Friday 5 April 2019

आर्थिक मोर्चे से आशाजनक संकेत


भारतीय रिजर्व बैंक ने वही किया जिसकी अपेक्षा थी। कल मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती  करते  हुए उसे घटाकर 6 फीसदी पर ले आया गया। इसका सीधा-सीधा अर्थ होता है बैंकों से मिलने वाले कर्ज का सस्ता हो जाना। रिजर्व बैंक के पिछले गवर्नरों से मोदी सरकार का इस मसले पर काफी टकराव होता रहा। जब भी सरकार ने ब्याज दरें घटाने के साथ ही नगदी की तरलता बढ़ाने की बात कही तब-तब विपक्ष ने उसे रिजर्व बैंक की स्वायत्तता में दखलंदाजी मानकर सरकार की आलोचना की। वर्तमान गवर्नर को सरकार समर्थक, माना जाता है। यही वजह रही कि बीते दो महीने में रेपो रेट में आधा फीसदी की कटौती देखने मिली। उद्योग-व्यापार जगत इससे संतुष्ट होता है क्योंकि ऋण सस्ते होने से बाजार में मांग बढ़ती है जिसका अनुकूल प्रभाव मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर पड़ता है। देश में महंगी ब्याज दरों की वजह से कारोबारी जगत नाराज था। लेकिन रिजर्व बैंक की एक चिंता  महंगाई को लेकर भी रहती  है। बाजार में मुद्रा की अधिक उपलब्धता से महंगाई बढ़ती है और उस वजह से छोटा उपभोक्ता संकट में आ जाता है। मोदी सरकार ने सरकार के राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखते हुए महंगाई को काफी हद तक रोके रखा। मुद्रास्फीति को काबू में रखते हुए जो वित्तीय अनुशासन बनाये रखा गया उसकी वजह से उपभोक्ता बाजार आम जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप चला। हालाँकि नोटबंदी और जीएसटी के कारण लम्बे समय तक पूरी अर्थव्यवस्था उथल-पुथल और अनिश्चितता में फंसी रही लेकिन सरकार ने धीरे-धीरे ही सही पर जीएसटी की दरों में समुचित परिवर्तन करते हुए उन्हें जन अपेक्षाओं के अनुरूप घटा दिया जिससे अधिकतर चीजें बेहद सस्ती हुईं। जिसका असर मांग बढने के रूप में देखने मिला और शायद इसी का परिणाम है कि मेन्युफेक्चरिंग सेक्टर में हालिया महीनों में स्थिति सुधरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली भी यही रही है कि वे चुनाव के बाद पहले चार वर्ष कड़ी आर्थिक नीतियाँ अपनाते हुए विकास कार्यों पर जोर देते हैं और चुनावी वर्ष में राजनीतिक दृष्टि से लचीलापन प्रदर्शित करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में  रिकार्ड गिरावट के बावजूद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी नहीं करने की वजह से उनकी सरकार को काफी आलोचनाएं झेलनी पड़ीं। लेकिन प्रधानमन्त्री ने उनसे विचलित हुए बिना इन्फ्रा स्ट्रक्चर के कामों में काफी धन लगाया और उसके सुपरिणाम भी देश के सामने हैं। 2004 से 2014 के बीच रक्षा खरीदी को लेकर मनमोहन सरकार द्वारा बरती गई उदासीनता के कारण सेना की मारक क्षमता काफी घट गई थी। सत्ता में आते ही मौजूदा सरकार ने इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया। लेकिन बीते कुछ महीनों में चुनावी मोड में आते हुए प्रधानमन्त्री ने आम जनता को खुश करने वाले तमाम कदम उठाने शुरू कर दिए। इसीलिए फरवरी में प्रस्तुत बजट के अंतरिम होते हुए भी तमाम ऐसी सौगातें जनता को दी गईं जिनकी लम्बे समय से प्रतीक्षा की जा रही थी। आयकर छूट, किसानों को नगद राशि, पाँच लाख तक का मुफ्त इलाज जैसी तमाम योजनाओं से निम्न एवं मध्यम वर्ग को संतुष्ट करने का प्रयास किया गया। जाहिर है इनसे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा किन्तु दूसरी तरफ  देखने वाली बात ये भी है कि विकास दर को 7 फीसदी से थोड़ा ऊपर रखने में भी सरकार ने कामयाबी हासिल की। इन स्थितियों के कारण यदि रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में पिछले दो महीनों में आधे प्रतिशत की कमी की तो वह ऊंट के मुंह में जीरा जैसी होने के बाद भी स्वागतयोग्य है। हाल ही में रियल एस्टेट सेक्टर को जीएसटी में बड़ी राहत दिए जाने के बाद रेपो रेट में कमी से देश की अर्थव्यवस्था में लम्बे समय तक चला ठहराव दूर हो सकता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि बैंक घटी हुई ब्याज दरों का लाभ उपभोक्ता को देने में भांजी न मारें। एक बात और जो विचारणीय है वह गृह निर्माण पर दिये जाने वाले ऋण की ब्याज दर। यद्यपि वह घटते हुए 8 और 8.5 फीसदी के इर्द गिर्द घूम रही है लेकिन यदि उसे और घटाकर 5 और 6 फीसदी तक ले आया जावे तो इससे रियल एस्टेट सेक्टर में जबर्दस्त उछाल आने की पूरी-पूरी सम्भावना बनेगी जिसका अनुकूल प्रभाव समूची अर्थव्यवस्था पर पडऩा अवश्यम्भावी है। इससे सबसे बड़ा लाभ होगा रोजगार के सृजन में क्योंकि कृषि के क्षेत्र में बेरोजगार हो रहे श्रमिकों के लिए यही सेक्टर मददगार बन सकता है। हालाँकि चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद केंद्र सरकार अब ऐसे बड़े निर्णय नहीं ले सकती जो मतदाताओं को लुभाने वाले माने जावें लेकिन पूंजी बाजार में जिस तरह से उछाल आ रहा है उसे देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि उद्योग और व्यापार जगत इस सरकार की नीतियों से संतुष्ट होता लगता है। यद्यपि मतदान के सात चरणों और विभिन्न राज्यों की अलग राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर चुनाव परिणाम के बारे में पक्का अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी लेकिन बीते कुछ महीनों से आर्थिक क्षेत्र में जो आशाजनक हालात नजर आने लगे हैं वे इस बात के प्रति आश्वस्त जरूर करते हैं कि विश्व की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था का दावा निराधार नहीं है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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