Wednesday 14 August 2019

समय की मांग : आवाज दो हम एक हैं

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला केवल याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला के लिए नहीं वरन पूरे देश के लिए समझाइश  भरा सन्देश है। याचिका में मांग की गई थी कि जम्मू-कश्मीर से धारा 144 और कफ्र्यू हटाए जाने के साथ ही फोन, इंटरनेट सहित अन्य संचार सेवाओं पर लगे प्रतिबंध वापिस लिए जाएं। लेकिन न्यायालय ने उक्त अनुरोध को अस्वीकार करते हुए बहुत ही साफ शब्दों में कहा कि मौजूदा स्थितियों में उसका हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने स्वीकार किया कि इस तरह की असाधारण स्थिति में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए सजगता जरुरी है। पीठ ने ये टिप्पणी करते हुए हस्तक्षेप से इनकार कर दिया कि किसी भी तरह की ढील दिए जाने पर यदि हालात खराब हुए तो उसकी जवाबदारी कौन लेगा? सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि आतंकवादी बुरहान बानी के मारे जाने के बाद हुए उपद्रवों से बिगड़ी स्थिति को सामान्य बनाने में तीन माह लग गये थे। इस दलील को स्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने सरकार को पर्याप्त समय दिए जाने की मांग स्वीकार करते हुए याचिका को रद्द नहीं किया और 15 दिन बाद फिर सुनवाई करने कह दिया ताकि हालातों की समीक्षा हो सके। संयोगवश कल ही जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच हुआ संवाद सार्वजनिक हुआ। दो दिन पूर्व श्री गांधी ने जम्मू कश्मीर की हालत बेहद खराब होने की बात कहते हुए  प्रधानमन्त्री से पारदर्शिता की अपेक्षा की थी। उसका प्रतिवाद करते हुए राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने उन्हें आमंत्रित करते हुए विमान भेजने का प्रस्ताव दे दिया। उसके जवाब में राहुल ने कहा कि उन्हें विमान की जरूरत नहीं लेकिन उनके साथ आने वाले विपक्षी प्रतिनिधिमंडल को घाटी में स्वतंत्र आवाजाही, जनता, जवानों और नेताओं से भेंट की छूट मिलनी चाहिए। जवाब में राज्यपाल ने साफ कर दिया कि श्री गांधी विपक्षी नेताओं का जमावड़ा इक_ा करते हुए मुद्दे का राजनीतिकरण  करना चाह रहे हैं जबकि उन्हें बिना किसी शर्त के आमंत्रण दिया गया था। और  भी कुछ विपक्षी नेता हैं जिन्होंने वर्तमान स्थितियों का जायजा लेने के लिए कश्मीर जाने की इच्छा व्यक्त की थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा श्री पूनावाला की याचिका पर जो टिप्पणी की उसके बाद श्री गांधी एवं बाकी विपक्षी नेताओं को कश्मीर जाने की मांग छोड़ देनी चाहिए क्योंकि मौजूदा हालातों में जरा सी गफलत सुरक्षा बलों की पूरी मोर्चेबंदी को बेकार कर  सकती है। बकरीद के दिन घाटी सहित पूरे राज्य में आम तौर पर शांति कायम ही लेकिन बीते सालों के अनुभव के आधार पर ये आशंका बनी हुई है कि कल स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर अलगाववादी ताकतें अपनी भड़ास निकाल सकती हैं। ऐसे में श्री गांधी को एक जिम्मेदार नेता के रूप में पेश आते हुए ऐसी मांग नहीं करनी चाहिये जिससे कि घाटी का वातावरण बिगड़े और अलगाववादी ताकतों के हौसले फिर बुलंद हों। अनेक अवसर ऐसे आते हैं जब राजनीति को दरकिनार रखकर देशहित को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। जम्मू कश्मीर में केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया कदम बांग्ला देश को लेकर स्व. इंदिरा जी द्वारा की गयी कार्रवाई जैसा ही है। उस समय के विपक्ष ने पूरी तरह सरकार का साथ दिया था। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा उन्हें दुर्गा बनकर शत्रुओं पर टूट पडऩे जैसी बात कहकर जिस परिपक्वता का उदहारण पेश किया उसकी पुनरावृत्ति मौजूदा परिस्थितियों में नितांत आवश्यक है। राहुल गांधी के सामने एक अवसर है, जनभावनाओं के साथ सामंजस्य बनाने का। वैसे भी ऐसे अवसरों पर पूरे देश को एक स्वर में बोलना चाहिए। कई मायनों में इस वर्ष का स्वाधीनता दिवस देश के लिय बेहद महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाये गए कदम को उसके व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। दरअसल जम्मू-कश्मीर केवल एक राज्य नहीं अपितु अत्यंत संवेदनशील सामरिक महत्व का सीमावर्ती क्षेत्र है जिसकी सीमाएं पकिस्तान और चीन दोनों से मिलती हैं और उनके साथ भारत का सीमा विवाद चला आ रहा है। कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति की वजह से वहां पनपी अलगाववादी भावनाएं बीते सात दशक से देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बनी रहीं। बीते सप्ताह इस समस्या को हल करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा जो ऐतिहासिक कदम उठाया गया उसने पाकिस्तान के साथ चीन को भी अंदर तक हिला दिया है। पाकिस्तान के प्रलाप के बावजूद दुनिया के बड़े देश भारत के विरुद्ध बोलने से बच रहे हैं जो हमारी बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा और प्रभाव का प्रमाण है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि पूरा देश कश्मीर के बारे में एक राय रखे। लोकसभा चुनाव में मिले स्पष्ट जनादेश की वजह से देश में राजनीतिक स्थिरता बनी है। जिसकी वजह से ठोस निर्णय लेने में आसानी हुई है वरना जम्मू-कश्मीर की विशेष हैसियत एक झटके में खत्म करने की हिम्मत सरकार की नहीं होती। इसलिए विपक्ष को चाहिए वह जनता की भावनाओं को महसूस करते हुए रचनात्मक सोच का परिचय दे। पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति बेहद खराब होने से ये भारत के लिए सर्वथा अनुकूल अवसर था, कश्मीर में अलगाववाद की कमर तोडऩे का। लेकिन ये उद्देश्य तभी पूरा हो सकेगा जब समूचा भारत एक आवाज में बोले। स्वाधीनता दिवस के पावन अवसर पर राष्ट्रीय एकता और दायित्वबोध की अनुभूति सबसे बड़ी आवाश्यकता है। सभी देशवासियों का चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या राजनीतिक विचारधारा के हों, कर्तव्य है कि पूरी दुनिया को ये सन्देश दें कि निर्णय की इस घड़ी में कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से सिक्किम तक भारत एक है।
स्वाधीनता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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