Thursday 23 August 2018

कश्मीर : मुसलमान ही मार रहे मुसलमानों को

पिछली ईद पर फौजी जवान औरंगजेब की हत्या करने के बाद गत दिवस बकरीद पर कश्मीर घाटी में अलगाववादियों ने अपनी वीभत्सता का फिर परिचय दिया तथा अलग-अलग जगहों पर तीन पुलिसकर्मी सहित एक भाजपा नेता को मौत के घाट उतार दिया। इन घटनाओं से ये संकेत मिलता है कि आतंकवाद फैलाकर कश्मीर की आजादी के सपने देखने वाली अलगाववादी ताकतें अब निराश होकर बौखलाने लगी हैं। बीते एक-दो बरस के भीतर ही उन्होंने कश्मीर घाटी के ही फौजी तथा पुलिस के जवानों की जिस बेरहमी से हत्या की उसने उन परिवारों के भीतर आतंकवादियों के प्रति गुस्सा भर दिया। उनके जनाजे में भी क्षेत्रीय जनता बड़ी संख्या में शामिल हुई। प्राप्त जानकारी के मुताबिक सुरक्षा बलों की मुस्तैदी तथा केन्द्र सरकार द्वारा बरती जा रही कड़ाई के कारण घाटी के कुछ खास जिलों में ही अलगाववादी प्रभावशाली रह गए हैं। सीमा पार से होने वाली घुसपैठ पर भी काफी नियंत्रण हो गया है। अलगाववादी संगठनों को मिलने वाली आर्थिक सहायता के रास्ते भी बंद होते जा रहे हैं। इन सबसे परेशान होकर आतंकवादी अब राज्य पुलिस के जवानों को निशाना बनाने लगे हैं। इससे ये पता चल रहा है कि आतंकवाद विरोधी कार्रवाई में सेना के साथ ही पुलिस भी कंधे से कंधा मिलाकर शामिल है। वरना कुछ समय पहले तक ये माना जाता था कि घाटी के पुलिस कर्मी अलगाववादियों के प्रति नरम रवैया रखते हैं। और तो और गत दिवस श्रीनगर की हजरत बल मस्जिद में पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारुख अब्दुल्ला के विरुद्ध हुई नारेबाजी और धक्का-मुक्की से भी ये स्पष्ट हो गया कि घाटी में भारत विरोधी ताकतों में एकजुटता खत्म हो गई है। हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने दिल्ली में आयोजित सर्वदलीय श्रद्धांजलि सभा में फारुख द्वारा भारत माता की जय के नारे लगाए जाने से नाराज लोगों ने गत दिवस श्रीनगर में उनके साथ जो बदसलूखी की वह काफी कुछ कह गई। उल्लेखनीय बात ये है कि फारुख को कोई देशभक्त नहीं मानता। हाल ही में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 35 ए को हटाए जाने संबंधी याचिका पर केन्द्र सरकार को जिस तरह धमकाया वह उनके मन में भरे भारत विरोध का ही उदाहरण था। यूं भी कश्मीर घाटी आज जिस त्रासदी से गुजर रही है वह अब्दुल्ला खानदान की ही देन है। फारुख तो यूं भी बहुत बड़ेे नाटकबाज हैं जो गिरगिट को भी रंग बदलने में मात दे सकते हैं। कल के अपमान के बाद उन्हें भी अच्छी तरह समझ में आ गया होगा कि जिस सपोलों को उन्होंने दूध पिलाकर पाला वे ही अब उनके आगे फन फैलाए फुफकार रहे हैं। बकरीद के दिन कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी, भारत विरोधी नारे, पाकिस्तान और आईएसआईएस के झंडे आदि नई बात नहीं है किन्तु तीन पुलिसकर्मियों की हत्या से ये स्पष्ट हो गया कि भारत विरोधी ताकतों का हौसला टूटने लगा है। फारुख अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर सहित पीडीपी प्रमुख मेहबूबा मुफ्ती के लिए यही समय है जब वे कश्मीर की राजनीति को देश की मुख्यधारा से जोड़ें वरना आने वाले कुछ बरसों के बाद नेशनल कान्फे्रंस और पीडीपी दोनों पूरी तरह अप्रासंगिक होकर रह जायेंगे। शेख अब्दुल्ला और मुफ्ती मोहम्मद सईद की औलादों के रूप में फारुख-उमर और मेहबूबा को जो लाभ मिल गया वह उनकी अगली पीढ़ी को मिलना नामुमकिन है क्योंकि कश्मीर घाटी के भीतर मुख्यधारा की राजनीति पूरी तरह असहाय होकर रह गई है। इसका इससेे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि मुख्यमंत्री बनने पर मेहबूबा मुफ्ती द्वारा रिक्त की गई लोकसभा सीट का उपचुनाव आज तक संपन्न नहीं हो सका। बकरीद पर हुई घटनाएं कश्मीर की जनता के साथ ही फारुख जैसे राजनीतिक नेताओं के लिए भी एक सबक हैं जो दिल्ली में आकर तो भारत माता की जय बोलते हैं लेकिन घाटी में लौटते ही अलगाववादियों के सुर में सुर मिलाने लगते हैं। एक ही दिन में तीन पुलिस कर्मियों की हत्या के बाद कश्मीर की जनता को भी ये समझ जाना चाहिए कि इस्लाम के नाम पर भारत का विरोध कर रहे अलगाववादी मुसलमानों के कितने हमदर्द हैं?

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment