम दावों के बाद भी आदिम अवस्था के पुनरागमन को रोकना मुश्किल हो जाएगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment