Wednesday 13 November 2019

शिवसेना : तमाशा बन गये खुद ही तमाशा देखने वाले



महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने के निर्णय की आलोचना करने वाले दलों के अपने तर्क हो सकते हैं लेकिन शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने सरकार बनाने के मामले में जो अनिर्णय की स्थिति बनाकर रखी उसकी वजह से राज्यपाल के पास और कोई विकल्प नहीं बचा था। शिवसेना जब बहुमत का प्रमाण देने में विफल रही तब राजभवन द्वारा एनसीपी को कल रात 8.30 बजे तक का समय दिया गया लेकिन पार्टी ने कल सुबह 11.30 बजे ही और समय दिए जाने की अर्जी भेज दी। राज्यपाल ने चूंकि शिवसेना को और समय देने से इनकार कर दिया था इसलिए एनसीपी को और मोहलत देना संभव नहीं था। कांग्रेस ने अभी तक अपने विधायक दल का नेता ही नहीं चुना इसलिए उसे निमंत्रण नहीं दिया गया। उधर कांग्रेस और एनसीपी मिलकर भी ये तय नहीं कर पाए कि शिवसेना को समर्थन दिया जावे या नहीं। एनसीपी ने भी शिवसेना को किसी भी तरह का आश्वासन नहीं दिया। वहीं कांग्रेस ने ये कहकर अनिश्चितता बनाये रखी कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम को अंतिम रूप दिए बिना वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंचेगी। राज्यपाल को जब लगा कि शिवसेना और एनसीपी दोनों बहुमत का इंतजाम करने में विफल रहीं तब उन्होंने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश भेज दी जिसे केंद्र सरकार ने मंजूर करते हुए राष्ट्रपति को भेजा जिन्होंने बिना देर लगाये उस पर मोहर लगा दी। शिवसेना ने तत्काल सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगा दी जिस पर आज सुनवाई होगी। उधर एनसीपी और कांग्रेस ने संयुक्त पत्रकार वार्ता में राष्ट्रपति शासन लगाने की तो आलोचना की लेकिन ये भी स्वीकार किया कि अभी तक सरकार बनाने के मामले में वे किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं। शरद पवार ने तो मजाक में ये तक कह दिया कि राज्यपाल ने उन्हें सरकार बनाने के लिए छह महीने का समय दे दिया है। ज्योंही राष्ट्रपति शासन लगा त्योंही भाजपा ने भी अपनी कोशिशों को नए सिरे से शुरू कर दिया। वहीं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने बेटे के साथ उतरा हुआ चेहरा लेकर पत्रकारों से मिले और अपने हिंदुत्ववादी होने का हवाला देते हुए भाजपा पर वायदा खिलाफी का आरोप लगाया लेकिन वे एनसीपी और कांग्रेस की चालबाजी से खुद को ठगा सा महसूस करते दिखे। इस समूचे मामले में एक बात साबित हो गयी कि कांग्रेस भाजपा की सरकार को रोकने की इच्छा के बावजूद एनसीपी को खुला हाथ देने के मूड में नहीं है। वहीं एनसीपी भी उद्धव ठाकरे को तश्तरी में रखकर महाराष्ट्र की सत्ता सौंपने के लिए तैयार नहीं है। इधर शिवसेना की परेशानी ये हो गयी कि जल्दबाजी और अति उत्साह में वह इतना आगे बढ़ गयी कि अब उसके लिए पीछे लौटना नामुमकिन हो गया है। शुरू में शिवसेना के रणनीतिकार मानकर चल रहे थे कि भाजपा से नाता तोड़ते ही एनसीपी और कांग्रेस उसे कंधों पर बिठाकर घुमाएंगे। लेकिन उन्होंने दाना फेंककर पहले तो आदित्य ठाकरे को अनुभवहीन बताते हुए उद्धव को मुख्यमंत्री बनने के लिए राजी किया और उसके बाद उन पर एनडीए से बाहर निकलने का दबाव बनाते हुए केन्द्रीय मंत्रीमंडल में शिवसेना के मंत्री के इस्तीफे की शर्त भी रख दी। शिवसेना ने भीगी बिल्ली की तरह सारी बातें मान भी लीं किन्तु एन वक्त पर एनसीपी और कांग्रेस ने उसे ठेंगा दिखा दिया। भाजपा के साथ रहते हुए भी उसे गरियाने वाली शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के विरुद्ध जुबान खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रही जो उसकी दयनीयता को दर्शाता है। राष्ट्रपति शासन लगते ही भाजपा ने जिस तरह शिवसेना छोड़कर आये नारायण राणे को सरकार बनाने की कोशिशों के साथ आगे किया उसकी वजह से शिवसेना ही नहीं एनसीपी भी चिंतित हो गयी है क्योंकि श्री राणे एनसीपी में भी रहे हैं। यद्यपि भाजपा को सरकार बनाने के लिए जितने विधायकों का समर्थन चाहिए उतने जुटाना कठिन लगता है लेकिन ये भी सही है कि मौजूदा स्थिति में स्थिर सरकार केवल भाजपा के नेतृत्व में ही बन और चल सकती है। ये भी कहा जा सकता है कि दूसरे दलों में सेंध लगाने की क्षमता भी भाजपा में सबसे अधिक है। कर्नाटक में कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनने हेतु समर्थन देकर कांग्रेस ने भले ही भाजपा को रोक दिया था लेकिन बाद में जो हुआ उसे देखते हुए शिवसेना और एनसीपी के अनेक विधायक यदि भाजपा की गोद में आ बैठें तो आश्चर्य नहीं होगा। इस दौरान तो कई बार लगा कि खुद शरद पवार नहीं चाहते कि शिवसेना का मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस के लिए तो शिवसेना का समर्थन करना सौ जूते या सौ प्याज खाने जैसी दुविधा से गुजरने जैसा है। इसीलिये सोनिया गांधी किसी न किसी बहाने समर्थन की चि_ी देने से बचती रहीं। शरद पवार ने कल शाम जिस बेफिक्र अंदाज में राष्ट्रपति शासन पर अपनी प्रतिक्रिया दी उससे लगा कि वे भी शिवसेना को ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं हैं। खैर, आगे जो भी हो लेकिन फिलहाल तो उद्धव ठाकरे दो पाटों के बीच में फंस गए हैं। भाजपा से उनका दोबारा गठबंधन फिलहाल तो नामुमकिन लगता है और एनसीपी तथा कांग्रेस जी भरकर उनका मजाक बनाने पर तुले हैं। आने वाले दिनों में भले शिवसेना अपनी सरकार बना ले जाए लेकिन उसकी ठसक पूरी तरह उतर चुकी है। पार्टी अपने मुखपत्र सामना में हर किसी की हंसी उड़ाने पर आमादा रहा करती थी लेकिन बीते दो सप्ताह में उद्धव ठाकरे को खुद सियासत के भद्दे मजाकों का सामना करना पड़ा है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment