Monday 22 April 2019

गोगोई : नैतिकता के मापदंड सबके लिए समान

गत वर्ष सर्वोच्च न्यायालय के जिन चार न्यायाधीशों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के विरोध में पत्रकार वार्ता बुलाकर मोर्चा खोला था उसकी अगुआई कर रहे उनके उत्तराधिकारी रंजन गोगोई पर उनकी एक महिला सहयोगी द्वारा यौन शोषण का आरोप लगाये जाने के बाद न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर पर तो खलबली मच गई लेकिन राजनीतिक जगत में जिस तरह की चुप्पी नजर आई वह आश्चर्यजनक है। स्मरणीय है श्री मिश्र के विरुद्ध तो महाभियोग लाने तक की बातें हुईं और कांग्रेस सहित पूरी वामपंथी लॉबी ने आसमान सिर पर उठाते हुए ऐसा एहसास करवाया मानों श्री मिश्रा भाजपा की तरफदारी करने लगे हों। उस विवाद के चलते चूँकि केंद्र सरकार पर भी न्यायपालिका में हस्तक्षेप के काफी आरोप लगे थे इसलिए ये आशंका व्यक्त की जा रही थी कि मोदी सरकार श्री गोगोई की वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए किसी अन्य न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश बनायेगी। अतीत में ऐसा हो भी चुका था। लेकिन वह आशंका निर्मूल साबित हुई। श्री गोगोई के सामने राम मन्दिर और जम्मू कश्मीर की  चर्चित धारा 35 ए जैसे तमाम ऐसे चर्चित प्रकरणों पर त्वरित निर्णय करने का दबाव था जिनसे देश की राजनीति काफी गहराई तक प्रभावित होने वाली है। राम मन्दिर मसले पर तो दैनिक सुनवाई की तारीख भी तय कर दी गयी लेकिन उसे किसी न किसी वजह से टाला जाता रहा जिससे श्री गोगोई पर तरह-तरह के आरोप भी लगे। जब वह मामला मध्यस्थों को सौंपा गया तब भी विरोध के स्वर उठे । ये भी कहा गया कि वे कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की उस दलील के मुताबिक इस मामले को लम्बा खींचा जा रहा  हैं जिसमें लोकसभा  चुनाव के पहले मन्दिर-मस्जिद विवाद पर कोई फैसला नहीं करने के लिये कहा गया था। और भी कई ऐसे मामले हुए जिनमें सर्वोच्च न्यायालय की मंथर गति से श्री गोगोई के भाजपा विरोधी होने की बात हवा में तैरने लगी। बीते शनिवार को जब उन पर यौन शोषण  का आरोप लगा तब ये उम्मीद की जा रही थी कि उनके समर्थन में वामपंथी और कांग्रेसी आगे आयेंगे लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वैसा नहीं हुआ और उस पर भी श्री गोगोई का ये बयान नए संदेहों को जन्म दे गया कि न्यायपालिका की आवाज को दबाने का प्रयास हो रहा है।  लगे हाथ वे ये कहने से भी नहीं चूके कि  आगामी दिनों में उन्हें राफेल और राहुल सहित अनेक ज्वलंत प्रकरणों की सुनवाई करनी है जो वे करेंगे। जिस महिला ने उन पर आरोप लगाए उसके बारे में मिली जानकारी सही है तब ये कहा जा सकता है कि आरोप दुर्भावनापूर्ण  होने के साथ ही किसी षडय़ंत्र का हिस्सा हैं। बार काउन्सिल द्वारा मुख्य न्यायाधीश के पक्ष में आकर खड़े हो जाने के बाद केन्द्रीय वित्त मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण जेटली ने भी खुलकर न सिर्फ श्री गोगोई का बचाव किया अपितु मुख्य न्ययाधीश नामक संस्था को कमजोर करने जैसे आरोप भी लगाये किन्तु ये प्रकरण उतना सरल भी नहीं है जितना समझा जा रहा है। श्री जेटली का मुख्य न्यायाधीश के समर्थन में आना और कांग्रेस तथा वामपंथियों का मौन किसी रहस्यमय घटनाक्रम की तरफ इशारा कर रहा है । उधर एक वकील ने दावा किया है  आरोप लगाने वाली महिला के रिश्तेदार ने उनसे उसकी तरफ से पैरवी  करने के लिए डेड़ करोड़ देने तक का प्रस्ताव दिया है। श्री जेटली ने भी इसे रहस्यपूर्ण बताते हुए कहा कि ये न्यायाधीशों पर दबाव बनाने और उन्हें सुनवाई से रोकने का कुचक्र है । लेकिन इस सबसे हटकर देखने वाली बात ये है कि वे कौन सी ताकतें या लोग हैं जो श्री गोगोई को घेरकर उन्हें महत्वपूर्ण प्रकरणों की सुनवाई से दूर रखना चाहते हैं जिससे उनका निपटारा नहीं हो सके। वित्त मंत्री जैसी बातें ही मुख्य न्यायाधीश ने भी कही हैं। ऐसे में महज आरोप लगाने वाली महिला के संदिग्ध चरित्र को उजागर करने से ये आग ठंडी नहीं होगी। इसे चुनाव का मुद्दा बेशक नहीं बनाया जावे लेकिन न्याय की सर्वोच्च आसंदी पर विराजमान व्यक्ति के चरित्र पर उंगली उठने के बाद नैतिकता के और भी तकाजे अपेक्षित होते हैं। यदि ये मामला किसी अन्य न्यायाधीश अथवा शासकीय अधिकारी और उससे भी बढ़कर नेता के विरुद्ध होता तब भी क्या उसे इतनी ही आसानी से लिया जाता? सवाल और भी हैं जिनके घेरे में श्री गोगोई आये बिना नहीं रहेंगे। दीपक मिश्रा पर आरोप लगते समय उन्होंने और उनके साथी न्यायाधीशों ने जिस नैतिकता की अपेक्षा उनसे की थी वैसी ही श्री गोगोई से भी अपेक्षित है क्योंकि यहाँ प्रश्न किसी व्यक्ति का नहीं अपितु न्यायपालिका की सर्वोच्च पीठ पर विराजमान सर्वोच्च व्यक्ति के चरित्र का है। न्यायशास्त्र के अनुसार जिस तरह आरोप सिद्ध होने तक किसी को गुनहगार नहीं माना जा सकता उसी तरह ये भी सही है कि अपने ऊपर लगे आरोप की सफाई देने मात्र से कोई व्यक्ति निर्दोष साबित नहीं हो सकता, फिर चाहे वह देश का मुख्य न्यायाधीश ही क्यों न हो।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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