Tuesday 23 April 2019

बलि के बकरे तलाशने से काम नहीं चलेगा

मप्र की सरकार आजकल बिजली विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के पीछे पड़ी हुई है। बड़ी संख्या में उनका निलम्बन किया जा रहा है। इसकी वजह किसी प्रकार का भ्रष्टाचार नहीं अपितु बिजली आपूर्ति में आ रहा व्यवधान है। राज्य की नई सरकार को संदेह है कि विद्युत आपूर्ति की स्थिति को बिगाडऩे के पीछे राजनीतिक षडय़ंत्र है जिसका उद्देश्य लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की छवि खराब करना है। ये भी कहा  जा रहा है कि भाजपा से जुड़े अधिकारी और कर्मचारी जानबूझकर बिजली की आपूर्ति को बाधित कर भाजपा को ये प्रचार करने का अवसर दे रहे हैं कि कांग्रेस की सरकार लौटते ही दिग्विजय सिंह के जमाने का अंधेरा दौर वापिस आ गया है। स्मरणीय है 2003 के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सरकार का सूपड़ा साफ होने के पीछे बिजली भी बहुत बड़ा मुद्दा रहा। ये भी सच है कि पिछली सरकार ने जैसे भी किया हो लेकिन प्रदेश के गाँव-गाँव तक बिजली पहुँचाने में सफलता प्राप्त की थी। कमलनाथ सरकार के आते ही ज्योंही बिजली जाने-आने का झंझट शुरू हुआ त्योंही आम जनता में नई सरकार के प्रति असंतोष फैलने लगा। यदि लोकसभा चुनाव नहीं आये होते तब शायद बिजली महकमे पर इतनी जल्दी निगाहें टेढ़ी नहीं हुई होती लेकिन सिर मुंड़ाते ही ओले पडऩे जैसी स्थिति की वजह से कमलनाथ सरकार ने चाबुक चलाना शुरू तो कर दिया लेकिन उसे ये बात समझनी होगी कि सौ-दो सौ लोगों को निलम्बित करने मात्र से उसकी छवि नहीं सुधरने वाली। बिजली विभाग में भ्रष्टाचार और कामचोरी कम नहीं है लेकिन इसके लिए केवल कर्मचारी और अधिकारी ही नहीं बल्कि राजसत्ता भी जिम्मेदार है। प्रदेश में बिजली की कमी नहीं होने के बाद भी यदि उसकी किल्लत है तब ये,माना जा सकता है कि बिजली विभाग के मंत्री और उनके निकट सलाहकार भी बराबर के दोषी हैं। यदि भाजपा समर्थक मानकर इस तरह कर्मचारियों को प्रताडि़त किया जायेगा तो कल को अन्य विभागों में भी सरकार को ऐसी ही आशंका परेशान करती रहेगी। बेहतर हो राज्य सरकार बलि के बकरे तलाशने की बजाय अपनी प्रशासनिक शैली  पर ध्यान दे। उसे ये याद रखना चाहिये कि नौकरशाही वह घोड़ा है जो सवार की कुशलता और क्षमता के अनुसार दौड़ता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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