Monday 25 November 2019

महाराष्ट्र के महानाटक में कई मोड़ बाकी हैं



महाराष्ट्र का सियासी घटनाक्रम लगातार रोचक होता जा रहा है। बीते शनिवार की सुबह - सुबह देवेन्द्र फडऩवीस सरकार को शपथ दिलवाकर राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी भी विवादों के घेरे में आ गए। शुक्रवार की शाम तक जहाँ उद्धव ठाकरे की ताजपोशी की पूरी तैयारी हो चुकी थी वहीं शनिवार की सुबह विशुद्ध छापामार शैली में भाजपा ने बाजी पलटने का कारनामा कर दिखाया। शरद पवार के भतीजे अजीत पवार की बगावत ने भाजपा की सत्ता तो बनवा दी किन्तु बात उतनी सीधी और सरल नहीं रही जितना भाजपा के रणनीतिकार सोचते थे। शाम होते - होते शरद पवार ने साबित कर दिया कि उस्ताद क्या होता है ? एनसीपी के 50 विधायकों को बटोरकर उन्होंने अजीत को एक तरह से अकेला कर दिया। ऐसा लगा कि भाजपा ने सत्ता की लालच में अपनी भद्द पिटवा ली। राष्ट्रपति शासन हटवाने के तरीके और शपथ ग्रहण के लिए बरती गयी गोपनीयता पर भी सवाल उठने लगे। अजीत पवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर श्री फडऩवीस का भी खूब मजाक उड़ा। इसी बीच मामला जा पहुंचा सर्वोच्च न्यायालय जिसने रविवार को अवकाश के दिन भी सुनवाई की किन्तु कोई निर्देश देने की बजाय नोटिस जारी करते हुए बात आज पर टाल दी। लेकिन दूसरी तरफ एनसीपी द्वारा अजीत पवार को विधायक दल के नेता पद से हटाये जाने के बाद राजनीतिक से ज्यादा तकनीकी पेंच फंस गया है। अजीत को पार्टी ने निकाला नहीं और न ही उन्होंने पार्टी छोड़ी। शरद पवार ने गत दिवस राज्यपाल को जो समर्थन की नई चि_ी सौंपी उसमें भी अजीत का नाम है। दूसरी तरफ  वे भी चाचा को अपना नेता मानते हुए एनसीपी- भाजपा सरकार के बहुमत का भरोसा दिखा रहे हैं। अभी तक की खबरों के मुताबिक तो अजीत पवार के पास एनसीपी के इक्का-दुक्का विधायक ही बचे हैं और इस आधार पर देवेन्द्र फडऩवीस सरकार का बचना नामुमकिन लगता है। जानकार सूत्रों के अनुसार भाजपा की रणनीति अजीत के नेता पद को विधानसभा अध्यक्ष से मान्यता दिलवाकर व्हिप जारी करने का अधिकार उनके पास बनाये रखने की है। यदि ये दांव सफल हो गया तो विचित्र स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। लेकिन ऐसा होना आसान नहीं लगता। हो सकता है ये मामला भी अदालत में चला जाए। बहरहाल मौजूदा सूरतेहाल में लोकतान्त्रिक और संसदीय प्रणाली का जिस तरह से मखौल उड़ रहा है वह चिंता का विषय है। राजनीतिक सौदेबाजी का स्तर भी बाजारू हो गया है। शिवसेना द्वारा एनसीपी और कांग्रेस से गठबंधन को अपवित्र बताने वाली भाजपा को उन अजीत पवार से हाथ मिलाकर सत्ता हासिल करने में तनिक भी संकोच नहीं हो रहा जिन्हें भ्रष्टाचार की प्रतिमूर्ति मानकर वह जेल में चक्की पिसवाने की डींग हांका करती थी। जनादेश की व्याख्या सब अपनी सुविधा से कर रहे हैं। बीते शुक्रवार की रात से लेकर शनिवार की सुबह तक के समूचे घटनाक्रम में राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है। सरकार का शपथ ग्रहण जिस ताबड़तोड़ तरीके से हुआ उसमें संवैधानिकता का कितना पालन और कितना उल्लंघन हुआ उस पर अभी तक पर्दा पड़ा हुआ है। हालाँकि ये नई बात नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने आज दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला कल सुबह तक टाल दिया है। वह क्या फैसला देता है ये तो वही जाने किन्तु अभी तक के जो समीकरण सामने आये हैं उनके मुताबिक भाजपा एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही है। उसकी उम्मीदें केवल अजीत पवार के व्हिप जारी करने के अधिकार के सुरक्षित रहने पर टिकी हुईं हैं। यदि विधानसभा में मतदान के दौरान कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो फडऩवीस सरकार का बचना असंभव है। यदि एनसीपी को तोड़ फोड़कर वह बच गई तब भी अजीत पवार उसके दामन पर एक दाग की तरह बने रहेंगे। वैसे आज की भाजपा को इन बातों से कुछ फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह पहले भी सुखराम जैसों से गठबंधन कर सत्ता में बने रहने का उदाहरण पेश कर चुकी है। देवेन्द्र फडऩवीस की छवि एक बेदाग़ मुख्यमंत्री की रही है। उनमें अपर संभावनाएं भी हैं। लेकिन मौजूदा हालातों में अजीत पवार के साथ हाथ मिलाने से उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ है। आपरेशन लोटस के जरिये दूसरे दलों में सेंध लगाने की भाजपाई कोशिशें यदि सफल हो गईं तब तो ठीक वरना सारी उठापठक उसके लिए बदनामी का सबब बने बिना नहीं रहेगी। देवेन्द्र और अजीत की जोड़ी ने अभी तक हार नहीं मानी तो हो सकता है उसके पास कोई जादुई फार्मूला हो लेकिन एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस भी पूरी तरह मुस्तैद हैं। इस समूची खींचतान में विधायकों को होटलों में रखना और बार-बार होटल बदलना भी जनप्रतिनिधियों की वफादारी और ईमानदारी पर सवाल लगा रहा है। महाराष्ट्र के महानाटक में अभी अनेक मोड़ आयेंगे क्योंकि दोनों ही पक्षों में एक से एक बढ़कर कलाकार मौजूद हैं। रही बात नैतिकता की तो वह आज की राजनीति में अप्रासंगिक ही नहीं अनावाश्यक बनकर रह गई है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment