सैकड़ों वर्षों से विवाद की जड़ बने हुए अयोध्या मसले पर आगामी कुछ दिनों में ही सर्वोच्च नयायालय की संविधान पीठ का फैसला आने वाला है । बरसों से ये मामला निचली अदालत से चलते हुए आखिर में सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा । जिसने लम्बी अड़ंगेबाजी के बाद अंतत: नियमित सुनवाई करते हुए फैसले को सुनिश्चित कर दिया । अदालत से बाहर आपसी सहमति के जरिये विवाद निपटाने के लिए मध्यस्थ भी शीर्ष न्यायालय ने नियुक्त किये लेकिन बात नहीं बनी । बीते तीस साल से ये प्रकरण कानूनी से ज्यादा धार्मिक और राजनीतिक स्तर पर चर्चित रहा । केंद्र और राज्यों की सरकारें भी इसके चलते बनीं और गिरीं । बात धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण तक जा पहुँची । केंद्र सरकार की तरफ से भी विवाद शांत करने की कोशिशें हुईं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली क्योंकि प्रयासों में ईमानदारी का अभाव था । अलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने वाला जो निर्णय दिया वह भी सम्बन्धित पक्षों को मंजूर नहीं होने पर सर्वोच्च न्यायालय में अपीलें हुईं । वहां भी लम्बी प्रक्रिया चली । किसी न किसी वजह से सुनवाई टलती रही लेकिन वर्तमान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने आगामी 1। नवम्बर को सेवा निवृत्त होने के पहले ही इस विवाद का कानूनी हल करने की प्रतिबद्धता दिखाई और उसी की वजह से वह घड़ी बेहद करीब आ गयी जब देश की सर्वोच्च न्याय आसन्दी इस पर अपना फैसला सुनाने जा रही है । क्या होगा , क्या नहीं ये कोई नहीं बता सकता लेकिन संतोष की बात ये है कि न सिर्फ धार्मिक संगठनों अपितु राजनीतिक दलों की तरफ से भी फैसले के पहले जिस तरह की बातें कही जा रहीं हैं उनसे ये आश्वासन मिल रहा है कि अदालती फैसले को स्वीकार करने की मानसिकता बन चुकी है । दोनों पक्षों के जो धर्माचार्य आस्था के नाम पर अदालत के क्षेत्राधिकार को मानने राजी नहीं होते थे वे ही अपीलें जारी करते हुए कह रहे हैं कि जो भी फैसला आये उसे सभी मान्य करें । इसी आशय की बातें रास्वसंघ और जमायत ए इस्लामी जैसे संगठनों द्वारा भी कही जा रही हैं । फैसले के बाद जीत के जश्न या हार के मातम जैसे किसी आयोजन से बचने की नसीहत दिया जाना भी शुभ संकेत है । निश्चित रूप से इसके पीछे केंद्र सरकार की कोशिशें भी हैं । कुछ दिनों पूर्व फैसले को लेकर की जा रही बयानबाजी पर स्वयं प्रधानमन्त्री ने नाराजगी व्यक्त की थी , जिसका असर भी हुआ । बहरहाल पूरे देश में कानून व्यवस्था बनाये रखने को लेकर एहतियात बरती जा रही है । शासन - प्रशासन अपने काम में लग गए हैं । सोशल मीडिया पर भी नजर रखी जा रही है । समाचार माध्यम भी शांति बनाये रखने में सहयोग दे रहे हैं । ये स्थिति भारत के परिपक्व होने का प्रमाण है । तीन दशक पहले इस मामले में शुरू हुई राजनीति की वजह से जो कटुता उत्पन्न हुई वह पूरी तरह से मिट जायेगी , ये आशावाद पाल लेना जल्दबाजी हो सकती है लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों में एक वर्ग ऐसा मुखर हो उठा है जो उत्साह और उन्माद में फर्क करना जानता है । ये एक रचनात्मक संकेत है । राम मंदिर बने ये देश का बहुसंख्यक हिन्दू चाहता है लेकिन न्यायालयीन फैसले में अग्रिम रूप से विश्वास व्यक्त करने वाली बात पहले नहीं सुनाई देती थी । ऐसा ही एहसास मुस्लिम खेमे से भी आता दिख रहा है । तमाम मुस्लिम संगठनों के प्रमुख भी संयम रखने की अपीलें सार्वजानिक रूप से करते सुने जा रहे हैं । अयोध्या से भी जो खबरें आ रही हैं उनके अनुसार वहां रहने वाले हिन्दू और मुस्लिम किसी भी अप्रिय स्थिति की आशंका को गलत साबित करने के लिए साझा तौर पर प्रयासरत हैं । कुल मिलाकर अब तक के संकेत इस संभावना के प्रति आश्वस्त करते हैं कि अदालत जो भी फैसला करेगी उसे सभी पक्ष सद्भावना के साथ स्वीकार करेंगे । एक मुस्लिम नेता ने तो यहाँ तक कह दिया कि फैसला हिन्दुओं के पक्ष में आने के बाद भी कोई अपील नहीं की जाए । ये मानसिकता आगे भी बनी रहे और लंबे समय से उलझे हुए विवादित मसलों पर ऐसी ही समझदारी दिखाई जाए तो देश अनेक समस्याओं से मुक्त होकर तेजी से विकास की राह पर बढ़ सकता है । सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के पांचों न्यायाधीश फैसले को अंतिम रूप देने में व्यस्त होंगे । देश भर से जिस तरह की अच्छी खबरें उन तक सामाचार माध्यमों के जरिये पहुँच रही हैं उनसे वे भी अपने आपको दबावमुक्त अनुभव कर रहे होंगे जो ऐसे अवसर पर नितांत जरुरी होता है । तीन दशक से देश की राजनीति को भीतर तक प्रभावित कर रहे इस विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद कोई विवाद न हो ये देश का प्रत्येक जिम्मेदार और समझदार व्यक्ति चाह रहा है ।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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