Saturday 27 April 2019

राहुल तब गलत थे या अब

गत दिवस बिहार के समस्तीपुर में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब कहा कि भाजपा द्वारा लालू और उनके परिवार के अपमान का बदला बिहार की जनता लेगी तब 27 सितम्बर 2013 की वह घटना मानस पटल पर आकर तैरने लगी जब दिल्ली में एक पत्रकार वार्ता के दौरान राहुल ने मनमोहन सिंह सरकार द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गये उस अध्यादेश का मजमून फाड़कर सनसनी मचा दी जो उन दागी सांसदों और विधायकों को चुनाव लडऩे की छूट प्रदान करने के लिए जारी किया जाना था जो 2 वर्ष या उससे अधिक की सजा प्राप्त होने के कारण चुनाव लडऩे से वंचित कर दिए गए थे। उस अध्यादेश का असली उद्देश्य लालू प्रसाद यादव को बचाना था जो चारा घोटाले में सजा हो जाने के बाद मंत्रीमंडल और संसद दोनों से बाहर हो गये थे। उल्लेखनीय है उसे राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजकर प्रधानमंत्री विदेश चले गये थे। राहुल उस वक्त पार्टी के उपाध्यक्ष थे लेकिन सोनिया गांधी ने धीरे-धीरे उन्हें सारे अधिकार सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। कांग्रेसजन भी उनमें ही भविष्य का अध्यक्ष देखने लग गये और मनमोहन सिंह भी कोई अपवाद नही थे। ऐसे में सरकार द्वारा तैयार अध्यादेश राष्ट्रपति को भेजे जाने के बाद पार्टी के सबसे ताकतवर नेता द्वारा पत्रकार वार्ता में गुस्से का अभिनय करते हुए फाड़े जाने से उनकी अपनी सरकार की जबरदस्त किरकिरी हो गई। राहुल ने उस नाटकीय कृत्य से अपनी ईमानदार और भ्रष्टाचार विरोधी छवि बनाने का प्रयास किया था। दरअसल वह समय आते तक ईमानदार छवि वाले प्रधानमन्त्री डा. सिंह की सरकार भ्रष्टाचार के अनेक मामलों में घिर चुकी थी। लेकिन जिस अध्यादेश को मंत्रीपरिषद की मन्जूरी के बाद राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए भेजा गया उस पर कांग्रेस पार्टी की सहमति नहीं रही होगी ये मान लेना कठिन है। ख़ास तौर पर मनमोहन सिंह जैसा व्यक्ति इतना दुस्साहसी हो ही नहीं सकता था कि वह इतना बड़ा नीतिगत निर्णय अपने दम पर ले लेता जिससे सरकार की खराब छवि और भी खराब होने का खतरा था। राहुल को उसके बारे में नहीं पता होगा ये भी अविश्वसनीय लगता है। और यदि नहीं पता था तब वे प्रधानमन्त्री से कहकर अध्यादेश को राष्ट्रपति भवन से वापिस बुलवा सकते थे जिससे सरकार की फजीहत नहीं होती। लेकिन विशुद्ध फिल्मी शैली की स्टंटबाजी दिखाते हुए उन्होंने पत्रकारों के सामने उक्त अध्यादेश को फाड़कर फेंक दिया। उनके उस कदम के बाद कोई गैरतमंद प्रधानमन्त्री होता तो तत्काल स्तीफा देकर अलग हो जाता लेकिन मनमोहन सिंह में उतना साहस कभी नहीं रहा। बहरहाल अध्यादेश वापिस ले लिया गया। नतीजा ये हुआ कि अपराधिक प्रकरण में दो वर्ष और उससे अधिक की सजा मिलने वाले नेता चुनाव लडऩे के लिए अयोग्य होकर रह गये और परिणामस्वरूप लालू प्रसाद यादव 2014 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सके। दुर्भाग्य ने उसके बाद भी उनका पीछा जारी रखा और उन्हें दूसरे मामलों में भी लम्बी-लम्बी सजायें होने से वे जेल में हैं। हालाँकि इलाज के नाम पर अस्पताल में रहने की सुविधा उन्हें मिली हुई है जिसका भरपूर फायदा उठाकर वे राजनीति करते रहते हैं लेकिन चुनाव लडऩे का अधिकार उनसे छिन गया। चौंकाने वाली बात ये है कि जिन राहुल ने लालू को चुनावी राजनीति से बाहर करने वाला कदम उठाया था वही उनकी गोद में जा बैठे। यही नहीं तो वे उनसे मिलने अस्पताल भी जाते रहे। बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश और लालू के गठबंधन में कान्ग्रेस भी सहयोगी थी और बाद में सरकार का हिस्सा भी बनी। ऐसे में लालू का अपमान भाजपा द्वारा किये जाने का आरोप लगाने से पहले राहुल को उस वाकये को याद कर लेना चाहिए था जब उन्होंने लालू के चुनाव लडऩे की राह में अवरोध उत्पन्न कर दिए थे। राहुल गांधी को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि लालू की इस दशा का जिम्मेदार भाजपा है या वे अदालतें जिन्होंने उन्हें अपराधी मानकर जेल भिजवाया। होना तो ये चाहिए था कि कांग्रेस अध्यक्ष जिस साफ-सुथरी छवि को लेकर राजनीति में उतरे थे और जिसे प्रमाणित करने के लिये उन्होंने भ्रष्टाचारियों को बचाने वाले अध्यादेश की धज्जियां उड़ा दी थी, उसे अक्षुण्ण रखने के लिए लालू ब्रांड राजनीति से दूरी बनाकर चलते। लेकिन उन्होंने भाजपा से हिंदुत्व नामक मुद्दा छीनने की कोशिश तो जमकर की लेकिन पार्टी विथ डिफरेंस का दावा छीनने की इच्छा तक नहीं दिखाई। एक तरफ प्रधानमन्त्री के लिए चोर के नारे लगवाना और दूसरी तरफ  चारा चोर के रूप में कुख्यात और कानून द्वारा दण्डित लालू के अपमान का बदला जनता द्वारा लिये जाने की बात कहकर कांग्रेस अध्यक्ष किस ईमानदारी को प्रोत्साहित करना चाहते हैं ये बड़ा सवाल है। लालू और उनके परिवार का अपमान भाजपा ने किया इससे बड़ा मजाक क्या होगा? उनके दोनों बेटों की कारस्तानियाँ भी बिहार के लोगों की जुबान पर हैं। उसके बावजूद यदि राहुल उनके साथ गलबहियां करते घूमने तत्पर हैं तब उनके मुंह से भ्रष्टाचार की बात शोभा नहीं देती। यदि उन्हें लगता है कि लालू का अपमान हुआ और वे भाजपा द्वारा प्रताडि़त किये गये तो उसके पहले उन्हें उस अध्यादेश को फाडऩे के लिए लालू और उनके परिवार से क्षमा याचना भी करना चाहिए जिसकी वजह से चारे की चोरी के अपराधी लालू चुनावी मैदान से बाहर कर दिए गए। वाकई सत्ता की राजनीति कितनी सिद्धांतविहीन है जिसमें फंसकर इंसान अपनी ही बातें भूल जाता है। राहुल का लालू के परिवार से गठबंधन अपने ही बनाये नैतिकता के मापदंडों को अस्वीकार करने जैसा है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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