Thursday 29 August 2019

कश्मीर संबंधी विपक्षी रवैया ठीक नहीं


जम्मू कश्मीर में प्रवेश को लेकर विपक्षी पार्टियों के नेतागण तथा कश्मीर घाटी के कुछ लोग बेताब हैं। बात सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुँची है जिसने अक्टूबर में सुनवाई की तारिख भी तय कर दी है। वैसे माकपा महासचिव सीताराम येचुरी को अदालत ने आज कश्मीर जाकर अपनी पार्टी के नेता से मिलने की इजाजत दी है। लेकिन वे न्यायालय को अपनी रिपोर्ट देने के बाद ही कोई राजनीतिक बयान जारी कर सकेंगे। इस बारे में सरकार का कहना है कि विपक्षी नेताओं के घाटी में जाने से वहां हालात बिगड़ सकते हैं। पिछले दिनों राहुल गांधी के नेतृत्व में गये विपक्षी नेताओं के दल को भी श्रीनगर हवाई अड्डे से बैरंग लौटा दिया गया था। घाटी में विपक्ष के नेता या तो नजरबंद हैं या फिर हिरासत में हैं। आतंकवाद से जुड़े कैदियों को अन्य राज्यों की जेलों में भेज दिया गया है। दरअसल वर्तमान स्थिति में कश्मीर घाटी में एक तरह से सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया चल रही है। राज्य के विभाजन के बाद जम्मू-कश्मीर से लद्दाख अलग हो गया है वहीं उसको पूर्ण राज्य की बजाय केंद्र शासित बना दिए जाने के कारण समूची प्रशासनिक व्यवस्था में सिरे से बदलाव करना पड़ रहा है। लद्दाख को भी अलग से बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित क्षेत्र बनाने में भी सरकारी स्तर पर भारी मशक्कत हो रही है। सरकार के समक्ष सबसे बड़ी समस्या घाटी के भीतर अलगाववादी ताकतों को पूरी तरह से नियन्त्रण में रखने की है। बीते तीन सप्ताह में घाटी में इक्का - दुक्का घटनाओं को छोड़कर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिससे केंद्र सरकार के फैसले के विरुद्ध जनता के गुस्से का पता चलता। हालाँकि सरकारी दावे के अनुसार तो स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में है और घाटी की आम जनता भी 370 और 35 ए हटने से खुश है लेकिन इस पर तभी भरोसा होगा जब लोगों की आवाजाही पर लगी रोक हट जायेगी तथा संचार सुविधाएँ पूरी तरह से बहाल होकर सामान्य स्थिति वापिस लौटेगी। भले ही कहे कुछ नहीं लेकिन सरकार भी जानती है कि अलगाववाद की चिंगारी भीतर - भीतर सुलग रही है तथा जरा सी हवा मिलते ही फिर भड़क सकती है। यही वजह है कि विपक्ष के तमाम दबाव के बावजूद भी घाटी के भीतर धीरे-धीरे ही रियायतें दी जा रही हैं। जहां तक बात आने-जाने और संपर्क की आजादी की है तो यह निश्चित रूप से मनुष्य का नैसर्गिक अधिकार है लेकिन जब सवाल देश की सुरक्षा और अखंडता का हो तब बाकी बातें महत्वहीन हो जाती हैं। उस लिहाज से केंद्र सरकार ने जो रणनीति अपना रखी है उसका विपक्ष को विरोध नहीं करना चाहिए। कश्मीर में फिलहाल जो हो रहा है वह उतना बुरा तो कदापि नहीं है जितना अलगाववादियों की हरकतों के कारण होता रहा है। बुरहान बानी के मारे जाने के बाद घाटी में जितना उत्पात हुआ वह बीते एक महीने की अपेक्षा कई गुना ज्यादा था। सच्चाई ये है कि सियासत चमकाने की खातिर कोई कहे कुछ भी लेकिन कश्मीर में अलगाववाद की समस्या को खत्म करने का और कोई विकल्प बचा ही नहीं था। पता नहीं क्यों कांग्रेस सहित बाकी विपक्षी पार्टियां घाटी को पाकिस्तान समर्थक तत्वों के आतंक से मुक्त कराने के इस प्रयास को लेकर तरह-तरह के ऐसे सवाल खड़े करने में जुटी हुई हैं जिनसे हमारे सुरक्षा बलों की पूरी मेहनत पर पानी फिर सकता है। कश्मीर में सर्दियां अक्टूबर के प्रारम्भ से ही शुरू हो जाती हैं। बर्फबारी के कारण आवागमन भी अवरुद्ध होता है और जनजीवन भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। लद्दाख को देश से जोडऩे वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 1 भी उसका शिकार हुए बिना नहीं रहता। और भी अनेक संवेदनशील कारण हैं जिनके चलते सुरक्षा बलों को भी काफी सजगता बरतनी पड़ती है। विपक्ष को इस विषय में एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि कश्मीर को लेकर बीते 5 और 6 अगस्त को देश की संसद ने भारी बहुमत से जो ऐतिहासिक फैसला लिया वह राजनीतिक नहीं अपितु राष्ट्रीय महत्व का है जिसका सीधा सम्बन्ध देश की सुरक्षा और सम्मान से है। कश्मीर घाटी में बीते अनेक वर्षों से अलगाववादी संगठनों के नेताओं ने जिस तरह का पाकिस्तान समर्थक रुख दिखाया उसके कारण देश के बाकी हिस्सों में नरेंद्र मोदी के छप्पन इंची सीने का मजाक उड़ाया जाने लगा था। युवा जवानों और अफसरों की मौत से भी जनाक्रोश बढ़ता जा रहा था। हर कोई कहता था कि मु_ी भर आतंकवादी और पाकिस्तान जैसा छोटा सा देश 130 करोड़ की आबादी वाले देश को मजबूर किये हुए। मोदी सरकार ने जिस हिम्मत का प्रदर्शन किया विपक्ष द्वारा उसकी तारीफ भले न की जाए लेकिन उसकी आलोचना करते हुए समूची प्रक्रिया पर सवाल उठाकर पाकिस्तान की आवाज को बुलंद करने की जो नादानी की जा रही है उससे उसकी विश्वसनीयता खतरे में आ गई है। अच्छा होगा यदि अभी भी अक्लमंदी दिखाते हुए विपक्ष रचनातमक रवैये का परिचय दे। गत दिवस राहुल गांधी का एक ट्वीट कश्मीर को भारत का अविभाज्य अंग बताते हुए पाकिस्तान की आलोचना का आया। बेहतर हो वे इसी तरह आगे भी चलते रहें जिससे बीते एक माह में हुए नुक्सान की कुछ भरपाई हो सके वरना यदि विपक्ष ने अपना रवैया नहीं सुधारा तो वह जनता की निगाहों से पूरी तरह उतर जाये तो आश्चर्य नहीं होगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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