Friday 29 November 2019

कर्जमाफी दर्द निवारक गोली है इलाज नहीं



महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना , एनसीपी और कांग्रेस की गठबन्धन सरकार सत्तारूढ़ हो गयी। हालाँकि पूर्व में भी मनोहर जोशी और नारायण राणे के रूप में शिवसेना के मुख्यमंत्री रह चुके हैं लेकिन उद्धव की ताजपोशी इस कारण उल्लेखनीय है क्योंकि वे ठाकरे परिवार के ऐसे पहले व्यक्ति हैं जो न सिर्फ सरकार के हिस्से अपितु सीधे मुखिया बन बैठे और वह भी बिना चुनाव लड़े ही। यद्यपि उनके बेटे आदित्य को पार्टी ने बतौर मुख्यमंत्री पेश किया था और वे चुनाव लडऩे वाले परिवार के पहले सदस्य बने भी किन्तु राजनीतिक घटनाचक्र कुछ इस तरह घूमा कि आदित्य विधायक तक सीमित रह गये और उद्धव का राजयोग जोर मार गया। ये सरकार जिन हालातों में बनी उन्हें दोहराना व्यर्थ है क्योंकि सभी उनसे वाकिफ  हैं किन्तु आज आई खबर के मुताबिक साझा न्यूनतम कार्यक्रम के तहत जो प्राथमिकताएं तय हुईं हैं उनमें किसानों के कर्जे माफ करने की बात सबसे अव्वल है। श्री ठाकरे ने शपथ लेने के बाद सचिवालय से किसानों के कर्जे संबंधी जानकारी माँगी है जिससे कि उनकी समस्याओं का एकमुश्त समाधान किया जा सके। किसानों के प्रति उनकी संवेदनशीलता स्वागतयोग्य है। यूँ भी महाराष्ट्र के किसान काफी परेशानी में बताये जाते हैं। अतिवृष्टि ने उन्हें भारी नुकसान पहुँचाया है। महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या भी बड़ा मुद्दा रहा है। वहां परम्परागत अनाज की खेती के अलावा भी फलों की खेती होती है। प्याज उत्पादन के मामले में तो ये राज्य अग्रणी है। गन्ना भी बहुत बड़े क्षेत्र में पैदा होता है जिसकी वजह से शक्कर के कारखाने बड़ी संख्या में वहां हैं जो महाराष्ट्र की राजनीति को जड़ों तक जाकर प्रभावित करते हैं। शरद पवार को तो पूरी की पूरी ताकत इन्हीं चीनी मिलों से प्राप्त हुई। उद्धव ठाकरे सत्ता की राजनीति में लम्बे समय से रहे किन्तु सत्ता की देहलीज पर चढऩे का ये उनका पहला अवसर है इसलिए उन्हें ऐसा कुछ करना जरूरी लगा जिससे वे अपना असर छोड़ सकें और भविष्य में आने वाले किसी राजनीतिक संकट का सामना करने के लिए तैयार रहें। उस दृष्टि से किसान लॉबी को खुश करना ही सबसे आसान उपाय उन्हें लगा और संभवत: एक दो दिनों में किसानों की कर्ज माफी की घोषणा हो सकती है। उनके साथ सत्ता में भागीदार बनी कांग्रेस चूंकि इसी फार्मूले को अपनाकर पंजाब, मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनावी सफलता हासिल कर चुकी है इसलिए वह भी चाहेगी कि महाराष्ट्र में भी किसानों की कर्ज माफी का फैसला करवाकर वह देश भर में किसानों की हिमायती बनने का ठप्पा अपनी पीठ पर लगा ले। किसान देश के अन्नदाता हैं और कृषि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। उस दृष्टि से इस क्षेत्र के लिए कुछ भी करना सरकार का कर्तव्य है लेकिन कर्जमाफी रूपी इस उपाय से सत्ता तो हासिल की जा सकती है लेकिन न तो खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने की योजना सफल होगी और न ही किसानों की दशा सुधरेगी। बीते वर्षों में अनेक राज्यों में किसानों के कर्जे माफ किये गये। 2009 में मनमोहन सरकार ने तो राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा किया था किन्तु न तो किसानों की आत्महत्याएं रुकीं और न ही कृषि क्षेत्र अपेक्षित प्रगति कर सका। खेती को आयकर से मुक्ति दी गयी है। रोजगार प्रदान करने में भी इस क्षेत्र की महती भूमिका है। बीते कुछ सालों में कृषि क्षेत्र की प्रगति अपेक्षा और आवश्यकता से काफी कम हो गयी है जबकि केंद्र और राज्य सरकारें सर्वाधिक ध्यान इसी पर देती हैं। ग्रामीण विकास का बजट भी अच्छा ख़ासा है। मनरेगा नामक योजना के जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार गारंटी की व्यवस्था की गई। बिजली की दरें भी शहरी उपभोक्ताओं की तुलना में कम ही हैं किन्तु सब कुछ करने के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन और किसानों की आत्महत्या रोकने, खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की रोशनी पहुँचाने जैसे मकसद पूरे नहीं हो सके तब इस बात पर विचार करना जरूरी लगता है कि क्या कर्ज माफी किसानों की समस्या का स्थायी हल है या नहीं? ये मुद्दा इसलिए उठा क्योंकि जिन राज्यों में इसे लागू किया गया वहां इसका समुचित लाभ किसानों तक नहीं पहुंचा। एक तो सरकारी नौकरशाही की भ्रष्ट और लचर कार्यशैली और उपर से खजाना खाली होने की वजह से उत्पन्न संकट की वजह से जैसा सोचा जाता है वैसा होता नहीं है। मप्र इसका ताजा उदाहरण है जहां बीते साल कांग्रेस ने भाजपा को 15 वर्ष बाद सत्ता से बाहर करने में जो सफलता प्राप्त की उसमें किसानों की कर्ज माफी का वायदा तुरुप का पत्ता साबित हुआ। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनावी सभाओं में 10 दिन के भीतर किसानों को दो लाख तक की कर्ज माफी का आश्वासन दिया करते थे लेकिन एक वर्ष बीत जाने के बाद भी वह वायदा पूरा नहीं हो सका। चुनाव परिणाम आने के पहले ही किसानों ने कर्ज चुकाना बंद कर दिया जिससे उन्हें ऋण देने वाले बैंकों की वसूली रुक गयी। इधर राज्य सरकार की आर्थिक हालत खस्ता होने से वह समय पर किसानों के कर्ज खाते में पैसे जमा नहीं करवा सकी। ये स्थिति केवल मप्र की नहीं बल्कि तकरीबन हर राज्य की है। ये देखते हुए उद्धव ठाकरे की नई नवेली सरकार यदि किसानों के कर्ज माफ करने की दरियादिली दिखाती है तब उसके सामने भी ऐसी ही कठिनाई आना तय है। इस बारे में गम्भीरता से सोचकर ऐसी किसी वैकल्पिक योजना को लागू किया जाए जो न सिर्फ  व्यवहारिक हो बल्कि उसके कारण किसानों की बदहाली दूर हो सके। इस बारे में ध्यान रखने वाली बात ये है कि दर्द की गोली जिस तरह बीमारी को जड़ से दूर नहीं कर सकती उसी तरह कर्जामाफी से अस्थायी राहत भले मिल जाए किन्तु किसान दोबारा कर्जदार नहीं बनेगा इसकी गारंटी नहीं है। देश की व्यवसायिक राजधानी में बैठी सरकार को इस बारे में आर्थिक परिणामों के बारे में भी विचार कर आगे बढऩा चाहिये। विडम्बना ये भी है कि फार्म हाउसों के मालिक बनकर किसान होने का स्वांग रचने वाले मंत्रालयों के वातानुकूलित कमरों में बैठकर किसान की दुर्दशा पर घडिय़ाली आंसू बहाते हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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