Monday 26 August 2019

जी -7 सम्मलेन में भारत की मौजूदगी अच्छा संकेत

संयुक्त अरब अमीरात द्वारा प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान आर्डर ऑफ़ जायद प्रदान करने के बाद जी-7 देशों के समूह का सदस्य न होने के बाद भी भारत को फ्रांस में हो रहे उसके सम्मेलन में आमंत्रित किया जाना वैश्विक स्तर पर देश के बढ़ते महत्व का परिचायक है। संयुक्त अरब अमीरात में श्री मोदी को सम्मानित किये जाने पर पाकिस्तान की नाराजगी से जाहिर हो गया कि उसे भारत का बढ़ता प्रभाव बर्दाश्त नहीं हो रहा। कश्मीर के मौजूदा हालातों के मद्देनजर जी-7 देशों के सम्मलेन में भारत के प्रधानमन्त्री की उपस्थिति और भी मायने रखती है। विशेष रूप से तब जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से मिलने के बाद कश्मीर विवाद में मध्यस्थता के लिए उतावले हुए जा रहे हैं। उसके अलावा दुनिया के सबसे ताकतवर देशों के राष्ट्रप्रमुख भी वहां उपस्थित हैं। आर्थिक मंदी के इस माहौल में दुनिया की प्रमुख आर्थिक महाशक्तियां नीति निर्धारण के मामले में भारत को भी यदि हिस्सेदार बना रही हैं तो इससे ये सिद्ध होता है कि विकासशील होने के बावजूद भारत अब विकसित देशों की बराबरी से बैठने की हैसियत हासिल कर चुका है और दक्षिण एशिया में चीन के समकक्ष महत्व उसे प्राप्त हो रहा है। हालाँकि इसका प्रमाण आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में संरासंघ द्वारा भारत को प्रदत्त समर्थन से भी मिल चुका था। चीन के जबर्दस्त विरोध को नजरअंदाज करते हुए विश्व संस्था ने पकिस्तान में बैठे हाफिज सईद को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया। पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत द्वारा बालाकोट में की गयी हवाई सर्जिकल स्ट्राइक और उसके बाद अभिनंदन की रिहाई तक के घटनाक्रम में भारत को जिस तरह का कूटनीतिक समर्थन पूरी दुनिया से मिला वह अभूतपूर्व था। सबसे बड़ी बात ये रही कि चीन भी अब पकिस्तान को पहले जैसा संरक्षण नहीं दे रहा। उसकी एक वजह ये भी है कि वह विश्व मंच पर अकेला पडऩे लगा है। सुरक्षा परिषद में पकिस्तान की अर्जी पर कश्मीर पर हाल ही में हुई अनौपचारिक बैठक में भी उसे मुंह की खानी पड़ी। श्री मोदी ने राष्ट्रपति ट्रम्प से फोन पर लम्बी बातचीत करते हुए भारत का पक्ष समझाया जिसके बाद उनहोंने इमरान खान को भारत विरोधी बयान देते समय संयम बरतने की सलाह दे डाली। जी-7 सम्मेलन में भारत को विशेष तौर पर बुलाया जाना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे आर्थिक शीत युद्ध का सबसे ज्यादा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव भारत पर ही हो रहा है और आगे भी होने की आशंका है। आज ही खबर आ गयी कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने अमेरिकी कम्पनियों और कारोबारियों को चीन से बोरिया-बिस्तर समेटने की हिदायत दे डाली है। इस फैसले से विश्व की अर्थव्यवस्था में भारी उथलपुथल की सम्भावना है। भारत चूँकि चीन का निकट पड़ोसी और एक तरह से प्रतिद्वंदी भी है इसलिए अमेरिका के कड़े फैसलों का भारत पर असर पडऩा अवश्यम्भावी है इसलिए भी जी-7 में भारत के प्रधानमंत्री की मौजूदगी का रणनीतिक महत्व है। राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को भी श्री मोदी साथ ले गए हैं और जैसी खबर है उसके मुताबिक कश्मीर के बारे में विश्व के ताकतवर देशों के सामने भारत का पक्ष दृढ़ता के साथ रखने की पूरी तैयारी कर ली गई है। चूँकि पाकिस्तान के अंदरूनी हालात बहुत ही अस्थिर हैं और इमरान सरकार पर सेना का दबाव बढ़ता ही जा रहा है वहीं सीमा पर तनाव में भी वृद्धि हो रही है। जनरल बाजवा के कार्यकाल में तीन साल की बढ़ोतरी से ये उजागर हो गया है कि चुनी हुई सत्ता पूरी तरह से मजबूर है और इन स्थितियों पर भारत के साथ युद्ध भड़काने की कोशिश पाकिस्तान कर सकता है जिसके बाद सेना तख्तापलट की परम्परा का निर्वहन करे तो आश्चर्य नहीं होगा। बहरहाल उस सबके पूर्व कश्मीर के हालिया घटनाक्रम को लेकर पाकिस्तान और चीन के प्रलाप को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख़ास तवज्जो नहीं मिलना और उसके बाद जी-7 देशों के सम्मलेन में भारत की शिरकत का तात्कालिक कूटनीतिक प्रभाव तो पड़ेगा ही, एशिया की राजनीति पर उसका दूरगामी असर भी होगा। आर्थिक मंदी की चपेट में भारत भी जिस तरह से आ रहा है उसे देखते हुए इस सम्मेलन में श्री मोदी के मौजूद रहने से निर्णय प्रक्रिया में भारत की भूमिका तो रहेगी ही उससे निबटने के लिए देश को तैयार रखने में भी मदद मिलेगी। साथ ही संरासंघ के वार्षिक महाधिवेशन के पहले कश्मीर को लेकर भारत अपना पक्ष दुनिया के ताकतवर देशों के सामने मजबूती से रख सकेगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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