Friday 30 August 2019

नुक्कड़ पर न्यायपालिका

यद्यपि न्यायपालिका के भीतर से आने वाले वाली सनसनीखेज खबरें अब उतना रोमांचित नहीं करतीं लेकिन पटना उच्च न्यायालय  में गत दिवस जो कुछ भी हुआ उससे लगने लगा है कि न्याय के पवित्र मंदिर में भी वे सभी बुराइयां कुंडली मारकर बैठ गईं हैं जिनके कारण देश का वातावरण प्रदूषित हो चुका है | हुआ यूँ कि वरिष्ठता में दूसरे क्रम के न्यायाधीश राकेश कुमार ने एक खत्म हो चुके मामले की नए सिरे से सुनवाई शुरू की | एक पूर्व आईएएस अधिकारी को उनहोंने जमानत नहीं दी थी लेकिन उसने निचली अदालत से जमानत हासिल कर ली | श्री कुमार ने उस प्रकरण की सुनवाई करते हुए कुछ आदेश पारित किये और उनकी प्रतिलिपि सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश और प्रधानमंत्री कार्यालय के अलावा सीबीआई को प्रेषित करने का आदेश भी दे दिया | इस पर मुख्य सहित  उच्च  न्यायालय के 11 न्यायाधीशों ने एक साथ बैठकर श्री कुमार द्वारा दिए गए पूरे आदेश के क्रियान्वयन को न सिर्फ रोक दिया अपितु उनके बारे में आलोचनात्मक टिप्पणियाँ भी कीं |  यहाँ तक कि उनके निर्णय को नुक्कड़ पर होने वाली बयानबाजी जैसा बताने में भी संकोच नहीं किया | इसी के साथ उन्हें अकेले किसी मामले की सुनवाई करने से रोक दिया गया | दूसरी तरफ 11 न्यायाधीशों के  संयुक्त फैसले के विरुद्ध श्री कुमार खुलकर मैदान में आ गए और  न्यायपालिका में व्याप्त धांधलियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि भ्रष्ट न्यायाधीश को बचाया जा रहा है और जिस न्यायाधीश के विरुद्ध उन्होंनें शिकायात की वही उनकी जाँच में शामिल हैं | मामला चूँकि अति सम्मानीय योर ऑनर्स का है इसलिए आम जनता और नेता इस पर टिप्पणी से बचेंगे लेकिन इस विवाद से इतना तो स्पष्ट हो ही गया कि पंच  को परमेश्वर मानने वाले देश में आधुनिक युग की पंचायतों में बैठने वाले न्यायाधीश नामक पंच अब उस सम्मान को खोते जा रहे हैं जो उन्हें सहज और स्वाभाविक रूप से प्राप्त था | वैसे ये पहला  मौका नहीं है जब न्यायपालिका के अंदरूनी झगड़े इस तरह से सार्वजनिक हो रहे हैं | इनके पीछे राजनीति  भी कम नहीं है | दक्षिण भारत के एक न्यायाधीश का भ्रष्टाचार उजागर होने  के बाद जब महाभियोग की बात उठी तब संसद में अनेक सांसदों ने क्षेत्रीयता का मुद्दा  उठाकर बवाल मचा दिया | कोलकाता उच्च  न्यायालय में पदस्थ एक न्यायाधीश ने तो सर्वोच्च न्यायालय तक के विरुद्ध आदेश पारित करते हुए सभी मर्यादाएं तोड़ दीं | ज्यादा दूर क्यों जाएँ देश के वर्तमान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने ही सर्वोच्च न्यायालय के उन चार न्यायाधीशों की अगुआई की थी जिन्होंने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के विरुद्ध बगावती  अंदाज में पत्रकार वार्ता करते हुए न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरे में बताकर खूब सुर्खियाँ बटोरी थीं | लेकिन कुछ समय पहले जब श्री गोगोई पर एक महिला ने यौन शोषण का आरोप लगाया तब उसकी जाँच हेतु पीठ भी उन्हीं ने गठित की और जल्द ही  वे निर्दोष साबित हो गए जिसे लेकर विधि जगत के अलावा भी तरह - तरह की चर्चाएँ हुआ करती हैं | इसीलिये गत दिवस पटना में जो कुछ भी हुआ उसे वहां के मुख्य न्यायाधीश ने भले ही अभूतपूर्व माना हो लेकिन देश के आम जनमानस में उसे लेकर साधारण प्रतिक्रिया ही हुई होगी क्योंकि काले कोटों से भरे न्यायालय परिसर में गाहे - बगाहे सुने जाने वाले कारनामे अब आये दिन की खबरें बन गये हैं | हाँ , इतना अवश्य है कि पहले वकील , मुवक्किल और अदालतों का निचला स्टाफ उनसे सम्बद्ध  होता था लेकिन अब तो माननीय न्यायाधीशों तक पर उंगलियां उठने लगी हैं | हमारे देश में न्यायपालिका विशेष रूप से न्यायाधीशों के विरुद्ध बोलने से अच्छे - अच्छे घबराया करते थे लेकिन जब न्यायाधीश ही एक दूसरे पर कीचड़ उछालने  की प्रतिस्पर्धा में लिप्त हों तब आम जनता को भी मौका मिल गया है | पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित शेष 11 न्यायाधीशों ने राकेश कुमार के फैसले को नुक्कड़ की बयानबाजी कहकर ये साबित कर दिया कि न्याय की पवित्र आसंदी के बारे में खुद न्यायपालिका के उच्च पदों पर बैठे लोग ही क्या सोचते हैं | चूँकि कानून का पालन करवाने वाले न्यायाधीशों के विशेषाधिकारों के सामने साधारण स्थितियों में क़ानून भी असहाय होकर रह जाता है इसलिये इस मामले के बाद न्यायापालिका परम - पवित्र  हो जायेगी ये सोच लेना मूर्खों के स्वर्ग में रहने जैसा होगा | लेकिन गोबर गिरा है तो मिट्टी लेकर उठेगा की तर्ज पर ये उम्मीद की जा सकती है कि जिस न्यायापालिका के भीतर व्याप्त बुराइयां तलाशने में लोग डरा करते थे उन्हें न्यायाधीशों के बीच की लड़ाई सार्वजानिक कर देगी | पटना उच्च न्यायालय में गत दिवस जो कुछ भी हुआ उसने ये प्रमाणित कर  दिया कि भ्रष्टाचार के मामले में भी कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है | और न्यायपालिका भी उससे अछूती नहीं रही | जब एक न्यायाधीश के फैसले को उसी न्यायालय के बाकी न्यायाधीश नुक्कड़ छाप बताने की हद तक चले गये तब और कुछ कहने की जरूरत ही कहाँ है ? इस प्रकरण में इक बात अवश्य उल्लेखनीय है कि राकेश कुमार लालू प्रसाद यादव के भ्रष्टाचार की मामले में सीबीआई के वकील थे | न्यायाधीशों की टिप्पणी पर देश भर के नुक्कड़ों पर खड़े होने वाले बुद्धिजीवी अवमानना का प्रकरण दर्ज करा दें तो आश्चर्य नहीं होगा !

-रवीन्द्र वाजपेयी

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