Monday 4 November 2019

जबलपुर वालो दिल्ली की छोड़ो अपनी सोचो

जबसे देश की राजधानी दिल्ली की हवा के दम घोंटू होने की खबर उड़ी तभी से जबलपुर में रहने वाले अपने शहर को लेकर बहुत ही गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। महानगरों की भागदौड़ से अलग सुकून भरी जि़न्दगी के महत्व को भी वे सभी महसूस कर रहे हैं जिनके मन में पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंता और चिन्तन दोनों हैं। जैसे समाचार और चित्र आ रहे हैं उन्हें देखने के बाद दिल्ली वासियों की दुर्दशा पर रहम आने लगा है। जिस शहर से देश की सरकार चलती हो वहां रहने वाले शुद्ध हवा में सांस लेने तक से वंचित हो जाएँ तब सोचने को बाध्य हो जाना पड़ता है। दिल्ली की प्रदेश सरकार केंद्र पर आरोप लगा रही है तो केंद्र पलटवार करने में जुटा है। लेकिन दिल्ली की जनता किसको कठघरे में खड़ा करे ये बताने वाला कोई नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय , एनजीटी और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के मुख्यालय दिल्ली में है। ये सभी समय - समय पर पर्यावरण को बचाने के लिए कुछ न कुछ करते आये हैं लेकिन हर साल दिल्ली में इस तरह का आपातकाल आता है जिसमें इन्सान सांस के साथ अपने फेफड़ों में जहर भरने मजबूर हो जाता है। दिल्ली के हिस्से बन चुके गुरुग्राम , गाजिय़ाबाद और नोएडा में भी हालात संगीन हैं। इसके कारण यूँ तो अनेक हैं लेकिन सवाल ये है कि सब जानते हुए भी इसकी पुनरावृत्ति रोकने का प्रयास कोई नहीं करता। और यदि करता भी है तो उसमें ईमानदारी नहीं होती जिससे साल दर साल दिल्ली गैस चेम्बर में तब्दील होती चली गयी। अब लौट फिरकर अपने जबलपुर पर आ जाएं तो क्या हमारा शहर भी धीरे - धीरे प्रदूषण की गिरफ्त में आकर अपने खुशनुमा मौसम को खोता नहीं जा रहा ? शहर का बेतरतीब और अनियोजित विकास , अवैध कालोनियां, पेशेवर भूमाफिया के साथ , राजनेताओं , जनप्रतिनिधियों तथा भ्रष्ट नौकरशाहों की अतृप्त वासना के कारण इस शहर की आबोहवा में अब पुरानी बात नहीं रही। वाहनों की बेतहाशा संख्या की वजह से भले ही अभी दिल्ली जैसी स्थिति न बनी हो लेकिन सांस के साथ धीमे जहर के शरीर में प्रवेश की भूमिका तैयार हो चुकी है। जलस्रोतों के साथ हुए नृशंस अत्याचार ने यहाँ की धरती में समाई ठंडक खत्म की वहीं चारों तरफ  फैली चट्टानी पहाडिय़ों को इंसानी हवस ने बर्बाद कर दिया। विकास के नाम पर तानी जा रही कांक्रीट की अट्टालिकाओं ने शहर के शांत आवासीय इलाकों की रौनक छीन ली है। ले दे के एक ठो नर्मदा जी बची हैं इतराने के लिए तो उनके अति उत्साहित भक्तजन ही उनकी पवित्रता और शुद्धता से खिलवाड़ करने पर आमादा हैं। यदि ईमानदारी से अध्ययन करवाया जाए तब ये बात सामने आये बिना नहीं रहेगी कि जबलपुर का पर्यावरण काफी बिगड़ चुका है और यही हाल रहा तो आने वाले कुछ सालों बाद यहाँ भी शुद्ध हवा बीते ज़माने की बात होकर रह जायेगी। इस शहर में तमाम विश्वविद्यालय हैं जहां तरह - तरह के शोध होते हैं। अच्छा होगा जबलपुर में बढ़ते प्रदूषण को लेकर वे तथ्यपरक आंकड़े सार्वजनिक करते हुए लोगों को इसके प्रति जागरूक ही नहीं सावधान भी करें क्योंकि जब तक जनता अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेगी तब तक शासन - प्रशासन कुछ नहीं कर सकेंगे। वैसे भी आजकल उनका काम कागज पर आंकड़ों की फसल उगाना मात्र रह गया है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने नौकरशाही को नया फार्मूला दे दिया है जिसके अनुसार काम करो न करो लेकिन करते हुए दिखो जरूर जिससे फोटो छपती और दिखती रहे। इसलिए प्यारे जबलपुर वासियों अभी से सावधान हो जाओ और याद रखो कि भगवान भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद खुद करता है। विकास जब होगा तब होगा लेकिन जो है उसका विनाश न हो जाए इसकी चिंता आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
- रवीन्द्र वाजपेयी

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