Thursday 7 November 2019

आवासीय परियोजनाओं को संजीवनी: देर से लिया सही निर्णय



देर से ही सही लेकिन केद्र सरकार को आखिरकार ये समझ में आ ही गया कि गृह निर्माण के क्षेत्र को प्रोत्साहन दिए बिना अर्थव्यवस्था को पटरी पर नहीं लाया जा सकता। गत दिवस केन्द्रीय मंत्रीमंडल द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार देश में अर्थाभाव के कारण रुकी पड़ी तकरीबन 1600 आवासीय परियोजनाओं को पूरा करने हेतु 10  हजार करोड़ रु. सरकार एवं 15 हजार करोड़ रु. भारतीय स्टेट बैंक और भारतीय जीवन बीमा निगम देंगे। इसके बाद अन्य स्रोतों से भी धन एकत्र करते हुए बड़ा कोष बनाकर आधी-अधूरी बनी 4.58 लाख आवासीय इकाइयों को पूरा करने के लिए प्रमोटरों को कर्ज प्रदान किया जावेगा। मौजूदा स्थिति में धन के अभाव में सैकड़ों बड़ी आवासीय परियोजनाएं बंद पड़ी हुई हैं। उनमें बैंकों के अलावा अनेक वित्तीय संस्थानों का पैसा तो फंसा ही है खरीददारों की भी मेहनत की कमाई उलझ गयी है। सबसे बड़ी बात ये हुई कि काम बंद हो जाने से लाखों श्रमिकों का रोजगार तो छिना ही साथ में लोहा, सीमेंट, हार्डवेयर, सेनेटरीवेयर, बिजली फिटिंग्स के साथ दर्जनों ऐसी चीजों का व्यापार बैठ गया जिनकी निर्माण कार्य में जरूरत होती है। बैंकों  सहित जिन वित्तीय संस्थानों ने इन परियोजनाओं को ऋ ण उपलब्ध करवाए थे वे भी संकट में फंसे हुए हैं। रेरा जैसा कानून आने के बाद आवासीय परियोजनाओं के असीमित विस्तार पर भी रोक लगी। मई में लोकसभा चुनाव के फौरन बाद से ही आर्थिक मंदी को लेकर हल्ला मचने लगा था। पहले-पहल तो सरकार उसे नकारती रही क्योंकि उसे स्वीकार करने का मतलब अपनी आर्थिक नीतियों की विफलता पर खुद मोहर लगाना होता। लेकिन दूसरी तरफ उसने ऐसे  कदम उठाने शुरू कर दिए जिनसे आर्थिक मंदी दूर हो सके।  कार्पोरेट टैक्स में कमी इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। उसके बाद सरकार ने ऋ ण मेले लगवाकर तकरीबन 80  हजार करोड़ रूपये अर्थव्यवस्था की गतिशीलता बढ़ाने के लिए बंटवाये। लेकिन गत दिवस उसने जो कदम उठाया वह सबसे कारगर और प्रभावशाली कहा जा सकता है । आधी-अधूरी पड़ी हुई आवासीय परियोजनाओं के दोबारा शुरू होने के बहुआयामी लाभ होंगे। सबसे बड़ी बात ये है कि इससे बैंकों और दूसरी वित्तीय संस्थाओं का जो पैसा एनपीए की शक्ल में फंस गया है वह वापिस आयेगा वहीं अपने घर का सपना संजोए  बैठे लाखों उपभोक्ताओं का निवेश भी फलीभूत होगा। आर्थिक मामलों  के जानकारों की मानें तो आवासीय परियोजनाओं को सबसे बड़ा झटका नोटबंदी के बाद लगा क्योंकि जमीन- जायजाद में काले धन की बड़ी भूमिका रही है। उसके बाद जीएसटी की ऊँची दरें भी दूबरे में दो आसाढ़़ वाली स्थिति का कारण बन गईं। शुरू-शुरू में तो सरकार अपनी अकड़ में रही लेकिन बाद में जाकर उसे जीएसटी की दरें घटानी पड़ीं। जहां तक इस व्यवसाय में काले धन के उपयोग को रोकने की बात है तो उसका इलाज करने हेतु ही कल का निर्णय लिया गया। ये बात भी सही है कि  जमीन और जायजाद के दाम बढ़ाने में काले धन की सबसे बड़ी भूमिका रही है। नोटबंदी के बाद से इस व्यवसाय में आये ठंडेपन का कारण काले धन का प्रवाह अचानक रुक जाना ही था। बहरहाल सरकार ने व्यवहारिकता  के धरातल  पर उतरकर स्थितियों का आकलन किया और उसके बाद ही बंद पड़ी हुई आवासीय परियोजनाओं में जान फूंकने के लिए पूंजी उपलब्ध करवाने जैसा बहुप्रतीक्षित निर्णय लिया। हालाँकि अभी इसका लाभ मिलने में कुछ समय लगेगा किन्तु वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा ज्योंही तत्सम्बन्धी घोषणा की गयी जमीन-जायजाद के व्यवसाय से जुड़े  लोगों के अलावा लाखों उन निवेशकों की आँखों में चमक आ गई जो पूरी तरह निराश हो चुके थे। जैसी कि चर्चा सुनाई दे रही है उसके अनुसार सरकार आगामी बजट के पहले कुछ और राहतें देने का मन भी बना रही है। महाराष्ट्र और हरियाणा के ताजा चुनाव परिणामों ने भाजपा के नीति नियंत्रकों को इस बात का एहसास करवा दिया है कि आम नागरिक आर्थिक नीतियों के बेहतर नतीजों को लेकर बहुत लम्बे समय तक धैर्य रखने को राजी नहीं है। मध्यम वर्ग में इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि सरकार ने कार्पोर्रेट टेक्स घटाकर उद्योगपतियों को तो बड़ी राहत दे दी लेकिन अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने में सबसे अधिक सहायक बनने वाले मध्यमवर्ग को आयकर में कोई अतिरिक्त राहत नहीं दी। बैंकों में जमा राशि पर ब्याज दर में लगातार गिरावट से बचतकर्ता विशेष रूप से सेवानिवृत्त वरिष्ठ नागरिकों को जीवन यापन करना कठिन हो गया है। ये कहना गलत नहीं होगा कि उदारीकरण के बाद से छोटे बचतकर्ताओं को पूरी तरह निरुत्साहित करते हुए उन्हें कर्ज लेकर घी पीने के लिए प्रेरित करने की जो नीति शुरू की गई उसने मध्यमवर्गीय परिवारों का बजट बिगाड़कर रख दिया। मृत पड़ी आवासीय परियोजनाओं में जान फूंकने का ताजा प्रयास निश्चित रूप से स्वागतयोग्य है। देर से उठाये गए इस कदम से उद्योग, व्यापार और  रोजगार सभी क्षेत्रों को सहारा मिलेगा ये उम्मीद की जा सकती है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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