Monday 18 November 2019

अयोध्या : राख में चिंगारी तलाशने की कोशिश



अयोध्या पर सर्वोच्च न्यायालय के बहुप्रतीक्षित फैसले के बाद पूरे देश ने राहत महसूस करते हुए उसका स्वागत किया । तमाम आशंकाओं को झुठलाते हुए सर्वत्र साम्प्रदायिक सद्भाव कायम रहा। अयोध्या तक में अभूतपूर्व शांति देखी गई। राजनीतिक दलों ने भी परिपक्वता का प्रदर्शन किया । कुछ विघ्नसंतोषियों को छोड़कर लगभग सभी ने बीती ताहि बिसर दे आगे की सुधि लेय का महत्व समझकर सैकड़ों वर्ष पुराने विवाद की इतिश्री का इरादा व्यक्त करते हुए ये ज़ाहिर कर दिया कि 21 वीं सदी का भारत संवेदनशील ही नहीं, जिम्मेदार भी हो गया है । फैसले के बाद हालांकि कुछ लोगों ने विरोध का इरादा जताया किन्तु उसे खास तवज्जो नहीं मिली। लेकिन दो-चार दिन बाद ही इस बात के संकेत आने लगे कि कुछ लोगों को अमन-चैन अच्छा नहीं लगता । सर्वोच्च न्यायालय ने मस्जिद हेतु 5 एकड़ भूमि देने के साथ ही एक न्यास बनाकर मंदिर निर्माण किये जाने के निर्देश केंद्र सरकार को दिए । कई पीढिय़ों से चले आ रहे इस विवाद को हल करने के इस फार्मूले को भी व्यापक समर्थन मिला। लेकिन सप्ताह बीतते-बीतते ऐसे संकेत मिले जिनसे विवाद को आगे घसीटने के कुत्सित इरादे सामने आ गए। अव्वल तो अयोध्या में बैठे संतों के कुछ गुट आपस में टकराए । इसके पीछे मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट में घुसने का उद्देश्य था। कुछ संतों के बीच तो बाकायदा मारपीट होने तक की खबरें आ गई। सब अपने आपको मंदिर निर्माण का अधिकृत दावेदार बताने लगे। एक शंकराचार्य भी अपने न्यास को सबसे पुराना बताकर दावा ठोकते सुनाई दिए। राजनीतिक दलों ने अभी तक तो काफी समझदारी दिखाई दिग्विजय सिंह ने जरूर जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानन्द जी के रामालय ट्रस्ट की तरफदारी की । लेकिन बाकी नेतागण आमतौर पर मौन ही रहे। इस कारण हिंदू साधू-संतों के विवाद को विशेष समर्थन नहीं मिल सका । सरकार की तरफ  से रक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने फैसले के बाद सभी धर्मों के प्रतिनिधि धमाचार्यों की बैठक बुलाई थी जिसमें सभी ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को मानने पर रजामंदी व्यक्त कर दी । पता चला कि सरकार भी न्यास के गठन के बारे में सक्रिय है और जल्द उसका ऐलान हो जाएगा । लेकिन गत दिवस मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में फैसले के विरुद्ध पुनर्विचार याचिका पेश करने का फैसला किया गया। यद्यपि इसे एकमतेन नहीं कहा जा सकता क्योंकि कुछ सदस्यों ने विरोधस्वरूप बैठक का बहिष्कार कर दिया जबकि कुछ नाराज होकर बीच में ही चले गए । बैठक में पुनर्विचार याचिका के अलावा मस्जिद के लिए अन्यत्र भूमि न लेने का फैसला भी हुआ। बाबरी मस्जि़द एक्शन कमेटी के जफरयाब जिलानी और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी तो सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के तत्काल बाद से ही उसे नकारने लग गए थे। अन्य मुस्लिम नेताओं ने भी असहमति के बावजूद मामले को खत्म करने जैसी समझदारी भरी बातें कहीं किन्तु पर्सनल लॉ बोर्ड के ताजा फैसले के बाद लगता है राख में चिंगारी तलाशने का प्रयास जारी रहेगा । एक तरफ  हिन्दू धर्माचार्यों में प्रभुत्व कायम करने की चिर-परिचित खींचातानी चल रही है तो दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय का एक गुट ठंडी होती आग को हवा देकर भड़काने के प्रयास में जुटा हुआ है । इस मामले में संतोष और सौभाग्य का विषय ये है कि दोनों ही धर्मों के समझदार और बहुसंख्यक लोग विवाद को आगे खींचने की बजाय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को शिरोधार्य करने के इच्छुक हैं । प्रमुख राजनीतिक दल भी इसी के पक्ष में होने से इतने बड़े विवाद के अदालती हल की स्थिति आसानी से उत्पन्न हो सकी। इस सबके बीच कतिपय टीवी चैनलों की भूमिका भी शरारतपूर्ण रही जो हिन्दू और मुस्लिम पक्ष के लोगों को बिठाकर तीतर-बटेर की तरह लड़वा टीआरपी बढ़ाने में जुटे रहे। बहरहाल केंद्र सरकार को चाहिए वह सर्वोच्च न्यायालय की मंशा के अनुरूप फैसले को लागू करवाने की दिशा में आगे बढ़े। प्रस्तावित न्यास में भी ऐसे लोगों को ही रखा जावे जो अपने मान -सम्मान से ज्यादा मंदिर निर्माण के लिए ईमानदारी से संकल्पित हों । इसी तरह मुस्लिम समुदाय के शरारती तत्वों को महत्व दिए जाने की बजाय उन लोगों को आगे लाया जाए जो मुसलमानों को मुख्य धारा में लाकर उनके विकास के लिए प्रयासरत हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों समुदायों को एक स्वर्णिम अवसर दिया है शांति और सद्भाव के साथ मिलकर अपना और देश दोनों का विकास करने का। दूध में नींबू निचोडऩे के अभ्यस्त लोग इस स्थिति को हजम नहीं कर पा रहे। ऐसे लोगों को चाहे वे कोई भी हों न केवल उपेक्षित अपितु बहिष्कृत भी किया जाना चाहिए । सन्तोष का विषय है कि आम हिन्दू और मुसलमान इस विवाद को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में हल करने की मानसिकता बना चुके हैं । न्यायालयीन निर्णय के बाद से पूरे देश में जिस प्रकार शान्ति-व्यवस्था कायम रही वह एक तरह का संदेश है उन तत्वों को जो इस विवाद को जिंदा रखते हुए अपनी रोटी सेंकने के लिए प्रयासरत हैं। केंद्र सरकार को बिना देर किए आगे कदम बढ़ाने चाहिए क्योंकि न्यायपालिका ने जो अनमोल अवसर दिया है उसका पूरा-पूरा लाभ उठाना जरूरी है । वरना एक ऐतिहासिक मौका हाथ से निकल जायेगा । मंदिर निर्माण जितनी जल्दी शुरू होगा उतनी जल्दी शरारती तबके के हौसले ठंडे पड़ जाएंगे।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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