Friday 22 November 2019

महाराष्ट्र में दोहराया जा सकता है कर्नाटक



आखिऱी वक्त पर कोई उलटफेर नहीं हुआ तो आज महाराष्ट्र में गैर भाजपा गठबंधन की सरकार बनने का रास्ता साफ़  हो जायेगा। गत दिवस दिल्ली में कांग्रेस और एनसीपी की बैठक में शिवसेना को समर्थन देने का फैसला हो गया। आज मुम्बई में मंत्रियों की संख्या और विभागों के बंटवारे संबंधी चर्चा के बाद सरकार बनाने का दावा राज्यपाल के सामने किया जा सकता है। अभी तक के संकेतों के अनुसार कांग्रेस और एनसीपी दोनों ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को ही मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय किया है जिसके लिए शिवसेना भी तैयार है। हालाँकि उनके बेटे आदित्य पिता के साथ हर समय दिखाई देते हैं किन्तु जितनी भी महात्वपूर्ण बैठकें हुई उनमें उद्धव ही शामिल हुए। जिससे ये माना जा सकता है कि फिलहाल आदित्य को मुख्यमंत्री बनाने का इरादा पार्टी ने ताक पर रख दिया है।  सरकार बनाने पर सैद्धांतिक सहमति के साथ ये बात भी सुनाई दे रही है कि एनसीपी ने ढाई साल अपना मुख्यमंत्री बनाने का  दावा फिलहाल ठंडा कर दिया है। इसका कारण कांग्रेस भी हो सकती है जिसे एनसीपी का ताकतवर होना हजम नहीं हो रहा। जैसी खबरें हैं उनके मुताबिक अब एनसीपी और कांग्रेस दोनों का उपमुख्यमंत्री होगा। लेकिन विधानसभा का अध्यक्ष पद और उसके साथ ही महत्वपूर्ण विभागों को हथियाने के लिए तीनों पार्टियों के बीच खींचातानी अभी चल रही है। जैसी जानकारी मिली उसके मुताबिक कांग्रेस और एनसीपी दोनों को अच्छी तरह से पता है कि सरकार स्थायी नहीं होगी और इसीलिये दोनों ऐसे विभागों के लिए जोर मार रहे हैं जिनके जरिये कमाई के साथ - साथ जनाधार भी बढ़ाया जा सके। शिवसेना की मजबूरी ये है कि वह मुख्यमंत्री की जिद में उलझकर सौदेबाजी की हैसियत खो बैठी है। कांग्रेस और एनसीपी ने मंत्रियों की संख्या को बराबर बाँट लेने का जो फार्मूला रखा है उसे स्वीकार करने के अलावा उसके पास दूसरा कोई  रास्ता नहीं है। और यही उसके लिए चिंता का कारण है। उपमुख्यमंत्री के अलावा विधानसभा अध्यक्ष का पद उसके पास नहीं रहेगा। वित्त सहित अनेक महत्वपूर्ण मंत्रालय भी कांग्रेस  और एनसीपी झटक लेंगे। ऐसे में शासन - प्रशासन पर मुख्यमंत्री बनने के बाद भी श्री ठाकरे अपेक्षित प्रभाव कायम नहीं कर सकेंगे। सबसे बड़ी बात ये होगी कि उन्हें सरकार का अनुभव नहीं है जबकि दूसरी तरफ  कांग्रेस और एनसीपी के घाघ नेता सत्ता में बराबर की भागीदारी करेंगे। मुम्बई के राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चाओं के मुताबिक शिवसेना को सत्ता में लाने में मदद करने के बाद दोनों पार्टियाँ नगरीय निकायों के चुनावों में भी बराबरी की हिस्सेदारी मांगेंगी और तब शिवसेना के लिए शोचनीय हालात बन जाएंगे। सबसे बड़ी समस्या आयेगी  बीएमसी  (मुम्बई महानगरपालिका) को लेकर जिसका कब्जा ठाकरे परिवार नहीं  छोडऩा चाहेगा क्योंकि ये उसके लिए कुबेर का खजाने  जैसा है। अभी वह  भाजपा के सहारे वहां काबिज है। जहां तक बात कांग्रेस और एनसीपी की है तो वे भाजपा को सत्ता से बाहर करने के बाद शिवसेना को घुटनों के बल खड़ा करने का खेल खेलेंगे। वैसे ठाकरे परिवार इस सम्भावना से पूरी तरह अनभिज्ञ नहीं है लेकिन वर्तमान स्थितियों में उद्धव के सामने कांग्रेस और एमसीपी की  शर्तों को मान लेने  के सिवाय दूसरा विकल्प नहीं है। उद्धव् द्वारा अयोध्या यात्रा रद्द करने के अलावा कांग्रेस के दबाव में  साझा न्यूनतम कार्यक्रम में धर्मनिरपेक्ष शब्द रखे जाने की जिद को स्वीकार करने से शिवसेना की मजबूरी सामने आ गई है। चूंकि ये गठबंधन दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त की नीति  के आधार पर हो रहा है इसलिए सैद्धांतिक पलायन तो तीनों प्रमुख घटकों ने किया। कांग्रेस और एनसीपी  का शिवसेना के करीब आना उनकी छवि को भी नुकसान  पहुंचाए बिना नहीं रहेगा लेकिन शिवसेना ने तो पूरी तरह से ही अपनी पहिचान को खतरे में डाल दिया है। तीन दशक तक उसकी साथी रही भाजपा भी हिंदुत्व की प्रखर प्रवक्ता है लेकिन शिवसेना का हिंदुत्व प्रेम उग्रता की हद तक रहा है। उस दृष्टि से कांग्रेस और एनसीपी के साथ हम प्याला-हम निवाला वाला रिश्ता जोडऩे के बाद शिवसेना अपने मूल स्वरूप को कहाँ  तक बचाकर रख सकेगी ये बड़ा सवाल है। पीडीपी के साथ जम्मू कश्मीर में गठबंधन करने से भाजपा की साख को भी जबर्दस्त धक्का पहुंचा था लेकिन अनुच्छेद 370 को समाप्त करने से वह दाग धुल गया। शिवसेना के पास महाराष्ट्र में ऐसा कारनामा करने का कोई  मौका नहीं होगा। कांग्रेस और एनसीपी तो भविष्य में मतदाताओं के सामने ये कहते हुए सफाई देंगे कि उन्होंने महाराष्ट्र में हिंदूवादी गठबंधन में सेंध लगाकर भाजपा के विजय रथ को रोक दिया लेकिन शिवसेना अपने इस कृत्य को किस आधार पर सही ठहरा सकेगी ये उसके लिए गहन चिन्तन का विषय है। भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस ने कर्नाटक में एचडी देवगौड़ा के बेटे कुमार स्वामी को मुख्यमंत्री पद पर बिठाया था। लेकिन उसका परिणाम कांग्रेस में हुई टूटन के तौर पर सामने आया। अंतत: उस सरकार को गिराकर भाजपा सत्ता में लौट आई और अब कुमार स्वामी और कांग्रेस एक दूसरे के विरुद्ध तलवारें घुमा रहे हैं। महाराष्ट्र में दलबदल से सबसे ज्यादा शिवसेना आशंकित है। तभी गत दिवस उसने अपने विधायक जयपुर भेजने का निर्णय किया। वैसे भाजपा भी फिलहाल तो दूर बैठकर खेल देखने की भूमिका में ही रहेगी किन्तु उसकी यह आशा  निराधार नहीं है  कि देर सवेर शिवसेना में सेंध लगाने में वह सफल हो जायेगी। दरअसल महाराष्ट्र का जनादेश इतना खंडित है कि उसमें कुछ भी हो सकता है। कांग्रेस नेता संजय निरुपम द्वारा शिवसेना के साथ गठबंधन को आत्मघाती बताने वाला बयान अप्रत्याशित समीकरणों की जमीन बन सकता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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