Tuesday 27 August 2019

भ्रष्टाचार की जड़ों में मठा डालने का अच्छा प्रयास

न खाउंगा न खाने दूंगा के नारे के साथ सत्ता में आये नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक भ्रष्टाचार पर तो काफी हद तक रोक लगाई लेकिन ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि प्रशासनिक अमले का भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी रहा। केन्द्रीय सचिवालय में भले मोदी प्रभाव नजर आता हो लेकिन दिल्ली में ही स्थित केंद्र सरकार के अन्य दफ्तरों में पुराना ढर्रा यथावत रहने से इस आम धारणा की पुष्टि होती रही कि भ्रष्टाचार को कोई नहीं मिटा सकता। ये बात लोगों के मन में इसलिए बैठ गई क्योंकि ऊपरी स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार से भले ही साधारण जनता का पाला नहीं पड़ता हो लेकिन राशन कार्ड, जाति प्रमाणपत्र जैसे अति साधारण कामों के लिए भी जब सरकारी दफ्तर में बैठा कर्मचारी घूस लेता हो तब ये मान लेना गलत नहीं होगा कि भ्रष्टाचार की जड़ें बेहद गहरी हो चुकी हैं। कुछ जगहों से तो मृत्यु प्रमाणपत्र तक में पैसा लेने जैसी शिकायतें सामने आईं। भ्रष्टाचार कहने को तो पूरी दुनिया में हैं। जापान जैसे देश के कुछ प्रधानमंत्री तक इसके कारण जेल जा चुके हैं। विकसित देशों में भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां चुनाव में दिए जाने वाले चंदे का मुआवजा रक्षा एवं अन्य बड़े विदेशी सौदों के जरिये वसूलती हैं। लेकिन उनका पर्दाफाश होने पर दोषी नेता को तत्काल पदमुक्त कर दण्डित किया जाता है। हमारे देश में भी आजादी के बाद से घपलों और घोटालों में सता में बैठे अनेक नेताओं की गद्दी गयी लेकिन उसका असर नीचे नहीं पड़ा। हाल के कुछ वर्षों में अनेक नेता जेल गए और कुछ जाने की लाइन में हैं लेकिन भ्रष्टाचार का असली केंद्र सरकारी दफ्तरों में बैठे बड़े और छोटे बाबू हैं जो सीधे आम जनता का शोषण करते हैं। उस दृष्टि से मौजूदा केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारियों की पहिचान करते हुए उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का जो निर्णय किया वह एक अच्छी शुरुवात है। इसी के तहत गत दिवस तीसरी किश्त में कर विभाग से जुड़े 22 अधिकारियों की छुट्टी कर डाली। कार्रवाई करने से पहले पूरी गोपनीयता बरती गई। सरकारी विभागों में इस बात की जमकर चर्चा है कि जिन कर्मचारियों और अधिकारियों पर कामचोरी और अक्षमता का आरोप है उनकी सूची बनाकर उन्हें सेवानिवृत्त करने की योजना पर कार्य चल रहा है। इसकी प्रक्रिया को लेकर काफी असमंजस भी है। लोगों का ये मानना है कि वरिष्ठ अधिकारी इसके जरिये व्यक्तिगत खुन्नस निकाल सकते हैं। बहरहाल भ्रष्ट अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्त किये जाने से आम जन खुश हैं जो उसी अवधारणा की पुष्टि करती है जिसका जिक्र प्रारंभ में किया गया है। यद्यपि प्रधानमंत्री की इस सोच को भाजपा शासित राज्यों की सरकारें भी पलीता लगाने में पीछे नहीं हैं जहां हर स्तर पर भ्रष्टाचार नामक गंदगी फैली हुई है। कुछ लोग ये भी कहते पाए जाते हैं कि मोदी सरकार एक निश्चित आयु सीमा और सेवा काल पूरा कर चुके कर्मचारियों और अधिकारियों की छुट्टी करते हुए बेरोजगारों को रोजगार देने की नीति पर चल रही है परन्तु ये ऊँट के मुंह में जीरा जैसा होगा। लेकिन जहां तक बात भ्रष्ट अधिकारियों को निकाल बाहर करने की है तो उसमें किसी को ऐतराज नहीं हो रहा। हालांकि ये बात भी बिलकुल सही है कि सरकारी अमला तभी भ्रष्ट होता है जब उसे राजनीतिक संरक्षण मिलता है। विशेष रूप से उच्च पदों पर आसीन नौकरशाह तो किसी न किसी नेता के प्रति निजी तौर पर निष्ठावान बने रहकर अपने आप को सुरक्षित बनाये रखते हैं। इसका प्रमाण सरकारों के बदलते ही मिलने लगता है। नए हुक्मरान सत्ता में आते ही सबसे पहला काम साचिवालय में बदलाव का करते हैं और फिर आने वाले कुछ महीने स्थानान्तरण उद्योग चला करता है। जिसका ताजातरीन उदाहण मप्र है। 2014 में केंद्र की सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने भी केन्द्रीय सचिवालय में जमकर परिवर्तन किये। महत्वपूर्ण पदों पर अपनी पसन्द के अधिकारियों की नियुक्ति की गई। चूंकि ऐसा पहले भी होता रहा इसलिए किसी ने उस पर आपत्ति नहीं की लेकिन इस परम्परा ने प्रतिबद्ध नौकरशाही का चलन शुरू कर दिया जिसका फायदा सत्ता में बैठे नेताओं से ज्यादा उनके दुमछल्ले बने बैठे अधिकारियों ने उठाया। ये बात भी सही है कि सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधियों की योग्यता की वजह से भी नौकरशाहों को खुलकर खेलने का अवसर मिला गया। बहरहाल भले ही ये छोटी सी शुरुवात हो लेकिन जिस तरह नेताओं के भ्रष्टाचार पर नकेल डालने की कार्रवाई चल पड़ी है वैसी ही यदि सरकारी अमले के विरुद्ध भी ईमानदारी से चलाई जा सके तब भ्रष्टाचार की जड़ों में मठा डालने के काम में सफलता मिल सकती है। लेकिन मोदी सरकार को ये ध्यान रखना चाहिए कि इसमें पक्षपात, पूर्वाग्रह और दुराग्रह से बचा जाए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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