न तो कोई बड़ी आतंकवादी घटना हुई और न ही किसी प्रकार का राजनीतिक घटनाक्रम नजर आ रहा है लेकिन जम्मू कश्मीर में एक अजीबोगरीब हलचल है। बीते कुछ दिनों से ये चर्चा पूरे देश में चल पड़ी है कि केंद्र सरकार कश्मीर सम्बन्धी अनुच्छेद 35 ए को हटाने जा रही है। ये संभावना तब और बढ़ गई जब 10 हजार अर्ध सैनिक बल अचानक घाटी में तैनात करने की मुहिम शुरू हुई। घाटी की मस्जिदों में रहने वालों की जानकारी एकत्र करने जैसे प्रशासनिक निर्णय ने भी सनसनी मचा दी। कुछ न कुछ अप्रत्याशित होने की आशंका से हर चेहरे पर चिंता की लकीरें नजर आने लगीं। लेकिन आम जनता से ज्यादा घबराहट में दिखाई दे रहे हैं फारुख और उमर अब्दुल्ला तथा महबूबा मुफ्ती के अलावा आईएएस की नौकरी छोड़कर नेतागिरी करने उतरे शाह फैसल। हुर्रियत के अनेक नेता चूंकि नजरबंदी में हैं इसलिए उनकी प्रतिक्रिया नहीं आ रही। दो दिन पहले अब्दुल्ला पिता-पुत्र प्रधानमंत्री से मिलकर कुछ ऐसा नहीं करने की विनती कर आये जिससे घाटी अशांत हो उठे। वहीं महबूबा तो कल पत्रकार वार्ता में हाथ जोडऩा इस्लाम में गुनाह होने की बात कहने के बावजूद प्रधानमन्त्री से हाथ जोड़कर ये आग्रह करती दिखाई दीं कि जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति से छेड़छाड़ करने का कोई प्रयास नहीं किया जाए। दरअसल कल ही राज्य सरकार ने सभी अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों के अलावा बाहर के सभी लोगों को जल्द से जल्द कश्मीर से निकल जाने की सलाह जारी कर दी जिससे आशंकाओं के बादल और गहरा गए लेकिन इस बारे में ये स्पष्टीकरण भी आ गया कि घाटी में किसी बड़े आतंकवादी हमले की खुफिया जानकारी मिलने की वजह से ये सावधानी बरती जा रही है। अमरनाथ यात्रा मार्ग पर पाकिस्तानी हथियार तथा भूमिगत सुरंग लगाकर विस्फोट करने के सामान की बरामदगी के कारण सुरक्षा बल और भी सतर्क और सक्रिय हो उठे लेकिन 10 हजार अतिरिक्त बल भेजे जाने से घाटी के नेताओं की नींद उड़ी हुई है । घाटी खाली कर देने की सलाह जारी होते ही आम जनता डीजल-पेट्रोल के अलावा जरूरी चीजें खरीदने दौड़ पड़ी। बैंकों के एटीएम पर भी पैसे निकलने वालों का हुजूम उमड़ पड़ा। 35 ए हटाने के साथ ही जम्मू को राज्य बनाकर घाटी और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने जैसी बात सोशल मीडिया पर छा गयी। राज्यपाल सत्यपाल मालिक ने गत दिवस सर्वदलीय बैठक बुलाकर अफवाहों पर ध्यान नहीं दने की अपील भी की लेकिन अब्दुल्ला और मुफ्ती जैसे नेताओं की घबराहट से पूरे देश में ये माना जा रहा है कि संसद का सत्र पूरा होने के बाद और स्वाधीनता दिवस के पहले केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर को लेकर कोई बड़ा नीतिगत निर्णय करने जा रही है। यद्यपि जिम्मेदार सूत्र इस बारे में एक शब्द भी नहीं बोल रहे और अतिरिक्त बल की तैनाती को आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों से जुड़ा भी बाताया जा रहा है लेकिन प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की कार्यशैली को देखते हुए साधारण से साधारण व्यक्ति तक मान बैठा है कि केंद्र सरकार ने घाटी के भीतर जिस तरह की सक्रियता हाल ही के कुछ दिनों में दिखाई वह साधारण कारणों से नहीं हो सकती। आश्चर्य की बात ये है कि कांग्रेस पार्टी 35 ए हटाने जैसे किसी भी कदम का विरोध करने सक्रिय हो उठी है। एक राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते उसे देश के दूरगामी हितों और सुरक्षा के साथ ही जनता की भावनाओं को भी समझना चाहिये। रोहिंग्या शरणार्थियों के पक्ष में खड़े होकर उसने पहले ही जनता की नाराजगी झेली हैं। पार्टी के वर्तमान नेतृत्व को इस सच्चाई को महसूस कर लेना चाहिए कि देश का आम जनमानस कश्मीर समस्या को आजादी के बाद बनी कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों और निर्णयों का परिणाम मानता है। पहले केवल धारा 370 को लेकर विवाद मचता रहा लेकिन जबसे ये स्पष्ट हुआ कि अनुच्छेद 35 ए को आसानी से हटाया जा सकता है और वैसा करने से समस्या काफी हद तक हल की जा सकेगी तबसे ही पूरे देश में उम्मीद की एक किरण फूट पड़ी। केंद्र सरकार द्वारा घाटी से आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिए उठाये गये कड़े कदमों का ही असर है कि हुर्रियत की हुंकारें नहीं सुनाई दे रहीं और अब्दुल्ला तथा मुफ्ती जैसे खानदानी नेताओं की जुबान से धमकियों की बजाय अनुनय-विनय टपकता दिख रहा है। मौजूदा माहौल का अंतिम परिणाम क्या होगा ये तो केंद्र सरकार ही जाने लेकिन इतना जरुर कहा जा सकता है कि अलगाववाद की बात करने वाले अब आग्रह करते देखे जा सकते हैं।
-रवीन्द्र वाजपेयी
No comments:
Post a Comment