Tuesday 9 April 2019

संकल्प पत्र : अपनी पहिचान के प्रति ईमानदार रहे भाजपा

हालांकि कांग्रेस ने खुद ऐसा कभी नहीं किया किन्तु उसकी ये बात सही है कि सत्ताधारी पार्टी को अगले चुनाव में जनादेश मांगने के पहले अपने पिछले घोषणा/संकल्प/वचन पत्र में किये गये वायदों का हिसाब जनता को देना चाहिए। भाजपा द्वारा गत दिवस जारी अपने संकल्प पत्र में दावा किया गया कि बीते पांच वर्ष स्वर्णिम काल के रूप में गिने जायेंगे। उसकी बात कुछ मानदंडों पर सही भी हो सकती हैं किन्तु आर्थिक मोर्चे और रक्षा संबंधी निर्णयों को छोड़ दें तब उसके दावे पर संदेह की गुंजाईश और भी बढ़ जाती है। सबसे बड़े वे मुद्दे जिनकी दम पर भाजपा शून्य से शिखर तक आ पहुँची, बीते पांच वर्षों के दौरान भी फुटबाल की तरह मैदान के इस कोने से उस कोने तक लुढ़कते रहे लेकिन गोल के भीतर नहीं जा सके।  बताने की जरूरत नहीं कि राम मन्दिर, कश्मीर संबंधी धारा 370 और 35 ए जैसे विवादित विषय नरेंद्र मोदी की सरकार इन पाँच सालों के दौरान हल नहीं कर सकी। उसकी ये विफलता भी इतिहास में दर्ज होकर रहेगी। उसने कोशिश नहीं की ये कहना तो गलत होगा लेकिन किसी विद्वान का ये कथन इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है कि असफलता साबित करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया। आज़ादी के बाद पहला मौका था जब केंद्र में जनसंघ के मौजूदा अवतार भाजपा को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत मिला तथा विपक्ष भी बेहद कमजोर हालत में था। यद्यपि राज्यसभा में सरकार के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं था लेकिन उसके बाद भी तमाम ऐसे नीतिगत निर्णय रहे जिन्हें  विपक्ष की असहमति के बाद भी सरकार पारित करवाने में सफल हो गई। जहां तक बात राम मन्दिर की है तो भले ही मामला अदालत के विचाराधीन था लेकिन भाजपा के पास इस प्रश्न का कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं है कि उसने इसे जल्द हल करने के लिए कौन से ऐसे प्रयास किये जो उसकी प्रतिबद्धता दर्शाते हों। राम मन्दिर पर सरकार अध्यादेश लेकर आती और विपक्ष के साथ ही उसके अपने सहयोगी दल उसे संसद की स्वीकृति नहीं मिलने देते तब भाजपा ये कह सकती थी कि उसने तो ईमानदारी से प्रयास किये। उस सूरत में कांग्रेस सहित शेष दल जनता के सामने बेनकाब हो जाते और राहुल गांधी को हिंदुत्व की चादर ओढऩे और जनेऊ पहिनने के दावे के साथ अपना गोत्र प्रचारित करने का अवसर नहीं मिलता।  2017 में उप्र की जनता ने भाजपा की झोली में जबरदस्त समर्थन भर दिया। पहली बार गंगा-यमुना के मैदानों में भाजपा अपने बलबूते सत्ता में आ सकी। योगी आदित्यनाथ जैसे हिंदुत्व के चेहरे को सिंहासन पर बिठाकर भाजपा ने ये संदेश भी दिया कि वह अपने वायदे को पूरा करना चाह रही है लेकिन दो वर्ष बीतने के बाद भी अंतत: मामला अदालत की ड्योढ़ी में फंसा रहा और जब उससे भी बात नहीं बनी तब पंच फैसले का सहारा लेकर पिंड छुडाया गया। दो माह की समयावधि लोकसभा चुनाव पूरे होते तक व्यतीत हो जायेगी लेकिन अभी तक जो मध्यस्थ नियुक्त किये गये वे एक कदम भी आगे बढ़े हों इसकी जानकारी नहीं है। इसी तरह धारा 370 और 35 ए जैसे प्रावधानों को खत्म करते हुए जम्मू कश्मीर की विशेष हैसियत को अलविदा करने का पिछला वायदा भी राजनीतिक भूलभुलैयां  में भटकता रह गया। भाजपा ने पीडीपी के साथ सरकार बनाकर एक प्रयोग जरुर किया जिसके फायदे तो सामने नहीं आ सके लेकिन बदनामी जरूर उसके दामन से लिपट गई। मौजूदा चुनाव में भी बिहार के गठबन्धन साथी नीतीश कुमार और रामविलास पासवान भाजपा को चेता चुके हैं कि 370 से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। तमाम चुनाव पूर्व सर्वेक्षण दावा कर रहे हैं कि इस चुनाव में भाजपा अपनी दम पर बहुमत नहीं ला सकेगी। कुछ तो एनडीए के भी 272 की सीमा रेखा से पीछे रह जाने की आशंका जता रहे हैं। यदि वाकई ऐसा ही हुआ तब उक्त मुद्दों पर भाजपा की नई सरकार क्या कर सकेगी इसे लेकर संद्देह करना गलत नहीं होगा। भाजपा ने अपने ताजा संकल्प पत्र में किसानों, बेरोजगारों, दुकानदारों, विद्यार्थियों, महिलाओं आदि सभी वर्गों के फायदे के लिए कुछ न कुछ करने के आश्वासन दिए हैं लेकिन जिन विषयों का ऊपर  जिक्र किया गया उनके बारे में ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया जिससे आम जनता को ये भरोसा हो जाए कि दोबारा सत्ता में आने पर भाजपा और श्री मोदी राम मन्दिर और धारा 370 को हटाने के लिए वैसा ही साहस दिखायेंगे जैसा बाबरी ढांचे को लेकर 1992 में दिखाया गया था। उल्लेखनीय है भाजपा का संकल्प पत्र सार्वजानिक होते ही फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने भारत से अलग होने जैसी धमकी दे डाली। जरूरी है नरेंद्र मोदी खुलकर इस विषय पर भाजपा का दृष्टिकोण रखें। राम मन्दिर के बहाने उसने जिस तरह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मुख्य धारा का विषय बनाया उसी तरह से जम्मू कश्मीर संबंधी दोनों विशेष प्रावधान राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। चुनाव के समय भले ही कुछ बातें खुलकर नहीं कही जा सकतीं लेकिन भाजपा को अपने परम्परागत समर्थक वर्ग में ये विश्वास पैदा करना होगा कि दोबारा सत्ता में आने के बाद वह राम मन्दिर, धारा 370 और 35 ए को लेकर अपना वायदा किसी भी कीमत पर निभायेगी। इसके लिए उसे हर तरह का राजनीतिक खतरा उठाने और कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना होगा वरना उसकी विश्वसनीयता पर लग रहे सवालिया निशान और भी गहरे हो जायेंगे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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