Tuesday 30 April 2019

शाबास मप्र : 44 डिग्री में 74 फीसदी मतदान

मप्र की छह लोकसभा सीटों के लिए गत दिवस हुए मतदान के बाद जीत हार किसी की भी हो लेकिन मतदान के प्रतिशत में हुई वृद्धि ने लोकतंत्र के प्रति मतदाताओं की जागरूकता को प्रमाणित कर दिया। दो दिन पहले तक लग रहा था कि चुनाव बेहद ठंडा है और उसमें लोगों की रूचि नहीं है। उपर से तेज गर्मी से भी कम मतदान की आशंका उत्पन्न हो गयी थी। लेकिन 44 डिग्री के तापमान के बावजूद औसतन 74 फीसदी मतदान लोकतंत्र के लिए बेहद सकारात्मक संकेत है। इससे ये साबित हो गया कि आम जनता अपने भविष्य के बारे में काफी सजग है। 2014 की अपेक्षा सबसे कम 3 फीसदी की वृद्धि छिंदवाड़ा में हुई लेकिन वह भी 82 प्रतिशत है जो प्रदेश में सर्वाधिक है। मतदान में सर्वाधिक वृद्धि 13 फीसदी की शहडोल में हुई। वहीं जबलपुर और मंडला में क्रमश: 11 और 10 फीसदी की वृद्धि उल्लेखनीय है ।  पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा  सीधी और बलाघाट में भी 8 फीसदी की वृद्धि शुभ संकेत है। ध्यान देने योग्य बात ये हैं कि जिन सीटों पर कल मतदान हुआ उनमें अनुसुचित्त  जनजाति के मतदाताओं की बड़ी संख्या है। मंडला  लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली सभी विधानसभा  सीटें भी आरक्षित ही हैं। यही स्थिति कमोबेश शहडोल, बालाघाट, छिंदवाड़ा  और सीधी की भी है। ऐसी स्थिति में भरी गर्मी में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले मतदाताओं ने जिस सक्रियता का परिचय दिया वह इस बात का प्रमाण है कि समाचार और संचार माध्यमों के जरिये मतदान के प्रति रूचि जाग्रत करने के जो प्रयास हुए उनका सुफल दिखाई देने लगा है। चुनाव आयोग ने भी मतदान के प्रति लोगों को प्रोत्साहित करने का जो अभियान चलाया उसके भी सुपरिणाम दिखने लगे हैं। मतदान केन्द्रों में अच्छी  व्यवस्था भी इसमें सहायक सिद्ध हुई है। लेकिन जो सबसे प्रमुख वजह इस उत्साह के पीछे  नजर आ रही है वह है उन युवा मतदाताओं का मतदान करने पहुंचना जो सन 2000 या 2001 में जन्मे और 18 वर्ष के होते ही पहली बार मतदाता बने। ये वर्ग कम्यूटर और मोबाईल के जरिये देश और  दुनिया से परिचित हुआ है। सोशल मीडिया के उदय ने संपर्कों और संवाद का दायरा असीमित कर दिया है। सूचनाओं और खबरों का आदान- प्रदान जितनी तेजी से होने लगा है उसकी वजह से सुदूर इलाकों तक भी उन सब बातों की जानकारी पहुंच जाती है जो कभी देश और प्रदेश तो क्या 20 - 25 किलोमीटर दूरी के दायरे की घटनाओं से अपरिचित रहते थे। ये भी देखा जाने लगा है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर जिस तरह की चर्चा पहले केवल शहरी शिक्षित वर्ग के बीच सीमित हुआ करती थी उसका विस्तार अब कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों तक जा पहुंचा है। मप्र राजनीतिक दृष्टि से बेहद शांत और संयमित माना जाता है। दो दलीय राजनीति के कारण यहाँ न तो ज्यादा जातिगत गोलबंदी नजर आती है और न ही सामाजिक स्तर पर किसी तरह की वैमन्स्यता।  वनवासी क्षेत्र अब पहले जैसे तो नहीं रहे क्योंकि सड़क और बिजली की वजह से वहां की जीवन शैली भी बदली है लेकिन अभी भी वहां विकास का सूर्योदय शहरों की तुलना में कम ही हुआ है। उसके बावजूद भी आदिवासी कहे जाने वाले मतदाताओं को राजनीतिक तौर पर अपरिपक्व मानने वाली अवधारणा के लिये कोई जगह नहीं रही। इसी तरह  ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में भागीदारी के प्रति इच्छा जाग्रत हुई है। एक समय था जब महिलाएं राजनीतिक मामलों में उदासीन समझी जाती थीं। लेकिन बदले हुए सामाजिक माहौल में वे भी पुरुषों की तुलना में पूर्वापेक्षा काफी जागरूक और मुखर हो उठी हैं। इन सबके समन्वित प्रयासों का ही असर है कि डेढ़ दशक पहले तक बीमारू कहे जाने वाले मप्र में अपने अधिकारों के प्रति जनचेतना का उल्लेखनीय विकास हुआ है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी इसका प्रमाण सामने आया था लेकिन उस वक्त का मौसम बड़ा ही सुहावना होने से मतदान करने में सहूलियत बनी रही लेकिन इन दिनों सूर्य से बरस रही आग की तपिश ने समूचे जनजीवन को जिस तरह से अस्तव्यस्त कर रखा है उससके बावजूद भी रिकार्ड तोड़ मतदान ने देश की राजनीति में मप्र के महत्व को बढ़ा दिया है। जाति, भाषा और क्षेत्रीयता से उपर उठकर मप्र में दो दलीय राजनीति की वजह से राजनीतिक अनिश्चितता भी तुलनात्मक दृष्टि से कम है। हालाँकि सपा, बसपा और गोंगपा जैसी पार्टियों की मौजूदगी भी रहती है लेकिन उनका प्रभावक्षेत्र बेहद सीमित होने से वे राजनीति की दिशा तय करने में सक्षम नहीं हैं। यही वजह है कि मुख्य संघर्ष भाजपा और कांग्रेस के बीच केन्द्रित रहता है। एक दौर था जब वामपंथी भी थोड़ी से हैसियत रखते थे लेकिन कालान्तर में उनका आभामंडल पूरी तरह लुप्त हो गया। इंदौर जैसे शहर का प्रतिनिधित्व कामरेड होमी दाजी ने लम्बे समय तक संसद में किया। ये सब देखते हुए गत दिवस लगभग 74 फीसदी का औसत मतदान इस बात का प्रमाण है कि देश के मौजूदा राजनीतिक विमर्श में मप्र के मतदाता पूरी जागरूकता के साथ हिस्सेदारी करने तत्पर हैं। अभी केवल छह सीटों का मतदान हुआ है और 23 का बाकी है। उम्मीद की जा सकती है कि देश का ह्रदय प्रदेश अगले चरणों में भी ऐसी ही जागरूकता का परिचय देगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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