Thursday 4 April 2019

हरिश्चन्द्र के इन अवतारों को राष्ट्रीय सम्मान दिया जावे!

एक नये नवेले टीवी चैनल के खबरखोजी पत्रकारों ने देश के कुछ वर्तमान और पूर्व सांसदों से दिल की बात उगलवाते हुए ये कहलवा लिया कि चुनाव में काले धन का बेतहाशा उपयोग वे करते हैं और आगामी चुनाव में में भी करोड़ों फूंकने की तैयारी है। इसके लिये अज्ञात लोगों से पैसा लेने और हवाला जैसे कारोबार से भी उन्हें परहेज नहीं है। प्रश्न पूछने और बाकी दूसरे उपकारों के बदले भी धन स्वीकारने जैसी बातें माननीयों के श्रीमुख से निकलीं। टीवी चैनल द्वारा किये गये इस स्टिंग आपरेशन की चपेट में भाजपा, कांग्रेस, सपा, राजद, अकाली, आम आदमी पार्टी, लोजपा और पप्पू यादव जैसे सांसद आ गये। चैनल द्वारा किये गए खुलासे के बाद बवाल मच गया। चूँकि उक्त चैनल अभी ज्यादा लोकप्रिय नहीं है फिर भी बात जंगल में आग की तरह फैलती गई और सभी पार्टियों के बड़े नेताओं की जुबान पर ताले लटक गए। जिन सांसदों के चेहरों पर बदनामी की कालिख पुती उनमें से कुछ तो प्रतिक्रिया देने से बचते नजर आये वहीं कुछ ने चैनल पर कार्रवाई करने जैसी दम भी दिखाई। खबर है उनमें से कुछ की टिकिट लफड़े में फंस सकती है वहीं चुनाव आयोग भी इस स्टिंग का संज्ञान लेकर कार्रवाई कर सकता है। इस खुलासे में लगभग सभी ने ये स्वीकारा कि चुनाव आयोग द्वारा स्वीकृत खर्च की सीमा केवल दिखावा है और असलियत में चुनाव पर 15-20 करोड़ रु. आसानी से खर्च हो जाते हैं। वैसे उन लोगों ने जो भी कहा वह सत्य है और सत्य के सिवाय कुछ भी नहीं है। ऐसा नहीं है कि चुनाव आयोग को इस बाबत कुछ पता नहीं हो। वह चुनावों में काले धन के उपयोग को रोकने के लिए भरसक कोशिश करता है। टी एन शेषन ने चुनाव आयोग को उसके अधिकार और शक्तियों का जो स्मरण कराया उसके बाद से ये संस्था चर्चित और प्रभावशाली हो गई। आदर्श आचार संहिता लागू होते ही देश का वातावरण जिस तरह बदलता है वह देखकर आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता भी होती है लेकिन हमारे देश में भ्रष्टाचार और कानून का उल्लंघन चूँकि चरित्र का हिस्सा बन चुका है इसलिए जिसे, जहां और जैसे भी अवसर मिलता है वह कानून की धज्जियां उड़ाने पर आमदा हो जाता है। गत दिवस सामने आये स्टिंग आपरेशन में जिन वर्तमान और पूर्व सांसदों ने चुनावी खर्च और उसके इंतजाम के बारे में जो जानकारी दी उससे किसी को आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि ये तो ऐसा सच है जिसे औसत बुद्धि वाला भी जानता है। जिस तरह से हमारे देश में झूठ बोलने के लिए स्टाम्प पेपर पर शपथ पत्र का उपयोग धड़ल्ले से होता है उसी तरह से चुनाव आयोग को दी जाने वाली खर्च संबंधी जानकारी सफेद झूठ के पुलिंदे से ज्यादा और कुछ भी नहीं होती । यद्यपि  जिन लोगों के स्टिंग सामने आये उनका राजनीतिक कैरियर खतरे में माना जा सकता है किन्तु कानून जब तक उन्हें दोषी न मान ले तब तक वे सीना तानकर सियासत करते रहेंगे। मतदाता जब जेल में बंद कुख्यात अपराधी तक को लाखों मतों से जितवा देते हैं तब इन बेचारे नेताओं का अपराध तो केवल ये है कि उनने सत्य बोलने का साहस किया। उस लिहाज से सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के इन आधुनिक अवतारों का तो दिल्ली के लाल किले की प्राचीर पर सार्वजानिक अभिनन्दन होना चाहिए। यही नहीं संसद के केन्द्रीय कक्ष में इनका आदमकद चित्र भी लगाया जावे जिससे कि शेष सांसद भी इनसे प्रेरणा लेकर अपने मन में छिपाकर रखे वे राज उजागर कर सकें जो भारतीय लोकतंत्र का कड़वा सच है। दरअसल हमारे देश में राजनीति सबसे बड़ा उद्योग बन गई है। अर्थशास्त्र के नियमों के मुताबिक उद्योग में पूंजी का निवेश होता है। और यह निवेश लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जाता है। राजनीति भी इसी रास्ते पर चलते हुए पूंजी और लाभ अर्जित करने का खेल बनकर रह गई है। संदर्भित टीवी चैनल ने तो गिनती भर मौजूदा और भूतपूर्व सांसदों की पोल खोली लेकिन हांडी के इन कुछ चावलों से सियासत नामक पूरी खिचड़ी का अंदाज लगाया जा सकता है। 50 से 70 लाख में लोकसभा चुनाव लडऩे जैसी बात पर तो हंसी भी नहीं आती क्योंकि इतनी रकम तो कई उम्मीदवार स्थानीय निकायों के चुनाव में पार्षद बनने पर खर्च कर देते हैं। यदि हमारे देश में सांसदों-विधायकों को मिलने वाले वेतन-भत्ते तथा अन्य सुविधाए बंद कर दी जावें तब भी इन पदों पर आने के लिए मारामारी इसी तरह चलती रहेगी। उसकी वजह भी किसी से छिपी नहीं है। केवल चुनाव ही नहीं काला धन तो सियासत का पर्यायवाची बन गया है। महात्मा गांधी होते तो चुनाव लडऩे के लिए उन्हें भी वही सरे दंद-फंद करने पड़ते जिनका खुलासा गत दिवस हुआ। ये स्टिंग नहीं आता तब भी सभी जानते थे कि चुनाव कैसे लड़े जाते हैं। उसमें काले धन की जरूरत क्यों पड़ती है ये भी सर्वविदित है। शराब बांटना तो बहुत छोटी बात है। गौरतलब ये है कि जब राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में खुलकर मतदाताओं को घूस देने जैसे आश्वासन देते हों तब प्रत्याशी को भला वैसा करने से कैसे रोका जा सकता है? चुनाव आयोग को चाहिए कि वह इन सांसदों को चुनाव लडऩे से अयोग्य ठहराते हुए उचित दण्ड भले दे दे लेकिन इन सबको मिलाकर एक समिति भी बना दे जो इस बात की रिपोर्ट संसद और आयोग को सौंपे कि चुनाव खर्च की वास्तविक सीमा कितनी होनी चाहिए? अब जबकि गलती से ही सही सच्चाई उजागर हो गई है तब उसे स्वीकार कर लेने में कुछ भी बुरा नहीं है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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