Saturday 23 November 2019

महाराष्ट्र का महानाटक : जैसा चाचा वैसा भतीजा



क्या हुआ और कैसे हुआ ये फिलहाल कोई नहीं बता पा रहा । लेकिन महाराष्ट्र में आज सुबह जो राजनीतिक घटनाक्रम देखने मिला वह भारतीय राजनीति में एक नए उदाहरण के तौर पर सामने आया है । कल रात तक उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने पर एनसीपी और कांग्रेस की सहमति के बाद आज राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा करने का कार्यक्रम था। मंत्रियों के विभागों पर भी अंतिम फैसला होना था। उद्धव को पूरे पांच साल तक ढोने के लिए भी रजामंदी हो गई थी। विधानसभा अध्यक्ष पद को लेकर जरूर पेंच फंसा था । भाजपा की तरफ  से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इस गठबंधन को अवसरवदी बताकर सरकार के स्थायित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया जिससे ये लगा कि भाजपा ने विपक्ष में बैठकर सही अवसर का इंतजार करने का मन बना लिया है । शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस का समर्थन पक्का होने के बाद इसे अमित शाह की विफलता और शरद पवार का नए चाणक्य के रूप में उभरना माना जाने लगा था । संजय राउत की धुआंधार बयानबाजी के सामने भाजपा हर तरह से रक्षात्मक प्रतीत हो रही थी। भाजपा के कट्टर समर्थक भी कहने लगे कि पार्टी ने शिवसेना को मनाने की अपेक्षित कोशिश नहीं की। यदि अमित शाह या नितिन गडकरी खुद होकर उद्धव ठाकरे से बात कर लेते तो वह इतनी दूर नहीं जाती जहां से लौटना मुश्किल हो गया । बहरहाल आज सुबह सारे कयास और समीकरण उलट गए । देश के अधिकतर लोग सुबह के अखबारों में उद्धव ठाकरे की ताजपोशी से जुड़े घटनाक्रम का विवरण पढ़ रहे थे तभी टीवी चैनलों में देवेंद्र फडऩवीस द्वारा मुख्यमंत्री और अजीत पवार द्वारा उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लिए जाने की खबरें प्रसारित होने लगीं। सुबह 5.45 बजे राष्ट्रपति शासन हटा लिया गया । मतलब शपथग्रहण की तैयारी देर रात हो चुकी होगी जिसे गोपनीय रखा गया । अब पता चला है श्री फडऩवीस ने रात 9.30 बजे राज्यपाल को अपने पास बहुमत होने की जानकारी दे दी थी। महामहिम ने इसकी पुष्टि किस आधार पर की ये सवाल उठते रहेंगे। राष्ट्रपति शासन हटाने जैसी कार्रवाई सुबह पौने छह बजे होना दर्शाता है कि दिल्ली में भी रात भर उठापटक चलती रही। इस अचानक हुए धमाके पर आम प्रतिक्रिया ये रही कि शरद पवार ने एक बार फिर वही किया जिसके लिए वे जाने जाते हैं । वरना कल तक उनके भतीजे अजीत पवार का उपमुख्यमंत्री बनना निश्चित होने के बाद भी वे इस तरह कूदकर भाजपा की गोद में क्यों जा बैठे ? लेकिन बाद में श्री पवार ने स्पष्ट किया कि यह एनसीपी का नहीं अजीत का फैसला है । इस बयान से रहस्य और गहराया और बात भतीजे द्वारा अपने राजनीतिक गुरु और अभिभावक के विरुद्ध बगावत की चलने लगी। अजीत के साथ कितने विधायक टूटकर आये ये अभी साफ  नहीं हुआ । कोई 22 तो कोई 50 से ज्यादा कह रहा है । भाजपा ने चुपचाप बाजी तो पलट दी लेकिन अभी विश्वास मत जीतना बाकी है । ये ठीक है कि भाजपा के पास शिवसेना से लगभग दोगुने विधायक होने से स्थायी सरकार देने का उसका दावा मजबूत था लेकिन अल्पमत सरकार के लिए एक विधायक की कमी भी खतरे का कारण बन जाती है । वैसे श्री फडऩवीस बीते 5 वर्ष तक शिवसेना की हरकतों को झेलने के बाद काफी अनुभवी हो चुके हैं । और फिर अजीत  सियासत के मंजे हुए खिलाड़ी होने से शिवसेना से बेहतर साबित हो सकते हैं । लेकिन उनका दागदार अतीत और खुद देवेंद्र द्वारा विपक्ष में रहते हुए उनके विरुद्ध सिंचाई घोटाले के लगाये आरोपों के मद्देनजर ये गठबंधन भी राजनीतिक अवसरवाद और सौदेबाजी की तोहमत से नहीं बच सकेगा। यदि शरद पवार भी पर्दे के पीछे से इस खेल के रिंग मास्टर हैं तब ये माना जायेगा कि विधानसभा चुनाव के पहले ईडी की कार्रवाई के कारण ये सब हुआ। श्री पवार के खासमखास प्रफुल्ल पटेल भी उसके घेरे में हैं । सच्चाई धीरे-धीरे सामने आएगी। शाम तक ये साबित हो जाएगा कि अजीत के साथ पर्याप्त विधायक आए या नहीं ? खबर तो शिवसेना में सेंध लगने की भी है । पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे शिवसेना और कांग्रेस से होते हुए आजकल भाजपा में हैं । सुना है वे अपने पुराने संपर्कों के बल पर शिवसेना विधायकों को फोडऩे में जुटे हैं । फिलहाल तो अनिश्चितता का आलम है । शरद पवार की सफाई के बाद भी शक की सुई उन पर मंडरा रही है। बीते दिनों प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात के बाद से ही कुछ अप्रत्याशित होने की आशंका बढ़ गई थी। आज सुबह कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट करते हुए श्री पवार पर तंज भी कसा जिसे बाद में वापिस ले लिया गया । अभी तक जो जानकारी आई उसके अनुसार अजीत ने चाचा की चौधराहट से मुक्त होकर खुद मुख्त्यारी का ऐलान कर दिया है । उनकी बगावत कितनी असरकारक है ये तो सरकार के बहुमत साबित करने पर स्पष्ट होगा लेकिन बीते काफी समय से वे इस बात से नाराज थे कि चाचाजी अपनी बेटी सुप्रिया सुले को उत्तराधिकारी बनाना चाह रहे हैं । राष्ट्रीय राजनीति में सुप्रिया ही श्री पवार की विरासत की अधिकृत दावेदार बन गई हैं। उद्धव के साथ उपमुख्यमंत्री बनने की बात तय होने के बाद अजीत ने विद्रोह इसलिए भी किया क्योंकि शुरूवात में शिवसेना और एनसीपी में ढाई - ढाई साल के मुख्यमंत्री का समझौता हुआ था जो आखिर में फुस्स हो गया । शरद पवार ने इस हेतु कोई दबाव नहीं बनाया और संजय राउत ने चिल्लाना शुरू कर दिया कि शिवसेना का मुख्यमंत्री पूरे 5 साल रहेगा। और भी वजहें हो सकती हैं लेकिन महाराष्ट्र की सियासत में अचानक आए इस भूचाल में ठाकरे परिवार को जबरदस्त नुकसान हो गया। यदि देवेंद्र सरकार चल गई तो शिवसेना का हाल तेलुगु देशम जैसा होना निश्चित है । पवार साहब भी लंबे समय तक राजनीति नहीं कर सकेंगे । ऐसे में एनसीपी का कमजोर होना भी पक्का है । रही बात इस गठबंधन पर उठ रहे नैतिकता के सवालों की तो ईसा मसीह के इस कथन का उल्लेख यहां प्रासंगिक होगा कि पहला पत्थर वह मारे जिसने कभी कोई पाप न किया हो । भाजपा के पास खोने को कुछ था नहीं लेकिन अजीत ने बहुत बड़ा जुआ खेला है । कुछ दशक पहले उनके चाचा ने अपने गुरु बसंत दादा पाटिल को भी इसी शैली में धोखा देकर सत्ता हथियाई थी। संविधान और लोकतंत्र की हत्या जैसे आरोप ऐसे हर वाकये के बाद उछलते हैं । लेकिन भारतीय राजनीति का चारित्रिक पतन जिस स्तर तक हो चुका है उसके बाद उनका कोई महत्व नहीं रह जाता। संजय राउत ने अजीत पर पाप करने का आरोप लगाया। लेकिन इस महाभारत में उनकी भूमिका शकुनी जैसी रही । कुल मिलाकर रात भर में बाजी पलटकर भाजपा ने ये दिख दिया कि सत्ता की राजनीति के सारे हुनर उसने सीख लिए हैं। आगे कुछ उलटफेर नहीं हुआ तो अमित शाह का चाणक्य पद सुरक्षित रहेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी


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