Saturday 25 August 2018

सत्ता में थे तब संघ पर रोक क्यों नहीं लगाई

राहुल गांधी ने लंदन में रास्वसंघ की तुलना अरब देशों के कुख्यात मुस्लिम ब्रदरहुड नामक संगठन से कर डाली। इसके पहले वे जर्मनी में भी संघ के विरुद्ध काफी कुछ बोल चुके थे। भाजपा और मोदी सरकार पर उनकी नीतिगत टिप्पणियां तो समझ में आती हैं किंतु रास्वसंघ की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड सरीखे संगठन से करना राहुल की अपरिपक्वता का एक और उदाहरण है। वैसे ये पहला अवसर नहीं है जब उन्होंने इस तरह का गैर जिम्मेदाराना बयान दिया हो। जर्मनी में डोकलाम विवाद पर उनकी टिप्पणी के बाद पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में वे निरुत्तर होकर रह गये थे। सिंगापुर में भी भारतीय समुदाय से संवाद करते हुए वे अनेक श्रोताओं के सवालों का जवाब नहीं दे पाए। इतेहां तो तब हो गई जब भारत में ही युवाओं के एक आयोजन में वे एनसीसी संबंधित प्रश्न पर बोल पड़े ये क्या है मुझे नहीं पता। शायद ही कोई महीना ऐसा जाता होगा जब कांग्रेस अध्यक्ष का कोई न कोई बयान उनकी और उनकी पार्टी की फज़ीहत न करवाता हो। राहुल अब राजनीति के नौसिखिया भी नहीं कहे जा सकते। एक दशक से भी ज्यादा समय से वे संसद में हैं। पहले उपाध्यक्ष और अब बतौर अध्यक्ष कांगे्रस पार्टी का नेतृत्व भी कर रहे हैं। ऐसे में उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अपने सार्वजनिक बयानों को तथ्यों पर आधारित रखा करें किन्तु 50 के होने जा रहे राहुल कुछ न कुछ ऐसा बोल जाते हैं जिससे उनका बचकाना उजागर हो। रास्वसंघ के बारे में बोलकर वे अल्पसंख्यक समुदाय का तुष्टीकरण करना चाहते हैं। रास्वसंघ से सैद्धांतिक मतभेद रखना उनका अधिकार है और उस लिहाज से उनके द्वारा उसकी आलोचना करना स्वाभाविक है लेकिन विदेश में बैठकर संघ को मुस्लिम ब्रदरहुड जैसा आतंकवादी संगठन कहना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता। इस संबंध में सीधा -सीधा प्रश्न ये है कि 2004 से 2014 तक कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के ज़माने में संघ पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया गया?  आखिर ये हिन्दू संगठन बीते चार साल में बदल गया हो ऐसा भी नहीं हैं। उसका गणवेश भले परिवर्तित हुआ हो लेकिन उसके सिद्धांत, नीतियां और कार्यप्रणाली नहीं बदली। यदि राहुल उसे मुस्लिम ब्रदरहुड जैसा संगठन मानते हैं तब उन्हें इस बात का जवाब भी देना चाहिए कि उनकी पार्टी की सरकार ने संघ के विरुद्ध क्या कार्रवाई की और नहीं तो क्यों? संघ पर गांधी जी की हत्या के आरोप में राहुल पर मानहानि का मुकदमा महाराष्ट्र की एक अदालत में विचाराधीन है। अब उन्होंने ये नया बखेड़ा खड़ा कर दिया। इस संबंध में उल्लेखनीय बात ये है कि रास्वसंघ पर कांग्रेस के शासनकाल में तीन मर्तबा प्रतिबंध लगाया जा चुका है लेकिन बाद में उसे उठाना पड़ गया। न्यायालय में भी इस संगठन के विरुद्ध अब तक कोई आरोप साबित नहीं हुआ। ये बात सही है कि संघ पूरी तरह से हिंदुओं का संगठन है किंतु उसकी तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से करना किसी भी दृष्टि से तर्कसंगत नहीं है। मुस्लिम ब्रदरहुड को अनेक अरब देशों ने प्रतिबन्धित कर रखा है किन्तु रास्वसंघ पर ऐसी कोई रोक उसकी विरोधी विचारधारा वाली सरकार द्वारा भी नहीं लगाया जाना राहुल की ताजा टिप्पणी को तथ्यहीन साबित करने के लिए पर्याप्त है। हाल ही में संघ के एक समारोह में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी बतौर मुख्य वक्ता शामिल हुए थे। वे जीवन भर कांग्रेसी रहे और संघ के कटु आलोचक भी। उसके बावजूद यदि वे इस संगठन के मंच पर जाने में नहीं डरे तब ये मानना गलत नहीं है कि राहुल द्वारा संघ के बारे में आये दिन लगाए जाने वाले आरोप बे सिर पैर के हैं। वरना वे श्री मुखर्जी की संघ के आयोजन में जाने की सार्वजनिक आलोचना करते। केवल अपने राजनीतिक स्वार्थ पूरे करने के लिए संघ पर आरोप लगाने की ये परंपरा वैसे तो इंदिरा जी के समय से चली आ रही है। छद्म धर्मनिरपेक्षता के प्रभावस्वरूप मुस्लिम वोटों की लालच में संघ को कोसना काँग्रेस की नीति रही किन्तु उससे संघ को फायदा ही हुआ। जब-जब भी उस पर प्रतिबंध लगाए गए, वह और भी ताकतवर होकर निकला। आज यही एक ऐसा संगठन है जिसकी मौजूदगी पूरे देश में है। समाज के लगभग सभी क्षेत्रों में संघ के अनुषांगिक संगठन अपनी भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रहे हैं। पं नेहरू की जिस सरकार ने संघ पर पहला प्रतिबंध लगाया था उसी ने 1962 के चीनी हमले के बाद 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में रास्वसंघ को आमंत्रित किया और 3 हजार गणवेशधारी स्वयंसेवक राजपथ पर सेना के जवानों के पीछे-पीछे परेड करते हुए निकले। इसी तरह कन्याकुमारी में बने विवेकानन्द शिला स्मारक के सूत्रधार और रास्वसंघ के वरिष्ठ प्रचारक स्व.एकनाथ रानाडे के आमंत्रण पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी उस स्मारक का उद्घाटन करने गईं थीं जबकि उन्हें भलीभांति ज्ञात था कि उस स्मारक के निर्माण में स्व.रानाडे और उनके पीछे संघ की सक्रिय भूमिका रही। कहने का आशय इतना ही है कि जिस संघ को राहुल मुस्लिम ब्रदरहुड जैसा बता रहे है उसके कार्यों से उनके परनाना और दादी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं। देश और विदेश में रास्वसंघ को आतंकवादी बताने वाले राहुल में हिम्मत है तो उन्हें अभी से ये घोषणा कर देनी चाहिए कि यदि सत्ता मिली तब वे रास्वसंघ और विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत उसके अनुषांगिक संगठनों पर प्रतिबंध लगा देंगे और यदि वे ऐसा नहीं करते तब उनके आरोप धूल में ल_ मारने जैसे ही होंगे। अतीत में दिग्विजय सिंह सरीखे नेताओं ने संघ को लेकर जिस तरह की सस्ती टिप्पणियां कीं उसका खामियाजा काँग्रेस भुगत चुकी है। राहुल ने उससे कोई सीख नहीं ली ये देखकर आश्चर्य होता है। गत दिवस एक समारोह में प्रसिद्द उद्योगपति रतन टाटा  संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के साथ मंच पर बैठे। उसके बाद ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि प्रणव मुखर्जी और रतन टाटा को देश और दुनिया के बारे में जितनी समझ है उसके आगे राहुल गाँधी कहीं नहीं ठहरते। संघ को लेकर उनके ताजे बयान और टिप्पणियां न सिर्फ  उनके अपितु उनकी पार्टी के लिए भी कितनी नुकसानदेह होंगी ये जानने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा क्योंकि चुनाव सन्निकट हैं ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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