Thursday 8 August 2019

भूतपूर्व होकर भी अभूतपूर्व हो गईं सुषमा

आम तौर पर विदेश मंत्री का जनता से सीधा जुड़ाव नहीं होता। लेकिन सुषमा स्वराज ने उस छवि को पूरी तरह बदलते हुए ये साबित कर दिया था कि जननेता किसी दायरे में कैद नहीं होता। सुषमा जी भारतीय राजनीति की ऐसी शख्सियत थीं जो सड़क से संसद तक एक समान प्रभावशाली थीं। लगभग चार दशक के राजनीतिक जीवन में उन्होंने जो प्यार और सम्मान अर्जित किया उसी का परिणाम है कि विदेश मंत्री जैसे पद पर रहने और सत्ता की राजनीति छोड़कर घर बैठ जाने वाली इस नेत्री के निधन पर पूरा देश शोकाकुल हो उठा। परसों शाम को कश्मीर के पुनर्गठन संबंधी विधेयक लोकसभा से पारित होने के बाद किया गया उनका ट्वीट जब तक लोगों के संज्ञान में आया तब तक सुषमा जी को मानों जीवन के मिशन का एहसास हो चुका था और कुछ देर बाद वे नहीं रहीं। राजनीति में वे सांस्कृतिक मूल्यों की सबसे प्रखर राजदूत थीं। उनका मुस्कुराता चेहरा हर मिलने वाले को संतुष्ट कर देता था। सांसद के रूप में संसदीय आचरण को उन्होंने जो उच्च स्तर प्रदान किया वह उनका अमूल्य योगदान था। अंगे्रजी के आधिपत्य वाले वातावरण में प्रांजल हिन्दी में उनका भाषण सभी को मंत्रमुग्ध कर देता था। लेकिन अंगरेजी और संस्कृत में भी जब वे बोलती थीं तब पूरा माहौल उनकी विद्वता का कायल हो जाया करता था। सुषमा जी ने पुरुषों के आधिपत्य वाली पार्टी मानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी को महिलाओं के बीच लोकप्रिय बनाने में जो योगदान दिया वह कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। ये कहना गलत नहीं होगा कि अटल ज़ी के बाद वे ही राजनीतिक जगत में हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ वक्ता थीं। विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने दुनियां भर में रह रहे भारतीयों के मन में जो विश्वास पैदा किया वह एक अभूतपूर्व अनुभव था। आम आदमी की मदद करने की जो संवेदनशीलता उन्होंने दिखाई, उसकी वजह से उनका प्रशंसक वर्ग बहुत बड़ा हो गया था। हरियाणा से शुरू उनका राजनीतिक सफर फिर दिल्ली पहुंचा और उनका अंतिम चुनावी क्षेत्र मप्र का विदिशा संसदीय क्षेत्र बना। वे दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रहीं। भाजपा के संगठन में उनकी स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण थी। वे पार्टी की उन चंद नेताओं में से थीं जिन्हें अटल जी, आडवाणी जी और नरेंद्र मोदी सभी का विश्वास प्राप्त था। वाजपेयी सरकार में वे स्वास्थ्य और सूचना प्रसारण मंत्री बनाई गईं तब सभी दलों के सांसद उनसे मिलकर संतुष्ट होकर लौटते थे। मोदी सरकार में जब उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया तब लोगों को उनकी क्षमता पर संदेह हुआ। वे भारत की पहली पूर्णकालिक महिला विदेश मंत्री थीं। लेकिन जब उन्होंने काम शुरु किया तब विरोधी तक उनकी कार्यकुशलता के प्रशंसक हो गये। संसद और संरासंघ की महासभा रही हो या और कोई वैश्विक मंच, सुषमा जी भारतीय विदेश नीति को जिस ऊंचाई तक ले गईं वह इस विषय के विद्यार्थियों के लिए अध्ययन का विषय है। राजनीतिक परिदृश्य से ओझल हो जाने के बाद भी अटल जी के बाद वे पहली ऐसी राजनेता हैं जिनके निधन पर देश का आम और खास हर वर्ग दुखी हो गया। अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता के बावजूद वे अपने विरोधियों के बीच भी बेहद सम्मानित थीं। देश की राजनीति में उनके न रहने से एक बड़ा खालीपन आ गया है। संस्कारित शालीनता और उच्च कोटि का संसदीय आचरण उनकी विरासत है जिससे राजनीति में आने के इच्छुक युवाओं को प्रेरणा लेना चाहिए। सुषमा स्वराज ने एक शानदार जीवन जिया। वे संस्कृति और संस्कृत की अनन्य भक्त थीं और गीता की अध्येता के तौर पर कर्म में विश्वास करती थीं। अंतिम साँस लेने के पूर्व कश्मीर संबंधी संसद के निर्णय का स्वागत करते हुए प्रधानमन्त्री को संबोधित ट्वीट सुषमा जी की राष्ट्रवादी सोच का अमिट दस्तावेज बनकर रह गया। बीमारी की वजह से बीते कुछ वर्षों में उनकी शारीरिक शक्ति घटती गई। खास तौर पर किडनी प्रत्यारोपण के बाद वे बहुत कमजोर हो गई थीं और उसी के चलते उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लडऩे की घोषणा कर संसदीय पारी खत्म कर दी। लेकिन देश अपेक्षा करता था कि वे संसद के बाहर रहकर भी जनता के बीच अपनी ओजस्वी वाणी से अपनी विचार यात्रा को आगे बढ़ाएंगी लेकिन 67 वर्ष की आयु में वे चली गईं।
भारतीय राजनीति में महिला सशक्तीकरण की प्रतीक बन चुकीं सुषमा जी के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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