काबुल पर कब्जा कर लेने के बाद जब तालिबान नेताओं को लगा कि विश्व बिरादरी ही नहीं अफगानिस्तान की जनता भी उनसे भयभीत है तो उसके प्रवक्ता ने अनेक अच्छी – अच्छी बातों के साथ ही इस तरह के आश्वासन भी दिए जिनसे ये लगे कि वह अब पहले जैसा नहीं रहा | महिलाओं को काम पर लौटने के साथ ही अफगानी नागरिकों से देश नहीं छोड़ने की अपील भी की गई | समाचार माध्यमों को अपनी आलोचना की छूट भी तालिबान ने देने की बात कही बशर्ते वे इस्लामिक गतिविधियों को भी समुचित महत्व दें | महिलाओं के अधिकारों और सम्मान के प्रति तालिबान शासन की प्रतिबद्धता व्यक्त करने के साथ ही ये शर्त भी जोड़ दी गयी कि उन्हें इस्लामी तौर – तरीकों का पालन करना होगा | भारत को वहां अपना कारोबार जारी रखने की छूट देते हुए तालिबान ने कश्मीर विवाद को भारत – पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मामला बताकर संकेत दिया कि वह इससे दूर रहेगा | सबसे बड़ी बात ये कही गई कि अफगानिस्तान की धरती का उपयोग किसी और देश के विरुद्ध किये जाने की अनुमति नहीं दी जायेगी | अपना उदारवादी रूप दिखाते हुए ऐलान किया गया कि नई सत्ता ने उसका विरोध करने वालों को भी माफ़ कर दिया है और किसी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जायेगी | हालाँकि प्रवक्ता ने हर बात में ये जरूर जोड़ा कि उनका देश इस्लामिक व्यवस्था से संचालित होगा और सबको उसी के अनुरूप चलना होगा | अर्थात जिन आजादियों का आश्वासन दिया गया वे सब सशर्त हैं और इस्लामी कानूनी और सामाजिक व्यवस्था ही वहां हावी रहेगी | दरअसल तालिबान की वापिसी पर जिस प्रकार की प्रतिक्रिया दुनिया भर में हुई उसने इस कट्टरपंथी संगठन को चिंता में डाल दिया | पश्चिम एशिया में हो रहे खून - खराबे के बावजूद आईएसआईएस अब तक कामयाब नहीं हो सका जबकि युद्ध की विभीषिका ने अरब जगत के अनेक देशों की आर्थिक स्थिति खराब कर दी | अफगानिस्तान वैसे भी बहुत ही गरीब है | उस लिहाज से बीते बीस साल में विकास का जो दौर शुरू हुआ है यदि उस पर विराम लग गया तब देश के भीतर तालिबान को विरोध का सामना करना होगा | | नए सत्ताधीशों को ये खौफ भी है कि बड़ी संख्या में देश छोड़कर जाने वाले अफगानी नागरिक तालिबान की सत्ता के विरुद्ध विश्व जनमत को प्रभावित कर सकते हैं | बीते दो – तीन दिन में तालिबान लड़ाकों द्वारा महिलाओं के साथ किये गये आपत्तिजनक व्यवहार की खबरें जिस तेजी से आईं उसके कारण पूरी दुनियां में नई सत्ता के प्रति गुस्सा देख़ने मिला | मानवाधिकारों की रक्षा को लेकर तो इस संगठन की छवि पहले से ही खराब रही है | तालिबान के प्रमुख नेताओं को ये फ़िक्र भी है कि चीन और पाकिस्तान से मिला खुला समर्थन उनके लिए मुसीबत न बन जाये क्योंकि बीते दो दशक में वहां जो युवा पीढ़ी पनपी वह धार्मिक कट्टरता को आसानी से पचा नहीं सकेगी | शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं को मिले अवसर छीनने पर भी अंदर ही अंदर विरोध पनपेगा | तालिबान नेताओं को एक बात समझ में आने तो लगी है कि विश्व जनमत की उपेक्षा करने पर वे अलग - थलग पड़ जायेंगे और उस स्थिति में फिर से महाशाक्त्तियाँ अफगानिस्तान पर शिकंजा कस सकती हैं | आर्थिक प्रतिबंध की आशंका भी बनी हुई है | हालाँकि ये बात भी कूटनीतिक क्षेत्रों में सुनी जा रही है कि अफगानिस्तान से अमेरिका द्वारा अपना डेरा जिस तरह उठाया गया और तालिबान टहलते हुए काबुल तक चले आये वह उनके और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडन के बीच हुए किसी गोपनीय समझौते का परिणाम है | और इसीलिये इस्लामी कट्टर छवि को धोने के लिए तलिबान की ओर से चिकनी – चुपड़ी बातें की जा रही हैं | लेकिन उन बातों पर उसके देश के ही लोग भरोसा करने राजी नहीं हैं | इसका प्रमाण देश छोड़कर भागे अफगानी पुरुषों और महिलाओं द्वारा व्यक्त की जा रही बातों से मिलता है | ये बात भी सामने आ रही है कि काबुल के पहले जिन – जिन इलाकों पर तालिबान काबिज होते गये वहां उन्होंने जमकर लूटमार की और महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाया | इसीलिये दुनिया भर में रह रहे अफगानी अपने उन परिजनों की खैरियत को लेकर चिंतित हैं जो अब तक देश में ही रह रहे हैं | तालिबान द्वारा गत दिवस आश्वासनों का जो पिटारा खोला गया उनकी विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है | पिछली सरकार के लोगों को माफी और महिलाओं को सरकार में शामिल होने के न्यौते के अलावा अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से जुड़ने की उसकी चाहत के पीछे ईमानदारी कितनी है ये पक्के तौर् पर कोई नहीं कह पा रहा | इसीलिये भले ही चीन ने उसे मान्यता दे दी और पाकिस्तान भी बेशक उसका अनुसरण करेगा किन्तु विश्व की बाकी बड़ी आर्थिक शक्तियां जब तक उसकी सत्ता को स्वीकार नहीं करेंगी तब तक तालिबान अलग – थलग ही रहेगा | जहाँ तक भारत का सवाल है तो भले ही उसके प्रवक्ता ने कितनी भी अच्छी बातें की हों लेकिन चीन और पाकिस्तान के साथ नजदीकी रखने के बाद वह भारत के प्रति लचीलापन दिखायेगा ये मान लेना अपने आप को धोखा देना होगा |
-रवीन्द्र वाजपेयी
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