Wednesday 10 April 2019

खिचड़ी सरकार की आशंका बढ़ा रही मोदी की सम्भावनाएं

विभिन्न टीवी चैनलों और प्रकाशन समूहों द्वारा कराये गए चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों का जो औसत महापोल के नाम से प्रचारित हुआ उसके अनुसार भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को सुई की नोक जैसा बारीक बहुमत मिलने जा रहा है। वहीं कांग्रेस के झंडे तले यूपीए को तकरीबन 130 और तीसरे मोर्चा कहे जा रहे बाकी दलों को मिलकर 115 सीटें अधिकतम मिलने की उम्मीद जताई जा रही हंै। लगभग सभी सर्वेक्षणों का मानना है कि भाजपा अपने पिछले प्रदर्शन को नहीं दोहरा सकेगी। हालांकि उसे कितनी सीटें मिलेंगी इस पर सर्वे करने वालों में मतैक्य नहीं है। कुछ ने उसे बहुमत से 10-20 तो कुछ ने 30 से 50 सीट पीछे रहने का अनुमान लगाया है। लेकिन एक बात पर सभी सर्वेक्षण एकमत हैं कि भाजपा और एनडीए सरकार बनाने में सफल हो जायेंगे। सबसे बड़ी बात ये है कि कांग्रेस को किसी भी सर्वे में 100 के पार निकलता नहीं दिखाया जा रहा। ये बात भी उभरकर आई है कि उप्र में सपा-बसपा गठबंधन के कारण भाजपा को स्पष्ट बहुमत के आंकड़े से पीछे माना जा रहा है लेकिन राहुल गांधी को प्रधानमन्त्री बनाने की मानसिकता जनता में नहीं दिखाई दे रही। चौतरफा हमलों के बावजूद प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी इस चुनाव में भी आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र हैं और उनकी लोकप्रियता किसी भी सर्वेक्षण में 50 फीसदी से नीचे नहीं आई जबकि उनके प्रमुख प्रतिद्वंदी के तौर पर उभरे श्री गांधी ने बीते दो साल में जो लोकप्रियता अर्जित की थी उसमें हाल के महीनों में अचानक कमी आ गई। इसकी प्रमुख वजह विपक्ष के महागठबंधन की हवा निकल जाना माना जा सकता है। हालांकि कांग्रेस ने बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र और तमिलनाडु में गठबंधन कर रखा है लेकिन देश के बड़े हिस्से में उसे बाकी गैर भाजपा पार्टियों का साथ नहीं मिलने से वोटों का बंटवारा होने की सम्भावना बढ़ गई है। कांग्रेस के लिए ये विचारणीय प्रश्न है कि आखिर क्या वजह थी कि अनेक अवसरों में मंच पर खड़े होकर 20 से ज्यादा दलों के नेताओं ने हाथ उठाकर जो एकजुटता दिखाई थी वह चुनाव के मैदान में बिखराव का शिकार हो गई। यही कारण है कि सर्वेक्षणों के नतीजों में कांग्रेस अध्यक्ष भले ही श्री मोदी के बाद दूसरे स्थान पर बताये जा रहे हैं लेकिन कांग्रेस की स्थिति में  सुधार की संभावनाओं के बाद भी बहुमत तो दूर की बात है सबसे बड़े दल के तौर पर उसके उभरने की उम्मीद दूरदराज तक नहीं होने से राहुल को वह वजन नहीं मिल रहा जो एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर सामान्यत: अपेक्षित था। भाजपा के रणनीतिकारों को यह स्थिति अपने लिए अनुकूल प्रतीत हो रही है। उनका मानना है कि भले ही सर्वेक्षणों में एनडीए को 300 से नीचे ही बताया जा रहा हो लेकिन चूंकि कांग्रेस और शेष दलों को भी बहुत सफलता नहीं मिलती दिखाई जा रही इसलिए मतदान की घड़ी आते-आते तक विकल्पहीनता की स्थिति में मतदाता भाजपा और उसके गठबन्धन पर ही विश्वास करेगा। खिचड़ी सरकार की स्थिति में ममता बनर्जी और मायावती जैसों के प्रधानमन्त्री बनने का डर भी एनडीए के पक्ष में पलड़ा झुकाने का काम कर सकता है। ये बात सही है कि क्षेत्रीय दल अपने राज्य में बड़ी ताकत हैं लेकिन उप्र और  बंगाल में कांग्रेस का अलग से लडऩा विपक्षी एकता की नाव में नीचे से छेद करने जैसा हो गया। जिसका लाभ दबे पाँव भाजपा उठा सकती है। इन दोनों राज्यों में अगर कांग्रेस, सपा-बसपा और तृणमूल के साथ गठबंधन में होती तब भाजपा के सफाये की गारंटी दी जा सकती थी। इसी तरह अगर मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी कांग्रेस, सपा और बसपा को साथ ले लेती तो भाजपा को विधानसभा चुनाव से भी ज्यादा नुक्सान होना तय था। कांग्रेस को बिहार में लालू की पार्टी ने जिस तरह पिछलग्गू बनाकर रख दिया उससे भी उसकी साख पर असर पड़ा। आम आदमी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबन्धन की कीमत पर हरियाणा और पंजाब में भी कुछ सीटें मांग रही है  जिसकी वजह से अभी तक अनिश्चितता बनी हुई है। कुल मिलाकर एक बात साफ हो गयी है कि कांग्रेस अपने दम पर सरकार बनाने की बजाय केवल अपनी सीटें बढ़ाने और भाजपा को ज्यादा से ज्यादा नुक्सान पहुँचाने की नीति पर चल पड़ी है। चुनाव बाद के परिदृश्य में गैर भाजपा सरकार बनाना उसके मास्टरप्लान का हिस्सा है जिसका प्रधानमन्त्री शरद पवार जैसा कोई वरिष्ठ नेता भले बन जाए क्योंकि राहुल को कोई स्वीकार करेगा नहीं और ममता और माया के अस्थिर -अडिय़ल स्वभाव से सभी बिचकते हैं। ऐसी स्थिति में जैसा सर्वेक्षणों का औसत आंकड़ा है एनडीए यदि बहुमत से दस-बीस सीटें पीछे भी रह गया तब वही सरकार बनाने की स्थिति में होगा क्योंकि आंध्र से बड़ी संख्या में सीटें जीतकर आ रही जगन मोहन रेड्डी की पार्टी और तेलंगाना की टीआरएस के साथ ही बीजू जनता दल भी केंद्र में स्थायी सरकार को समर्थन देकर अपने राज्य के लिए अधिकाधिक धन बटोरने की कोशिश करेंगे जो खिचड़ी बनने की स्थिति में सम्भव नहीं होगा। मतदान के पहले चरण के ठीक पहले तक देश का जो मूड सर्वेक्षणों से जाहिर हुआ है वह ले देकर नरेंद्र मोदी की तरफ  झुकता दिखाई दे रहा है। इसका श्रेय उनकी सरकार और भाजपा से ज्यादा विपक्षी बिखराव और राहुल गांधी की अपरिपक्व कार्यप्रणाली को दिया जा सकता है जो भाजपा विरोधी सभी दलों को एकजुट नहीं कर सके। ये कहना गलत नहीं होगा कि 2004 में वाजपेयी सरकार के विरुद्ध विपक्षी गठबंधन बनाने में सोनिया गांधी ने कहीं ज्यादा बुद्धिमत्ता और लचीलापन दिखाया था।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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