Saturday 9 November 2019

आँधियों में भी जो जलता हुआ मिल जाएगा



ठीक तीस साल पहले जब मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस का पहला अंक पाठकों तक पहुंचा तब देश में जबर्दस्त उथल पुथल मची थी। समूची राजनीति जिस एक मुद्दे पर आकर टिकी हुई थी वह था अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण। तब से वह मुद्दा न जाने कितने पड़ाव पार करता हुआ आज ही अंजाम तक पहुँचने की स्थिति में आ गया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर अपना फैसला सुना दिया। निश्चित रूप से ये एक संयोग ही है कि मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस की शुरुवात जिस चर्चित मामले के जोर पकड़ते समय हुई , आज जब उसकी तीन दशक की यात्रा पूरी  हो रही है तब राम मंदिर को लेकर चला आ रहा कानूनी विवाद भी अंतत: हल हो गया। किसी भी समाचार पत्र के लिए एक ऐतिहासिक घटनाचक्र का साक्षी बनना सौभाग्य की बात होती है और उस लिहाज से मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस ने आजाद हिन्दुस्तान के उस दौर को देखा जिसने न सिर्फ  समूचे राजनीतिक विमर्श को उलट-पुलट किया वरन अर्थव्यवस्था के साथ समाज की सोच में भी आमूल परिवर्तन की स्थितियां बना दीं। मंडल और कमंडल के रूप में हुए समुद्र मंथन से जो निकला वही आज भी  भारतीय राजनीति को तरह - तरह से प्रभावित कर रहा है। बीते तीन दशकों में देश ने भांति - भांति के प्रयोग राष्ट्रीय राजनीति में देखे। नए सिद्धांतों का प्रतिपादन और पुरानों को तिलांजलि देने का काम भी जमकर हुआ। राजनीतिक छुआछूत का अंत और  अवसरवाद के उदय ने सियासत को तिजारत बनाकर रख दिया। आर्थिक उदारवाद के आकर्षण  में गांधी , लोहिया और दीनदयाल की स्वदेशी विचारधारा को उनके अनुयायियों ने ही तीन तलाक दे दिया। देश ने इस दौरान राजनीतिक अस्थिरता का भी खूब स्वाद चखा। मजबूत और मजबूर दोनों तरह की सरकारें आईं और गईं। आर्थिक क्षेत्र में भी खूब प्रयोग हुए , जिनके अच्छे और बुरे दोनों परिणाम आये। 2014 में लम्बे समय बाद देश ने पहली बार एक विशुद्ध गैर कांग्रेसी सरकार का चुनाव किया और इसी वर्ष मई में उसी निर्णय को दोहराया भी। इसका परिणाम कांग्रेस के बेहद कमजोर होने के रूप में सामने आया। लोकतंत्र के प्रति चिंतित रहने वालों को विपक्ष का कमजोर होना अशुभ संकेत लग रहा है।  लेकिन ये भी सत्य है कि विपक्ष भी पूरी तरह दिशाहीनता का शिकार होकर रह गया है। भारत ने बीते तीन दशकों में मंगल और चन्द्रमा तक पहुँचने  की महत्वाकांक्षा को पंख देकर अपना सफर सफलतापूर्वक तय किया जिससे पूरी दुनिया में उसका कद बढ़ा। आज का भारत दुनिया के मंचों पर एक सशक्त देश के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है तो इसके लिए बीते तीन दशक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रहे जब नई पीढी ने ''हम होंगे कामयाब एक दिन"  का सपना संजोया और उसे साकार कर दिखाया। बीते तीन दशकों में भारतीय मूल के लाखों लोग पूरी दुनिया में फैल गए और अपने ज्ञान और कार्यकुशलता का  लोहा मनवा दिया। आज की दुनिया में  यदि भारतीयों को एक वैश्विक समुदाय के तौर पर पहिचान और प्रतिष्ठा मिली तो ये सब बीते  तीन दशक में ही हो सका। उस दृष्टि से मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस बदलते भारत के हर पल का गवाह बना। इस दौर में पत्रकारिता भी खूब बदली और विकसित भी हुई। अखबार से टेलीविजन और फिर इन्टरनेट  से होते हुए मोबाईल के जरिये आये सोशल मीडिया के आगमन ने पत्रकारिता की सीमाओं , स्वरूप और छवि तीनों को बदलकर रख दिया। लेकिन सबसे अधिक चिंता की बात ये है कि व्यवसायिकता के फेर में उलझकर पत्रकारिता ने विश्वसनीयता  नामक अपनी सबसे बड़ी पूंजी सस्ते में गंवा दी। नौबत यहाँ तक आ पहुँची है कि सत्ता के सिंहासन को हिलाने की ताकत रखने वाले समाचार माध्यम आज अपनी प्रतिष्ठा को बचाने की असफल कोशिश करते दिखाई देते हैं।  ऐसे माहौल में भी एक हिन्दी अखबार तमाम चकाचौंध से दूर रहते हुए ब्लैक एंड व्हाईट में छपकर अपने अस्तित्व को ही नहीं अपितु विश्वसनीयता को सुरक्षित रखते हुए तीन दशक की संघर्षमय यात्रा पूरी कर सका तो इसका श्रेय मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस के उन अनगिनत पाठकों और शुभचिंतकों को है जिन्होंने सदैव इस पर अपना भरोसा बनाये रखा। तीस सालों के इस सफर में न जाने कितने बहाव , दबाव और प्रभाव आये किन्तु मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस ने निर्भीक पत्रकारिता की गौरवशाली परम्परा को ईमानदारी से जीवित रखा। इस अवसर पर हमें ये स्वीकार करने में कोई संकोच या शर्म नहीं है कि हमारा आर्थिक प्रबन्धन आशानुरूप नहीं रहा। लेकिन उसे सुधारने के लिए अपना स्वाभिमान गिरवी रखने की जो कीमत चुकानी पड़ती, वह हमें मंजूर नहीं थी। अभाव और परेशानियां जैसी तब थीं वैसी ही आज भी हमारी हमराह बनी हुईं हैं। सरकार की उपेक्षापूर्ण नीतियां और बढ़ती व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा के इस युग में इस तरह के अखबारों के दम तोडऩे की आशंका दिन ब दिन प्रबल होती जा रही है। लेकिन मध्यप्रदेश  हिन्दी एक्सप्रेस सदैव धारा के विपरीत तैरा है , और वही दुस्साहस हमारे उत्साह और ऊर्जा का आधार है। तीस साल के इस सफर के पूर्ण होने पर हम उन सभी के प्रति दिल की गहराइयों से कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जिन्होंने हमारी ईमानदारी का मजाक उड़ाने की बजाय हमें प्रोत्साहित किया। हम आश्वस्त करते हैं कि ऊंची आवाज में सच बोलने का यह दुस्साहस आगे भी ऐसे ही जारी रहेगा। हालात बदलें या न बदलें लेकिन हमारी तासीर नहीं बदलेगी , ये वचन हम जरुर देते हैं। किसी कवि की ये पंक्तियाँ सदैव हमें प्रेरित करती हैं कि :-
'आँधियों में भी जो जलता हुआ मिल जाएगा , उस दिये से पूछना मेरा पता मिल जाएगा'
विनम्र आभार और अनंत शुभकामनाओं सहित ,

-रवीन्द्र वाजपेयी

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