Monday 12 August 2019

भाजपा की आड़ में भारत का विरोध!

जम्मू कश्मीर का पुनर्गठन कर उसे प्राप्त विशेष राज्य का दर्जा खत्म करते हुए केंद्र शासित प्रदेश बनाने संबंधी फैसला हुए सप्ताह भर बीत गया। भारत सरकार के इस फैसले से पाकिस्तान बुरी तरह बौखलाया हुआ है। इमरान खान सरकार ने संसद का संयुक्त सत्र बुलाकर भारत के विरुद्ध जमकर जहर उगला। घुमा-फिराकर धमकियां भी दी गईं। भारत के साथ व्यापार सम्बन्ध खत्म करते हुए दोनों देश के बीच चलने वाली रेल गाड़ी भी रोक दी गयी। अपने उच्चायुक्त को नई दिल्ली से बुलाने के साथ ही इस्लामाबाद से भारतीय उच्चायुक्त को वापिस भेजते हुए ये भी जता दिया कि दूतावास का स्तर घटा दिया जाएगा। इसके साथ ही पाकिस्तान सरकार ने कूटनीतिक स्तर पर भी भारत के विरुद्ध मोर्चेबंदी की लेकिन अमेरिका से उसे टका सा जावाब मिल गया, वहीं चीन ने दबी जुबान समर्थन भले किया हो लेकिन कुल मिलाकर उसकी प्रतिक्रिया ठंडी ही रही। रूस ने भी इसे भारत का आन्तरिक मामला बताया। संयुक्त अरब अमीरात के दिल्ली स्थित राजदूत ने भी भारत को समर्थन दे दिया। हालाँकि कतिपय इस्लामी देशों ने थोड़ी सी नुक्ताचीनी की लेकिन मोटे तौर पर अरब देश भी निर्लिप्त दिखाई दिए। पाकिस्तान के विदेश मंत्री चीन गये जिसके बाद उन्हें संरा सुरक्षा परिषद में मदद का आश्वासन मिलने की बात कही जा रही है लेकिन भारत ने भी अपने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को बीजिंग भेजकर चीन को ठंडा करने का दांव चल दिया है। बीते एक सप्ताह में लद्दाख में तो वैसे भी जश्न का माहौल बना रहा वहीं जम्मू में अधिकतर इलाकों में कफ्र्यू हटा लिया गया तथा स्कूल कालेज खुलने से हालात पहले जैसे हो गए। रही बात कश्मीर घाटी की तो वहां बेशक सैन्य बलों की तैनाती के कारण हालात पूरी तरह काबू में रहे। इक्का-दुक्का विरोध प्रदर्शन हुए भी तो उन्हें बेअसर कर दिया गया। ये बात सही है कि संचार सुविधाएँ ठप्प होने से घाटी को लेकर पूरी जानकारी नहीं आ रही लेकिन देश के भीतर एक तबका ऐसा है जो वहां के हालात खराब होने की खबर इस आत्मविश्वास के साथ दे रहा है जैसे वह प्रत्यक्षदर्शी हो। राहुल गांधी ने गत दिवस हालात चिंताजनक बताते हुए प्रधानमन्त्री से पारदर्शिता की अपेक्षा की। वहीं दिग्विजय सिंह के मुताबिक तो प्रधानमन्त्री आग से खेलने के फेर में हाथ जला बैठे और उनकी सरकार के ताजा फैसलों के बाद कश्मीर को भारत के साथ रखना मुश्किल हो जाएगा। आज मणिशंकर अय्यर का बयान आया कि मोदी सरकार ने कश्मीर को फिलिस्तीन बना दिया। लेकिन सबसे जहर भरी टिप्पणी पूर्व गृह मंत्री पी. चिदम्बरम की है जिनके अनुसार जम्मू कश्मीर चूँकि मुस्लिम बहुल राज्य था इसलिए ये सब हुआ। उपरोक्त सभी प्रतिक्रियाओं में राजनीतिक हित तो झलकता है लेकिन राष्ट्रहित की पूरी तरह अवहेलना की गई है। बात यहीं तक सीमित नहीं है क्योंकि राजनीति से अलग हटकर भी पत्रकारों और बुद्धिजीवियों का एक वर्ग है जिसे जम्मू कश्मीर को लेकर मोदी सरकार द्वारा किया गया ऐतिहासिक निर्णय बर्दाश्त नहीं हो रहा। ये तबका वही है जो बीते पांच वर्ष से लगातार किसी न किसी बहाने से ऐसा माहौल बनाने की कोशिश में जुटा है कि देश में प्रजातंत्र खत्म हो गया है, बोलने की आजादी छीन ली गई है, संवैधानिक संस्थाओं को महत्वहीन किया जा रहा है, न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में आ गई है, धर्मनिरपेक्षता पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं तथा संघीय ढांचा चरमरा रहा है। कभी असहिष्णुता, कभी गो हत्या और कभी समूह की हिंसा को मुद्दा बनाकर गिने चुने लोग पूरे देश के प्रवक्ता बन बैठते हैं जिन्हें समाचार माध्यमों का एक समूह, विशेष तौर पर टीवी चैनल महिमामंडित करने में जुट जाते हैं। कुंठित मानसिकता के शिकार ये लोग देश में नकारात्मकता का प्रसार करते हुए व्यवस्था विरोधी माहौल बनाकर अस्थिरता फैलाने को ही अपना धर्म समझ बैठे हैं। इनके दोगलेपन का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि एक तरफ  तो ये प्रजातंत्र के खतरे में होने की रट लगाते नहीं थकते वहीं दूसरी और इन्हें देश की जनता द्वारा लगातार दो बार दिया गया स्पष्ट जनादेश भी स्वीकार नहीं है। यही वजह है कि पूरे देश की जनता एक स्वर से जम्मू कश्मीर संबंधी केंद्र सरकार के फैसले पर खुशियाँ मना रही है तब ये तबका वही कहे जा रहा है जो अलगाववादी बोलते आए हैं। कश्मीर में आग लगी है, भारत विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं, सेना के जोर पर लोगों को घरों में कैद कर दिया गया है, फोन-इंटरनेट बंद करने से वहां किसी से सम्पर्क नहीं हो पा रहा, कश्मीर को भारत में रखना मुश्किल हो जाएगा, जम्मू कश्मीर के मुस्लिम बहुल होने से ऐसा किया गया और भारत सरकार ने कश्मीर को फिलिस्तीन बना दिया जैसी टिप्पणियाँ क्या मौजूदा हालात में पाकिस्तान को ताकत नहीं देतीं? तमाम विपक्षी नेता एवं वामपंथी विचारक संसद द्वारा पारित कानून को असंवैधानिक बताकर देश विरोधी तत्वों का हौसला बढ़ाने में जुटे हुए हैं। आज ईद है, जिसके दौरान घाटी में किसी अनहोनी का अंदेशा बना हुआ है। सुरक्षा बल हर स्थिति से निपटने की इच्छाशक्ति के साथ वहां तैनात हैं। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि मोदी सरकार ने जिस धमाकेदार अंदाज में समूचे घटनाक्रम को अंजाम दिया उसका जबरदस्त मनोवैज्ञानिक असर घाटी में भी हुआ है वरना जनता सड़कों पर निकलकर विद्रोह पर उतारू हो जाती। ये भी कहा जा रहा है कि जैसे ही फोन - इन्टरनेट शुरू होंगे और धारा 144 हटेगी त्योंही वहां एक बार फिर अलगाववादी गतिविधियाँ शुरू हो जायेंगी। लेकिन जैसी कि खबर है वहां अलगाववादी नेतृत्वविहीन होने से बिखर रहे हैं। दूसरी तरफ  हिरासत में रखे गए उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बीच जमकर तू-तू , मैं-मैं होने के बाद उन्हें अलग - अलग जगह रखने की नौबत आ गयी। विवाद की वजह ये बनी कि दोनों एक दूसरे को कश्मीर में भाजपा को शक्तिशाली बानाने के लिए दोषी ठहराने लगे। ये वही नेता हैं जो 4 अगस्त को साथ जीने-मरने की कसमें खा रहे थे। लेकिन कश्मीर के बाहर देश के विभिन्न हिस्सों में बैठे विघ्नसंतोषी अभी भी ये मना रहे हैं कि केंद्र सरकार का ये दांव उल्टा पड़े जिससे उन्हें अपनी राजनीति चमकाने का अवसर मिले। राजनीतिक दलों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों को वैचारिक और सैद्धान्तिक आधार पर भाजपा का विरोध करने का पूरा-पूरा अधिकार है लेकिन जब भारत का सवाल आये तब तो कम से कम एकस्वर में बोलने का चरित्र विकसित करना चाहिए जिसके अभाव में ये देश सदियों तक गुलामी झेलने की त्रासदी भोग चुका है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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