Tuesday 12 November 2019

कांग्रेस को पवार का रिंग मास्टर बनना रास नहीं आ रहा



महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन का मामला जिस तरह से उलझता जा रहा है उससे शिवसेना को ये समझ में आ गया होगा कि अपना मुख्यमंत्री बनाने का सपना साकार करना उतना आसान नहीं जितना वह समझ रही थी। भाजपा द्वारा पांव पीछे खींच लेने के बाद राज्यपाल ने उसको सरकार बनाने का न्यौता देते हुए कल शाम तक का समय दिया था। आदित्य ठाकरे राजभवन जाकर बैठे भी रहे लेकिन न उनके पास एनसीपी के समर्थन की चि_ी थी और न ही कांग्रेस के। लिहाजा राज्यपाल ने और समय देने से इंकार करते हुए एनसीपी को निमंत्रण देकर  आज रात 8.30 बजे तक का समय दे दिया। सबसे रोचक बात ये है कि एनसीपी की शर्त मानकर शिवसेना ने एनडीए से नाता तोड़ते हुए केंद्र सरकार से अपना मंत्री भी हटा लिया लेकिन उसके बावजूद शरद पवार उद्धव ठाकरे को बातों में उलझाये हुए हैं। राज्यपाल द्वारा सरकार बनाने का निमंत्रण मिलने पर एनसीपी द्वारा इंकार नहीं किये जाने और दिल्ली में कांग्रेस की उच्चस्तरीय बैठक के बाद जारी बयान में शिवसेना को समर्थन देने के बारे में निर्णय आज पर टाल देने की बाद से उद्धव ठाकरे की घबराहट बढऩा स्वाभाविक है। अंदरखाने की खबर के अनुसार एनसीपी शिवसेना को झूला झुलाने की रणनीति पर चलते हुए अकेला करने की कोशिश में है। भाजपा के विरुद्ध वह इतना जहर उगल चुकी है कि फिलहाल उसके साथ दोबारा दोस्ती मुश्किल है और इधर शरद पवार के अलावा जब तक कांग्रेस का साथ नहीं मिलेगा तब तक सत्ता हाथ आना नामुमकिन है। कांग्रेस की दुविधा ये है कि वह शिवसेना को समर्थन देकर मुस्लिम मतों को खोने का खतरा मोल लेने से बचना चाहती है। मुम्बई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पुराने शिवसैनिक संजय निरुपम ने तो पार्टी को उसके बारे में आगाह भी कर दिया है। प्राप्त संकेतों के मुताबिक सोनिया गांधी महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार नहीं बनने से तो खुश हैं लेकिन वे ये भी नहीं चाह रहीं कि शिवसेना का साथ लेकर शरद पवार दोबारा राज्य की राजनीति में शक्तिशाली बन जाएं। कांग्रेस की एक परेशानी ये है कि उसके पास महाराष्ट्र में नेता तो कई हैं लेकिन उनमें सर्वमान्य कोई नहीं होने से हाईकमान को अलग-अलग सलाह मिल रही हैं। कुछ किसी भी कीमत में सत्ता के साथ जुडऩे के लिए लालायित हैं तो कुछ को पार्टी की धर्मनिरपेक्ष छवि के खंडित होने का खतरा नजर आ रहा है। इसीलिये ये संकेत भी मिले हैं कि श्रीमती गांधी शिवसेना को समर्थन देने का निर्णय एनसीपी के कंधों पर डालकर कांग्रेस को सांप्रदायिक होने के आरोप से बचाए रखना चाह रही हैं। इसके अलावा बिना सरकार में शामिल हुए दबाव बनाने का अधिकार रख मौका मिलते ही झटका देने की अपनी चिर-परिचित नीति पर चलने से भी उसे परहेज नहीं होगा। कांग्रेस द्वारा किये जा रहे विलम्ब का कारण दरअसल एनसीपी की पिछलग्गू होने के आरोप से बचना भी है। उसे ये डर सताने लगा है कि कहीं भविष्य में श्री पावर शिवसेना से गठजोड़ करते हुए महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ी ताकत न बन जाएं। कुल मिलाकर अब तक के संकेतों से पता चलता है कि कांग्रेस भले ही श्री पवार के जरिये गैर भाजपा सरकार को समर्थन दे दे लेकिन अपना मुख्यमंत्री बनाने की शिवसेना की जिद को अस्वीकार करने का दांव भी चल सकती है। कांग्रेस में एक खेमा ये सोच रहा है कि एनसीपी के कहने मात्र से शिवसेना को समर्थन देने की बजाय अपना महत्व साबित किया जावे। अभी तक उद्धव ठाकरे को लग रहा था कि श्री पवार को राजी कर लेने मात्र से उनका काम बन जायेगा। लेकिन श्रीमती गांधी ने निर्णय को लटकाकर श्री ठाकरे के साथ श्री पवार को भी झटका दे दिया। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से ज्यादा सीटें जीतने के बाद से एनसीपी खुद को महाराष्ट्र में वैकल्पिक राजनीतिक ताकत के रूप में प्रस्तुत करने लगी थी। शिवसेना ने भी सरकार बनाने के बारे में श्री पवार से ही सम्पर्क साधा। श्रीमती गांधी से तो उद्धव ने कल फोन पर बात की। निश्चित रूप से कांग्रेस को ये अपनी उपेक्षा लगी होगी। हो सकता है आज की बैठक के बाद वह अपना समर्थन दे भी दे। लेकिन वह उद्धव के लिए होगा या एनसीपी के लिए ये देखने वाली बात होगी। क्या होगा क्या नहीं ये तो कांग्रेस की आज की बैठक के बाद पता चल पायेगा परन्तु पार्टी चाहे तो पिक्चर अभी बाकी है वाली स्थिति उत्पन्न कर सकती है। यदि आज शाम तक उसने किसी को समर्थन की चि_ी नहीं दी तब राज्यपाल एनसीपी को दिया न्यौता वापिस लेकर कांग्रेस के पाले में गेंद सरका देंगे। और उस स्थिति में शिवसेना और एनसीपी दोनों के लिए उगलत-निगलत पीर घनेरी के हालात बन जायेंगे। रही भाजपा तो उसके पास फिलहाल न पाने को कुछ है और न ही खोने को। हां, एनसीपी ने भी मना कर दिया और राज्यपाल के पास किसी के भी समर्थन का पत्र नहीं पहुंचा तब वे कांग्रेस को आमंत्रण दिए बिना राष्ट्रपति शासन की सिफारिश भेजने का कदम उठा सकते हैं। वर्तमान स्थिति में सबसे ज्यादा हास्यास्पद और दयनीय स्थिति शिवसेना और उसकी नेता उद्धव ठाकरे की हो गई है। वे मुख्यमंत्री बनने के बाद भी शिवसेना की चिर परिचित शैली की सियासत नहीं कर सकेंगे। जो उत्पात बीते पांच साल में शिवसेना ने राज्य सरकार में रहते हुए भाजपा को सताने के लिए किया, वैसा ही कांग्रेस भी कर सकती है। आखिरकार उसके पास भी तो संजय राउत जैसा संजय निरुपम जो है।

- रवीन्द्र वाजपेयी


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