Monday 19 August 2019

राजनाथ के बयान : तीर सही निशाने पर लगा

यद्यपि कुछ लोग इसे युद्धोन्माद भी कह सकते हैं लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा बीते दो-तीन दिनों में पाकिस्तान को लेकर दिए गए बयानों को दुश्मन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने वाला भी समझा जा सकता है। शुरुवात में तो उन्होंने परमाणु अस्त्रों का पहले इस्तेमाल न करने की नीति पर पुनर्विचार की बात कही और गत दिवस उनका ये बयान सुर्खियों में रहा कि पाकिस्तान से बात होगी तो केवल पाक अधिकृत कश्मीर के मुद्दे पर। उनके दोनों बयानों की पाकिस्तान में जबर्दस्त प्रतिक्रिया भी हुई। विशेष रूप से परमाणु  हथियारों का पहले उपयोग करने की नीति में बदलाव के संकेत के बाद इमरान सरकार ने विश्व की बड़ी शक्तियों से भारत के आक्रामक रवैये की शिकायत करते हुए अपना रोना रोया। इसके पहले 14 अगस्त को पाक अधिकृत कश्मीर के दौरे पर पाक प्रधानमंत्री ने आशंका जताई थी कि भारत जम्मू-कश्मीर से ही संतुष्ट नहीं होगा और पाक अधिकृत कश्मीर पर  बालाकोट से भी बड़ा हमला कर सकता है। हालाँकि इस बयान के बाद वे अपने ही देश में हँसी और आलोचना का पात्र बन गये क्योंकि उनकी सरकार और सेना दोनों बालाकोट में भारतीय वायुसेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक को झुठलाने में लगे रहे। सीमा पर जब भी टकराव हुआ तब-तब पाकिस्तान की सेना और सरकार दोनों ने बजाय शांति की पहल करने के ये शेखी बघारी कि वह भारत को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। पाकिस्तानी सेना को विश्व की सर्वश्रेष्ठ पेशेवर सेना बताये जाने की डींगें भी खूब हांकी गईं। अपनी आण्विक ताकत का ढिंढोरा पीटने में पाकिस्तानी नेता और फौजी जनरल कभी पीछे नहीं रहे। पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ  तो पद से हटने के बाद भी गाहे-बगाहे ये कहते सुनाई दिए कि उनके मुल्क ने परमाणु अस्त्र शब-ए-बारात में  फोड़ने के लिए नहीं बनाये हैं। इसी तरह के बयानात और लोगों की जुबान से भी लगातार आते रहे। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाये जाने के बाद पाकिस्तान की संसद के आपातकालीन अधिवेशन में इमरान खान ने घुमा-फिराकर ये कहा कि सीमा पर तनाव युद्ध में बदल सकता है और बात परम्परागत लड़ाई से भी आगे अर्थात परमाणु युद्ध तक भी जा सकती है। भारत भी इस आशंका को लेकर सदैव चिन्त्तित रहा है क्योंकि वहां चुनी हुई सरकार पर सेना का दबदबा जगजाहिर है। ये आशंका भी पूरी दुनिया में बनी हुई है कि पाकिस्तान के परमाणु अस्त्र कहीं किसी आतंकवादी संगठन के हाथ न लग जाएँ। 1998 में परमाणु परीक्षण करने के तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी वाजपेयी ने पूरी दुनिया को आश्वस्त किया था कि भारत उनका पहले इस्तेमाल नहीं करेगा। अमेरिका सहित विश्व के अनेक देशों ने भारत पर जो आर्थिक प्रतिबंध लगाये थे वे धीरे-धीरे शिथिल भी उसी आश्वासन की वजह से पड़े। यूँ भी भारत की छवि एक जिम्मेदार देश के तौर पर पूरी दुनिया में बनी हुई है जबकि पाकिस्तान आतंकवाद की  नर्सरी के रूप में कुख्यात हो चुका है। मोदी सरकार द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध शून्य सहनशक्ति की  नीति अपनाते हुए कूटनीतिक स्तर  पर पाकिस्तान का पर्दाफाश करने के जो प्रयास किये गये उनका भी अनुकूल असर हुआ  जिसके बाद संरासंघ ने हाफिज सईद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के साथ ही कुछ संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए भी पाकिस्तान को मजबूर किया। जम्मू-कश्मीर संबंधी भारत के हालिया फैसलों के बाद पकिस्तान की आन्तरिक राजनीति में जबर्दस्त उथलपुथल मच गई है। संसद के विशेष अधिवेशन में विपक्ष ने इमरान खान की जिस तरह धुलाई की उसकी वजह से वे वैसे ही परेशान थे। ऊपर से अन्तर्राष्ट्रीय समर्थन नहीं मिलने से भी उनकी जबर्दस्त किरकिरी हो गई। संरासंघ सुरक्षा परिषद की बैठक में चीन के अलावा कोई भी बड़ा देश पाकिस्तान के साथ नहीं आया। सीमा पर उसकी सेना ने उकसाने वाली जो सैन्य गतिविधियाँ कीं उनका भी भारत की तरफ  से जोरदार जवाब दिया गया और पहली बार पाकिस्तानी समाचार माध्यमों ने भारतीय कार्रवाई में मारे गए जवानों के नाम उजागर किये। उसके पहले भी भारत में घुसपैठ की कोशिश करने वाले उसके आधा दर्जन सैनिकं मार दिए गए थे। जम्मू-कश्मीर से सटी नियंत्रण रेखा के अलावा पूरे राज्य में भारतीय सुरक्षा बलों की बड़े पैमाने पर तैनाती से पाकिस्तान के मंसूबे पूरे नहीं हो पा रहे। ये देखते हुए इस बात की आशंका बढ़ने लगी है कि बौखलाहट में पाकिस्तान युद्ध के स्तर तक जा सकता है। इसके पीछे उसकी ये सोच भी हो सकती है कि उस स्थिति में कश्मीर घाटी के लोग भारत विरोधी आन्दोलन के जरिये समानांतर मोर्चा खोलकर दोहरा दबाव बना देंगे। इसीलिये भारत एक तरफ  तो कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को घेरने की रणनीति पर चल रहा है, वहीं जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों की सघन तैनाती के कारण अलगाववादी ताकतों के हौसले फिलहाल पस्त हैं। लैंडलाइन फोन और इंटरनेट सेवा प्रायोगिक तौर पर बहाल करने के बाद फिर अवरुद्ध कर दी गई जिससे कि उसकी समीक्षा की जा सके। इससे स्पष्ट हो गया कि भारत बाहरी और भीतरी दोनों ही खतरों के प्रति काफी सतर्क है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयानों से भी यही संकेत मिला है। सही बात ये है इमरान सरकार अपने ही बुने जाल में फंसती जा रही है। ऐसे में उस पर चौतरफा दबाव बनाना जरूरी है। परमाणु अस्त्रों का पहले उपयोग नहीं करने की जो नीति भारत ने खुद ही बनाई थी वह आत्मघाती न हो जाये ये देखते हुए उसकी समीक्षा की बात समयोचित है। वहीं पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से तक ही बातचीत सीमित रखने जैसा बयान भारत के बढ़ते आत्मविश्वास का परिचायक तो हैं ही, उससे ये भी साबित होता है कि वह दक्षिण एशिया की बड़ी शक्ति होने के नाते अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने में सक्षम है न कि पाकिस्तान की तरह दूसरों पर आश्रित।  जैसी कि खबरें आ रही हैं पाकिस्तान राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक तीनों ही मोर्चों पर बेहद खराब दौर से गुजर रहा है। कोई अचरज नहीं होगा यदि फौज इमरान खान का तख्तापलट कर दे। वैसे भी इमरान उसी की मदद और संरक्षण से सत्ता तक पहुंचे थे। राजनाथ सिंह के ताजा बयानों को लेकर इस्लामाबाद ने जिस तरह की प्रतिक्रियाएं दिखाईं वे इस बात का संकेत हैं कि तीर सही निशाने पर जाकर लगा है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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