Monday 13 August 2018

आपदा प्रबन्धन के मापदंड भी बदलने होंगे

केरल में अभूतपूर्व बाढ़ से हालात चिंताजनक हो गए हैं। उल्लेखनीय है दक्षिण पश्चिम मानसून का प्रवेश द्वार केरल ही  है। मानसून सत्र तकरीबन आधा समाप्त होने के बाद हो रही अप्रत्याशित वर्षा ने इस तटवर्ती राज्य को संकट में डाल दिया है। आपदा प्रबंधन और राहत का कार्य जोरशोर से चल रहा है। सेना भी आपदाग्रस्त लोगों की सहायतार्थ जुटी हुई है। उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर मुसीबत में फंसे लोगों का पता लगाया जा रहा है। राहत सामग्री का वितरण करने के लिए शासन-प्रशासन जुटे हुए हैं। केंद्र ने केरल को अतिरिक्त आर्थिक सहायता भी भेज दी है। ये कोई पहला अवसर नहीं है जब इस तरह की प्राकृतिक आपदा आई हो। लेकिन विज्ञान और तकनीक के इस युग में जब मौसम की भविष्यवाणी के साधन विकसित हो चुके हों तब इस तरह के संकटों को लेकर बरती जाने वाली उदासीनता समझ से परे है। मौसम की एक -एक पल की गतिविधि पर अंतरिक्ष में विचरण कर रहे उपगृह नजर रखते हैं। केरल देश का सबसे ज्यादा शिक्षित राज्य है जहां 100 फीसदी साक्षरता होने से लोगों में जागरूकता भी है। ऐसे में यदि इतनी बड़ी आपदा का पूर्वानुमान नहीं लगाकर जनता को समय रहते आगाह नहीं किया गया तो ये आपराधिक उदासीनता ही कही जाएगी लेकिन कुछ हद तक ये भी सही है कि हमारे देश में इस तरह की चेतावनियों को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति भी है। समय पर जानकारी मिलने पर भी लोग सुरक्षित स्थानों पर जाने की जहमत उठाने से बचते हैं। बहरहाल केरल के अलावा भी देश के अनेक हिस्सों में इस साल बाढ़ ने काफी तबाही मचाई है। साल दर साल ये मंजर देखने को मिलता है लेकिन तमाम दावों के बावजूद राहत और बचाव के सारे इंतजाम अपर्याप्त साबित होते हैं। जहां तक प्राकृतिक आपदाओं का सवाल है तो सारी दुनिया उससे परेशान है। जिन विकसित देशों में आपदा प्रबंधन पूरी तरह से चाक-चौबंद होने का दावा किया जाता है वे भी कई मर्तबा असहाय होकर रह जाते हैं। इस संबंध में अमेरिका का नाम लेना प्रासंगिक होगा जहां हिमपात, समुद्री तूफान, बाढ़ और जंगलों में आग जैसी विपदाएं लगातार आने लगी  हैं। विश्व का सर्वाधिक सम्पन्न और तकनीकी दृष्टि से दक्ष देश तक कई मर्तबा उन विपदाओं के समक्ष लाचार नजर आने लगता है। ऐसे में भारत तो कहीं ठहरता ही नहीं है। बावजूद इसके समय आ गया है जब इस बारे में सार्थक और ठोस कदम उठाए जाएं क्योंकि एक बड़ी विपदा कई सालों के विकास पर पानी फेर देती है। ये बात भी पूरी तरह से सत्य है कि जिन भी राज्यों में प्राकृतिक विपदाएं  निरन्तर आती हैं वहाँ पिछड़ापन भी कुंडली मारकर बैठा रहता हैं। केरल में जो हालात अभूतपूर्व बरसात से पैदा हुए उनके बारे में  तात्कालिक सोच रखना गलत होगा क्योंकि प्रकृति चक्र जिस तरह से अनिश्चित और अनियमित होता जा रहा है उसके मद्देनजर आपदा प्रबंधन के मापदंड भी बदलने होंगे। वरना हर वर्ष कहीं न कहीं ऐसा कुछ होता रहेगा और हम लाचार खड़े रहेंगे ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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