Tuesday 23 April 2019

काँग्रेस : बीच लड़ाई में मनोबल गिराने वाली बातें

मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ के राजनीतिक चातुर्य पर कोई भी संदेह नहीं कर सकता। लम्बे संसदीय जीवन के साथ ही बतौर केन्द्रीय मंत्री उनकी कार्यकुशलता का विरोधी भी लोहा मानते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में उनकी गिनती होती है। प्रदेश के एक और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के विपरीत श्री नाथ कभी भी विवादग्रस्त बयान नहीं देते। ऐसे में विगत दिवस उनके एक बयान ने सियासी क्षेत्रों में हलचल मचा दी कि मौजूदा लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद कांग्रेस को बहुमत नहीं मिलेगा और चुनाव बाद गठबन्धन की स्थिति बनेगी। हालांकि वे ये भी कह गए कि भाजपा भी बहुमत की सीमा रेखा नहीं छू सकेगी तथा एनडीए के बाहर के गैर कांग्रेसी दल उसे समर्थन नहीं देंगे। कमलनाथ के कहने का आशय ये था कि नरेंद्र मोदी सरकार नहीं बना पायेंगे। लेकिन उनका ये कहना कि कांग्रेस को बहुमत नहीं मिलेगा भले ही सत्य को स्वीकार करना हो लेकिन बीच लड़ाई में जब सेनापति स्तर का कोई व्यक्ति ही अपने पक्ष की सफलता में संदेह व्यक्त करे तब विरोधी पक्ष का मनोबल और बढ़़ता है। उल्लेखनीय है राकांपा के अध्यक्ष शरद पवार भी कुछ दिन पूर्व एक समाचार चैनल को दिए  साक्षात्कार में स्वीकार कर चुके हैं कि नरेंद्र मोदी का बहुमत नहीं आ रहा और कांग्रेस की सदस्य संख्या  100 से उपर चली जायेगी लेकिन राहुल के प्रधानमंत्री बनने की सम्भावना को वे पूरी तरह नकार गये। श्री पवार कांग्रेस के सबसे बड़े गठबंधन सहयोगी हैं और एक जमाने में प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे हैं। उनके अलावा कांग्रेस के कुछ और नेतागण भी  बातचीत के दौरान सार्वजानिक तौर पर श्री मोदी के बहुमत से पिछडऩे की आशंका जताने के बाद भी कांग्रेस के बहुमत और राहुल के प्रधानमंत्री बनने के प्रति जरा भी आश्वस्त नहीं हैं। इसकी एक झलक भाजपा छोड़ ताजे-ताजे कांग्रेसी बने शत्रुघ्न सिन्हा के लखनऊ में दिए गये  उस बयान से मिली जिसमें उन्होंने कांग्रेस को बहुमत नहीं मिलने की बात तो नहीं कही लेकिन प्रधानमंत्री बनने के लिए राहुल गांधी की बजाय अखिलेश यादव और यहाँ तक कि मायावती को उपयुक्त बताते हुए सपा-बसपा गठबंधन की तारीफ में भी कसीदे पढ़ डाले। सर्वविदित है कि शत्रु की पत्नी लखनऊ से राजनाथ सिंह के विरुद्ध सपा उम्मीदवार हैं। इन सब बयानों से एक निष्कर्ष तो निकलता ही है कि एनडीए भले ही बहुमत के जादुई आंकड़े को न छू सके  सके लेकिन कांग्रेस तो उसके पास तक नहीं फटक सकेगी। और इस आधार पर राहुल के प्रधानमंत्री बनने की सम्भावनाएं क्षीण से क्षीणतर रहेंगी और यही इस चुनाव की वह पहेली है जिसे बूझने में बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों को पसीना आ रहा है। हालाँकि कांग्रेस काफी सीटों पर चुनाव लड़ रही है लेकिन उप्र और बिहार में वह मुख्य प्रतिद्वंदी नहीं बन सकने की वजह से बहुमत की दौड़ से मुकाबला शुरू होने के पहले ही बाहर नजर आने लगी। ऊपर से शरद पवार, कमलनाथ और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे लोगों के बयानों के अलावा भाजपा विरोधी अन्य क्षेत्रीय दलों की तरफ से राहुल और कांग्रेस दोनों को लेकर आने वाले बयान रही सही कसर पूरी कर देते हैं। क्षेत्रीय दलों में अपनी दम पर सबसे ताकतवर मामता बैनर्जी तो राहुल को बच्चा तक कहकर उनका उपहास कर चुकी हैं। वहीं उप्र में अखिलेश यादव और मायावती कांग्रेस की खुलकर आलोचना करने के साथ ही राहुल को किसी भी तरह का भाव नहीं दे रहे। इन सबका ही परिणाम है कि महीनों पहले से मोदी सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोलकर बैठे कांग्रेस अध्यक्ष अभी तक प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष तो क्या अपनी पार्टी के भीतर ही भरोसा स्थापित नहीं कर पाए। राजनीति के विश्लेषक ये मानकर चल रहे हैं कि ऐसी ही स्थिति 1971 में थी जब विपक्ष ने इंदिरा गांधी को घेरने के लिये आसमान सिर पर उठा लिया था लेकिन उसके पास न तो कोई साझा रणनीति थी और न ही कोई सर्वमान्य चेहरा। जिसकी वजह से इंदिरा जी को प्रचंड बहुमत हासिल हो गया था। इसमें कोई दो मत नहीं हो सकते कि यदि कांग्रेस समूचे विपक्ष को गोलबंद करते हुए साझा मोर्चा बनाने में सफल हो जाती तब आज भाजपा के माथे पर बूंदों की जगह पसीने की धार बह रही होती। शरद पवार और उनके बाद कमलनाथ जैसे जिम्मेदार नेता के बयानों से कांग्रेस की मारक क्षमता के कमजोर होने की बात सहज रूप से सामने आ गई है। मतदान के तीसरे चरण के पहले मप्र के मुख्यमंत्री का बयान किस रणनीति का हिस्सा है ये तो वे ही बेहतर बता सकेंगे लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष के मप्र दौरे के एक दिन पहले दिया उनका बयान कई रहस्यों को जन्म देने वाला है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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