Saturday 16 November 2019

दिल्ली के साथ - साथ पूरे देश की चिंता की जाए



दिल्ली में वायु प्रदूषण को रोकने के सभी प्रयास अब तक सफल नहीं हुए। सर्वोच्च न्यायालय पड़ोसी राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाकर फटकार लगा चुका है। राज्य सरकारें किसानों को पराली जलाने से रोकने का प्रयास भी कर रही हैं। लेकिन उसका भी असर नहीं दिखाई दे रहा। चौतरफा हो रही आलोचना के बाद किसानों ने भी ये सवाल उठाना शुरू कर दिया है कि पराली बरसों से जलाई जाती रही लेकिन दिल्ली में वायु प्रदूषण का हल्ला कुछ सालों से ही मचने लगा है। पराली को दूसरे तरीके से नष्ट करने या उपयोग करने पर भी सुझाव आना शुरू हो गये हैं। ये भी कहा जा रहा है कि दो-चार दिन में मौसम सही होते ही दिल्ली और निकटवर्ती गुरुग्राम, नोएडा और गाजिय़ाबाद के लोगों की सांस के साथ जाने वाला जहर कुछ कम हो जाएगा। बीते अनेक वर्षों से ये हालात हर साल बनते आ रहे हैं। उस दौरान खूब हल्ला मचता है लेकिन थोड़ा सा सुधार होते ही दिल्ली और उसके हिस्से बन चुके आसपास के शहरों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। दिल्ली सरकार ने ऑड और ईवन (विषम और सम) नम्बर वाले वाहनों को एक-एक दिन चलाने की जो व्यवस्था की वह भी अपेक्षित परिणाम नहीं दे रही। सर्वोच्च न्यायालय तक उस पर टिप्पणी कर चुका है। दिल्ली पर छाए धुंध का मुख्य कारण पड़ोसी राज्यों में पराली जलाए जाने को बताए जाने के बाद से देश भर में इस बात का संज्ञान लिया जाने लगा है। दिल्ली में तो लोगों में घबराहट और भय का माहौल है। राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण की ये स्थिति शर्मनाक है। देश भर से आकर वहां बसने वाले बहुत से लोगों के मन में दिल्ली छोडऩे का भाव जन्म लेने लगा है। एक समय था जब दिल्ली के बाहरी इलाकों में खेती होती थी। उस कारण खुली आबो-हवा उपलब्ध थी। लेकिन समय के साथ दिल्ली फैलती गई। खुली जमीन में बहुमंजिला इमारतें तन गईं। वाहनों की बेतहाशा संख्या ने आसमान को धुएं से भर दिया जो पूरे साल भर लोगों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। बीते कुछ समय से शालाएं बन्द पड़ी हैं। छोटे बच्चों के लिए तो ये खतरनाक स्थिति है ही बुजुर्गों और मरीजों के लिए भी प्राणलेवा है। सुबह की सैर करने वाले घरों में बैठे रहने को बाध्य हैं। दिल्ली को गैस चेम्बर कहा जाने लगा है। अचानक बाजार की ताकतें सक्रिय हो उठीं और एयर प्यूरीफायर के नाम पर नया धंधा शुरू हो गया। टीवी पर उसके विज्ञापन आने लग गए। शुद्ध पेयजल का अरबों-खरबों का कारोबार पहले से ही चला आ रहा था, अब शुद्ध हवा के लिए भी लोगों की जेब काटने का तानाबाना बुना जाने लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में चीन की तरह ही एयर प्यूरीफायर के टॉवर लगाने के बारे में भी कहा है। दिल्ली चूंकि देश की राजधानी है इसलिए सर्वोच्च न्यायालय से लेकर संसद और समाचार माध्यम तक उस पर ध्यान देते हैं लेकिन छोटे -छोटे शहरों तक में वायु प्रदूषण की जो स्थिति खतरनाक स्तर को छूने लपक रही है उन पर किसी का ध्यान नहीं जाता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन के जरिये देश में प्रदूषण को दूर करने का जो अभियान छेड़ा उसके कारण लोगों की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव आया है किंतु आबादी का बड़ा हिस्सा अभी भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति लापरवाह है। कुछ लोग तो अपनी हैसियत की ठसक में किसी भी सुधार में सहयोग करने राजी नहीं होते। उदाहरणस्वरूप दिल्ली में अनेक सम्पन्न लोगों ने ऑड और ईवन दोनों नंबरों के वाहन खरीद लिए हैं। वायु प्रदूषण केवल दिल्ली या भारत की समस्या नहीं है। पूरा विश्व इससे त्रस्त है। बढ़ते तापमान की वजह से उत्तरी और दक्षिणी धु्रवों के ग्लेशियर तक पिघलने लगे हैं जिसके कारण पृथ्वी का अस्तित्व खत्म होने की भविष्यवाणी भी की जाने लगी है। मुंबई सहित समुद्र के तट पर बसे दुनिया के अनेक महानगरों के जलमग्न होने की आशंका भी व्यक्त की जाने लगी है। विश्व में आतंकवाद के समानांतर पर्यावरण संरक्षण भी चिंता का बड़ा कारण बना हुआ है। आये दिन इसे लेकर ताकतवर देशों के राष्ट्रप्रमुख सम्मेलन करते हुए समझौते भी करते हैं। बड़े देशों द्वारा छोटे देशों पर दबाव भी डाला जाता है। इस सबकी वजह से कुछ अच्छे कदम उठाए भी जा रहे हैं लेकिन भारत सरीखे देश में आबादी बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे रहने मजबूर हैं। शहरों में झुग्गी-झोपड़ी बढ़ती जा रही हो तब प्रदूषण को रोक पाना असम्भव लगने लगा है। दिल्ली की वर्तमान स्थिति से उत्पन्न समस्या से देर-सवेर पूरे देश को निपटना पड़ेगा। बेतरतीब विकास एवं अनियोजित शहरीकरण के कारण छोटे-छोटे शहर भी प्रदूषण की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। ऐसे में अभी से इस तरफ  ध्यान नहीं दिया गया तो वह समय दूर नहीं जब पूरे देश की सांसों में ज़हर घुला होगा। इस समस्या का तदर्थ हल तलाशने के बजाय दूरगामी और स्थायी समाधान करना जरूरी हो गया है। हालात जिस तरह से बिगड़ रहे हैं उन्हें देखते हुए पूरे देश को ध्यान में रख कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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