Friday 16 August 2019

प्लास्टिक और जनसंख्या दोनों पर नियन्त्रण जरूरी

स्वाधीनता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से देश को लगातार छटवें वर्ष संबोधित करते हुए प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने वैसे तो अनेक विषयों पर अपनी सरकार की उपलब्धियों और भविष्य के कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला लेकिन उनमें से दो ऐसे हैं जो आगामी वर्ष में राष्ट्रीय विमर्श के मुद्दे बन सकते हैं और बनना भी चाहिए। इनमें पहला है आगामी दो अक्टूबर से सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्ति और दूसरा जनसंख्या नियंत्रण। अनेक पाठक कह सकते हैं कि डेढ़ घंटे के लम्बे भाषण में श्री मोदी द्वारा राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के तमाम मुद्दों की चर्चा की गई तब इन्हीं दो का संज्ञान लेने की क्या जरूरत है ? लेकिन जनसाधारण से सम्बन्ध होने से आम जनता को ये सीधा प्रभावित करने वाले हैं। प्रधानमन्त्री ने उस प्लास्टिक थैली या थैले के उपयोग को रोकने की बात कही है जो केवल एक बार उपयोग होने के बाद कचरे में फेंक दिया जाता है। चीन से आयातित बेहद महीन पालीथिन भारत की बाजारों में धड़ल्ले से उपयोग होती है। हालांकि इस पर प्रतिबन्ध है लेकिन वह उतना कारगर नहीं हो सका। इसी तरह पालीथिन से बनी थैलियां हैं जिनका दोबारा उपयोग नहीं हो पाने से वे पर्यावरण के लिए जबर्दस्त खतरा बन गईं हैं। प्रधानमंत्री ने प्लास्टिक उद्योग से रिसायकलिंग किये जाने वाली प्लास्टिक थैले के उत्पादन की जो अपेक्षा की है वह एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है। उन्होंने दुकानदारों से अपील की है कि वे ग्राहकों को प्लास्टिक का थैला नहीं दें। इसके अलावा उन्होंने जूट के थैले का उपयोग करने का जो आह्वान किया उसका भी व्यापक असर हो सकता है। विशेष रूप से बंगाल के जूट उद्योग को इससे जबर्दस्त सहारा मिलेगा। जगजाहिर है कि प्लास्टिक थैले से पर्यावरण को जो क्षति पहुंची है उसकी वजह से यदि अब भी उससे क्रमश: मुक्ति का अभियान शुरू नहीं किया जाता तब भावी पीढ़ी को अकल्पनीय मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। उल्लेखनीय है दुनिया के तमाम देशों में प्लास्टिक से बनी चीजों पर कड़ाई से रोक लगा दी गयी है। विशेष रूप से एक बार उपयोग के बाद फेंकने लायक हो जाने वाली पालीथिन तो किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकती। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्तरहीन पालिथिन पर रोक लगाने के बाद भी जागरूकता के अभाव में आज भी उसका उपयोग हो रहा है। प्रधानमन्त्री के सुझाव पर केवल दुकानदार ही नहीं अपितु आम जनता को भी गम्भीरता के साथ विचार करते हुए उसका पालन करना चाहिए क्योंकि घटिया प्लास्टिक ने पर्यावरण को जो खतरा पहुंचाया है उसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता और अभी भी इस बारे में सजगता नहीं बरती गई तब आने वाले कुछ वर्षों में हालात बेकाबू हो सकते हैं। दूसरी जिस बात को श्री मोदी ने लालकिले से देश के सामने रखा वह जनसंख्या में होती जा रही वृद्धि पर नियन्त्रण करने संबंधी है। हालांकि उन्होंने कम बच्चे होते हैं घर में अच्छे के रूप में कोई नई बात नहीं कही। कुछ बरस पहले तक देश भर में दीवारों पर परिवार नियोजन संबंधी नारे लिखे दिख जाया करते थे। छोटा परिवार सुखी परिवार भी खूब पढऩे और सुनने में आता था। सरकारी अमला नसबंदी शिविर लगाकर आबादी की रफ्तार को धीमा करने के प्रयास भी करता था। परिवार नियोजन विभाग की उपस्थिति भी सर्वत्र महसू होती थी। लेकिन बीते एक - दो दशकों में इसकी चर्चा कम होती गई और फिर धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा कि जनसंख्या वृद्धि की चिंता सरकार की कार्यसूची से बाहर हो चुकी है। ये भी देखने में आया कि एक समुदाय विशेष ने परिवार नियोजन और गर्भ निरोधकों के उपयोग को धर्म विरोधी मानकर जनसंख्या नियन्त्रण को पूरी तरह उपेक्षित कर दिया। भारत में राजनीतिक कारणों से सामाजिक कल्याण की अनेक सरकारी योजनायें और कार्यक्रम चलाये जाते हैं। सब्सिडी पर भी सरकारी खजाने का बड़ा हिस्सा खर्च होता है। जनसंख्या में असीमित वृद्धि के कारण मानव संसाधन एक बोझ बनता जा रहा है। चीन में भी ये समस्या भारत से ज्यादा विकराल थी लेकिन वहां की सरकार ने सख्ती दिखाते हुए इस पर काबू किया जिसके कारण चीन की आर्थिक प्रगति संभव हो सकी। भारत जब विश्व की दस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो चुका है तब उसके लिए जरुरी है कि आर्थिक के साथ ही जनसंख्या नियोजन पर भी उतना ही ध्यान दे। ये देखते हुए प्रधानमन्त्री ने स्वाधीनता दिवस के अवसर पर परिवार नियोजन जैसे लगभग भुला दिए गये विषय को एक बार फिर से मुख्य धारा में लाने का जो प्रयास किया वह उनकी दूरदर्शिता के साथ ही राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा हुआ है। प्रधानमन्त्री बनने के बाद 15 अगस्त 2014 को लालकिले से अपने पहले भाषण में ही उन्होंने ये संकेत दे दिए थे कि वे इस मौके पर केवल रस्म अदायगी ही नहीं वरन देश की जनता से सीधे संवाद करते हुए अपना भावी एजेंडा उसके समक्ष रख देते हैं। राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन, शौचालय, उज्ज्वला जैसे अनेक कार्यक्रम लालकिले की प्राचीर से ही घोषित हुए और पूरी ताकत से लागू भी किये गए। उस आधार पर ये सोचना गलत नहीं होगा कि श्री मोदी ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर जो उम्मीद जताई वह आने वाले दिनों में सरकार के नीतिगत निर्णय का हिस्सा बनेगी और हो सकता है पिछले कुछ समय से चल रही चर्चाओं के अनुसार इस बारे में कोई कानून भी अस्तित्व में आए। दूसरी बार प्रधानमन्त्री बनने के बाद श्री मोदी ने संसद के पहले सत्र में जिस प्रभावशाली तरीके अनेक लंबित विधेयक पारित करवाए और सत्र खत्म होने के एक दिन पहले जम्मू-कश्मीर संबंधी धमाका कर दिया उसके बाद राजनीतिक हालात उनके पक्ष में आने के साथ सबसे बड़ी बात ये हुई कि अनेक परम्परागत विरोधी भी उनके साथ खड़े नजर आने लगे हैं। ऐसे में यदि वे जनसंख्या को नियंत्रित करने के बारे में कुछ ठोस कदम उठाएंगे तब उनका वैसा विरोध नहीं हो पायेगा जैसा कुछ साल पहले तक आशंकित था। मुस्लिमों के बीच भी समाज सुधार की बातें उठने लगी हैं। तीन तलाक पर रोक जैसे कनून के पक्ष में मुस्लिम महिलाओं का मुखर होना इसका प्रमाण है। प्लास्टिक और जनसंख्या दोनों पर नियन्त्रण करने का जो इरादा प्रधानमन्त्री ने गत दिवस जताया वह समय की मांग तो है ही भारत के भविष्य की दृष्टि से भी बेहद जरुरी कदम होगा। लालकिले की प्राचीर से निकले इस विचार के बारे में सार्वजानिक चर्चा होनी चाहिए क्योंकि दोनों ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर आम जनता से भी जुड़े हुए हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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