Monday 8 April 2019

पूरी कार्रवाई तक रुकना चाहिए था कमलनाथ को

मप्र, गोवा, दिल्ली में गत दिवस आयकर विभाग द्वारा की गई छापेमारी में चूँकि मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबी लपेटे में आये हैं इसलिए इसे राजनीतिक चश्मे से देखा जा रहा है। आयकर विभाग को पता था कि राज्य में कमलनाथ की सरकार होने से स्थानीय पुलिस का सहयोग लेने से गोपनीयता भंग हो सकती थी इसीलिये उसने सीआरपीएफ  की सेवाएं लीं। छापे के कुछ घंटे बाद राज्य पुलिस और सीआरपीएफ के बीच हुए टकराव से ये स्पष्ट हो गया कि आयकर महकमे की आशंका गलत नहीं थी। अगस्ता हेलीकाप्टर सौदे में कमलनाथ के भांजे का नाम आ जाने के बाद हुई इस कार्रवाई को उस मामले से भी जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन जिस बड़े पैमाने पर छापेमारी की गई उससे इतना तो लगता ही है कि आयकर विभाग के पास कुछ न कुछ पुख्ता जानकारी तो थी ही। करोड़ों रूपये की नगदी मिलने से ये स्पष्ट भी हो गया कि छापा निरर्थक नहीं था। लेकिन लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान होने के ठीक पहले हुई इस कार्रवाई पर राजनीति गर्माना अवश्यम्भावी था और वह हुआ भी। रविवार की भोर आयकर विभाग ने जिस बड़े पैमाने पर दबिश दी उससे ये साफ हो गया कि इसकी तैयारी पहले से चल रही थी। छापामार टीमें जिस सटीक तरह से अपने लक्ष्य तक पहुँचीं उससे उनके पुख्ता होमवर्क का प्रमाण भी मिल गया। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पहले तो कुछ नहीं कहा लेकिन जब उन्हें लगा कि चौतरफा किरकिरी हो रही है तब उन्होंनें इसे सियासत का रंग देने की कोशिश की और भाजपा को पराजय बोध का शिकार बताते हुए यहाँ तक कहा कि प्रदेश की जनता लोकसभा चुनाव में इसका जमकर जवाब देगी। उधर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी मौके का लाभ उठाने में देर नहीं की और कमलनाथ सहित कांग्रेस को घेरने का प्रयास किया। ये भी अंदाज लगाया जा रहा है कि इस छापेमारी का सम्बन्ध हाल ही में जबलपुर में पकड़े गये बड़े  हवाला कारोबार से भी है जिसमें तकरीबन 4 हजार करोड़ के अवैध लेनदेन की जानकारी जाँच एजेंसियों के हाथ लगी थी। चुनाव के मौसम में कालेधन की आवाजाही और खपत काफी बढ़ जाती है। सभी पार्टियां बेहिचक उसी के बलबूते चुनाव लड़ती हैं। विगत सप्ताह एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में अनेक पूर्व और वर्तमान सांसदों ने चुनाव में करोड़ों खर्च करने की बात स्वीकारी भी थी। चुनाव आयोग हर चुनाव में करोड़ों रूपये जप्त भी करता है। यही वजह है कि कल पड़े छापे के बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तंज कसा कि क्या भाजपा अपनी रैलियों पर खर्च होने वाले लाखों रूपये का भुगतान चैक से करती है? ऐसे सवाल हर पार्टी पूछती है जब उसके सिर पर इस तरह की तलवार लटकती है। चूँकि आर्थिक ईमानदारी के मामले में कमोबेश सभी नेताओं और पार्टियों की स्थिति एक समान है इसलिए कोई भी खुद को दूध का धुला साबित नहीं कर सकता और पकड़े जाने पर छोटे बच्चों की तरह ये कहता है कि दूसरे ने भी ऐसा ही किया था तो उसे क्यों नहीं पकड़ते? कमलनाथ के निकटस्थों के यहाँ करोड़ों मिलने के बाद बजाय शर्म से सिर नीचा झुकाने के यदि वे और उनके समर्थक भाजपा को भी कठघरे में खड़ा करने की हिमाकत करे रहे हैं तो इसे क्या कहा जाए? साधारण व्यक्ति की भी इस छापेमारी पर यही प्रतिक्रिया रही कि जप्त की गयी धनराशि का उपयोग चुनाव में होने वाला था। जिन लोगों पर आयकर विभाग ने दबिश दी वे मुख्यमंत्री के करीबियों में गिने जाते हैं और उनमें से कुछ तो उनके निजी स्टाफ  में बरसों से जमे हुए हैं। बेहतर होता कि श्री नाथ और उनकी पार्टी के लोग राजनीतिक बयानबाजी करने की जगह कार्रवाई पूरी होने तक प्रतीक्षा करते और उसके बाद कुछ कहते तब वह ज्यादा उचित होता। तब तक शायद इन छापों की असली वजह भी स्पष्ट हो जाती। पूरी कार्रवाई हुए बिना कमलनाथ और उनकी देखासीखी दिग्विजय सिंह की आलोचनात्मक टिप्पणियों से कांग्रेस व्यर्थ में एक पक्ष बन गई। आयकर छापे अपने देश में अब उतनी सनसनी नहीं मचाते जितनी किसी जमाने में हुआ करती थी। जिन लोगों के यहाँ काला धन पकड़ा जाता है वे भी देर सवेर कर और अर्थदंड चुकाकर बरी हो जाते हैं। लेकिन इन छापों का समय और पृष्ठभूमि चूंकि विशेष है इस वजह से शायद मुख्यमंत्री ने आक्रामक होने की कोशिश की लेकिन उनकी सफाई किसी काम की नहीं रही। उलटे वे विवादित बन गये। ये पहला मौका नहीं है जब किसी बड़े राजनेता के करीबी और रिश्तेदारों के यहाँ आयकर विभाग ने दबिश देकर बड़ी मात्रा में नगदी जप्त की हो। चूँकि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक विभाग ने कोई अधिकृत जानकारी नहीं दी इसलिए किसी को दोषारोपित करना जल्दबाजी होगी। लेकिन ये तो कहा ही जा सकता है कि घर में करोड़ों रुपये की नगदी सामान्य कार्य के लिए नहीं रखी जाती और उसके वैध धन होने पर भी शक है। आयकर विभाग ने जिन लोगों पर निशान साधा वे श्री नाथ के निकटस्थ भले हों किन्तु कांग्रेस पार्टी से उनका सीधा सम्बन्ध नहीं है इसलिए पार्टी को इस कार्रवाई की आलोचना से बचना चाहिए वरना बदनामी के छींटों से वह अपना दामन नहीं बचा सकेगी। वैसे असलियत क्या है ये सभी जानते हैं क्योंकि चुनाव और काले धन का चोली दामन का साथ है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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