Friday 6 August 2021

दो साल में धारा 370 हटाये जाने का औचित्य साबित हो गया



जम्मू – कश्मीर से धारा  370 हटे कल  दो वर्ष बीत गये | इस निर्णय से नाराज  कश्मीरी नेताओं ने पुरानी स्थिति बहाल करने की मांग  के साथ ही केंद्र सरकार पर सवाल दागते हुए उस फैसले से हुए फायदों के बारे में जानना चाहा | हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने भी ये बयान देकर  अपनी फजीहत करवा ली थी  कि कांग्रेस के सत्ता में लौटने पर धारा 370 को दोबारा अस्तित्व में लाने पर विचार किया जावेगा | भले ही उनकी पार्टी के ही अनेक नेताओं ने उस बयान को निजी बताकर पल्ला झाड़ना चाहा किन्तु हमेशा की तरह श्री सिंह की बेलगाम जुबान ने पार्टी को शोचनीय स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया | बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने तो यहाँ तक कह दिया कि उक्त धारा को हटाये जाने से देश का नाम विश्व भर में कलंकित हो गया | विपक्ष में और भी ऐसी पार्टियाँ और नेता हैं जिनको जम्मू – कश्मीर में अलगाववाद को पालने – पोसने वाली धारा 370 हटाये जाने का उतना ही दुख है जितना अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार के अलावा हुर्रियत के नेताओं को | ये बात बिलकुल सही है कि  उक्त निर्णय का क्या प्रभाव पड़ा उसका समीक्षात्मक आकलन होना चाहिए | जहाँ तक बात जम्मू और कश्मीर से लद्दाख अंचल को अलग कर दो केंद्र शासित क्षेत्र  बनाने की है तो वह पूरी तरह सही साबित हुई | अलग केंद्र शासित क्षेत्र बन जाने से लद्दाख के विकास की  गति दोगुनी – चौगुनी हो गई है | चीन की सीमा से सटे लद्दाख का सैन्य दृष्टि से जो महत्व है उसके मद्देनजर उसका केन्द्र शासित होना अत्यावश्यक था | गत वर्ष हुए सीमा विवाद के दौरान उक्त निर्णय की जरूरत भी साबित हो गई | इसी तरह जम्मू – कश्मीर को विधानसभा  के बावजूद  पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं देना भी समयोचित था | हालांकि केंद्र सरकार लगातार  आश्वस्त करती आ रही है कि स्थितियां सामान्य होने पर पूर्ण राज्य की श्रेणी दे दी जायेगी किन्तु विधानसभा के नए चुनाव के पहले सीटों का  परिसीमन किये जाने पर भी घाटी के नेताओं के पेट में दर्द है | दरअसल  370 के रहते तक घाटी में विधानसभा सीटों की संख्या ज्यादा होने से जम्मू को नेतृत्व से वंचित रखने की कुटिल नीति अपनाई जाती रही | बीते दो साल में  वहां नए सिरे से परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की गई जिसके बाद घाटी और जम्मू के बीच राजनीतिक असंतुलन खत्म होने की  उम्मीद बढ़ गई है | कश्मीर रियासत के भारत में विलय के बाद भी वहां कार्यरत हजारों सफाई मजदूरों को नागरिकता और मताधिकार से वंचित रखा गया था | इस विसंगति को भी दूर कर दिया गया | जम्मू – कश्मीर की लड़की का किसी अन्य राज्य के लड़के से विवाह होने पर उसे अपनी पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता था | इस फैसले को भी हाल ही में बदल दिया गया | सबसे बड़ा मुद्दा 370 की आड़ में पनपने वाला  आतंकवाद था |  घाटी में तो वह कुटीर उद्योग का रूप ले चुका था | आतंकवादी को पकड़ने या घेरने वाले सुरक्षा बलों पर पथराव को हुर्रियत ने रोजगार से जोड़ दिया | लड़कों के साथ लड़कियां भी पैसों की खातिर पत्थरबाज बनने लगीं | आतंकवादी की अंतिम यात्रा में इस तरह जनसैलाब उमड़ता जैसे  कोई देशभक्त शहीद हुआ हो | धारा 370 की विदाई के बाद  ऐसी  घटनाओं पर किस हद तक नियन्त्रण हो सका ये जगजाहिर है | बीती गर्मियों में वहां जितनी बड़ी संख्या में पर्यटक आये वह इस बात का जीवंत प्रमाण था कि आतंक  का माहौल कम होता जा रहा है | ये आशंका भी जताई जाती थी कि राजनीतिक  नेताओं की रिहाई के बाद घाटी एक बार फिर अशांत हो जायेगी लेकिन पत्ता तक  नहीं खड़का | पंचायत चुनाव भी बड़ी ही शांति से संपन्न हुए | हालाँकि हुर्रियत नेता अब भी नजरबंदी में हैं लेकिन वे पहले से ही चुनाव का बहिष्कार करते रहे हैं | बीते दिनों प्रधानमन्त्री ने विधानसभा चुनाव करवाए जाने को लेकर राज्य के तमाम राजनीतिक नेताओं की जो बैठक बुलाई उसमें आने के लिए महबूबा मुफ्ती ने ये शर्त रख दी कि पाकिस्तान से भी बात की जाए लेकिन जब उनको लगा कि कोई और उनका साथ नहीं दे रहा तब वे चुपचाप बैठक में आ गईं जिसमें उन सबको साफ़ बता दिया गया कि परिसीमन के बाद ही चुनाव होंगे | बैठक के बाद बाहर निकले नेताओं के तेवर बता रहे थे कि उनकी अकड़ खत्म हो चली है | अगली बैठक के लिए भी सभी ने खुशी –  खुशी राजामंदी दे दी | गुलाम नबी आजाद , फारुख और उमर अब्दुल्ला तथा महबूबा मुफ्ती के  अलावा छोटी पार्टियों के नेताओं की भाव भंगिमा से साफ़ था कि वे ये मान चुके हैं कि 370 के पुनर्जीवित होने के कोई आसार नहीं हैं | गत दिवस उमर ने ये तंज कसा कि 370 खत्म होने के बाद भी आखिर कश्मीरी पंडित घाटी में वापिस क्यों नहीं लौटे ? लेकिन ये सवाल पूछने के पहले अब्दुल्ला परिवार को इस बात का जवाब देना चाहिये था  कि वे अपनी अपनी माँ – बहिनों की  आबरु और जान बचाने की खातिर खौफनाक हालातों में रातों - रात अपना सब कुछ छोड़कर घाटी से भागकर अपने ही देश में शरणार्थी क्यों बने ? और क्या उमर  और उनके वालिद फारुख ने कभी उनके शिविरों  में जाकर उनका दुःख बांटते हुए उन्हें वापिस लौटाने का प्रयास किया ? ये बात पूरी तरह सही है कि अभी कश्मीर घाटी से पलायन करने वाले हिन्दुओं में घर वापिसी का साहस नहीं पैदा हो सका | लेकिन ये तथ्य  भी विचारणीय है कि 370 हटने के बाद  स्थिति सामान्य होने का समय आता उसके पहले ही कोरोना आ गया जिसकी वजह से समूचा देश अस्त – व्यस्त हो गया |  हालात जिस तरह सुधर रहे हैं और घाटी पर केंद्र सरकार का प्रभाव पूरी तरह कायम होता जा रहा है उसकी वजह से वहां जनता भी आतंकवाद के विरुद्ध मुंह खोलने लगी है | हालांकि देश विरोधी ताकतें अभी भी  सक्रिय हैं लेकिन उनका प्रभावक्षेत्र सीमित होता जा रहा है | ये देखते हुए  उम्मीद की जा सकती है कि 370 की अगली पुण्य तिथि आते तक घाटी के लोगों को भी ये समझ में आने लगेगा कि अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार ने विशेष दर्जे के नाम पर अपना स्वार्थ तो साबित किया किन्तु जनता को सिवाय गरीबी , बदहाली , बेरोजगारी और आतंक के और कुछ नसीब नहीं हुआ | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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