Saturday 21 August 2021

विपक्षी एकता बाद में , पहले कांग्रेस खुद तो एकजुट हो ले



कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आमंत्रण पर गत दिवस आभासी माध्यम के जरिये विपक्षी दलों की बैठक में 19 दलों के नेतागण हुए शामिल हुए | उनमें शरद पवार , ममता बैनर्जी , उद्धव ठाकरे और एम . के. स्टालिन ही प्रमुख  कहे जा सकते हैं | हालाँकि जम्मू – कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारुख अब्दुल्ला के अलावा सीपीएम नेता सीताराम येचुरी भी बैठक का हिस्सा बने , लेकिन राष्ट्रीय राजनीति को दिशा देने  वाले राज्य  उ.प्र की प्रमुख विपक्षी पार्टियों में से न बसपा आई और न ही सपा | सपा की अनुपस्थिति के पीछे अखिलेश यादव के संबंधी की मृत्यु बताई गई जबकि बसपा ने सोनिया जी के आमंत्रण की उपेक्षा कर दी | दिल्ली के बाद पंजाब में बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभर रही आम आदमी पार्टी ने जानकारी  दी कि उसको बैठक का न्यौता ही नहीं दिया गया | बैठक में केंद्र सरकार के विरुद्ध विपक्षी लामबंदी पर सहमति बनने के साथ ही आगामी 20 से 30 सितम्बर तक पूरे देश में संयुक्त रूप से आन्दोलन किया जावेगा | बैठक का असली उद्देश्य 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता की बुनियाद रखना बताया गया  | बीते दिनों ममता बैनर्जी ने दिल्ली यात्रा के दौरान सोनिया जी और श्री पवार सहित अन्य विपक्षी दलों से भेंट करते हुए भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने की पहल की थी | उनके पहले पवार साहेब भी एक बैठक कर चुके थे किन्तु उसमें कांग्रेस मौजूद नहीं थी |  राहुल गांधी ने भी हाल ही में विपक्षी नेताओं को नाश्ते पर बुलाया | यद्यपि श्रीमती गांधी द्वारा गत दिवस आहूत बैठक को काफी महत्व मिला परन्तु ये केंद्र सरकार को चुनौती देने से ज्यादा कांग्रेस के जी – 23 नामक असंतुष्ट नेताओं को जवाब देने  के लिए चला गया दांव था | स्मरणीय है हाल ही में उक्त गुट के नेता कपिल सिब्बल ने अपने जन्मदिन के बहाने तमाम विपक्षी नेताओं को भोज पर बुलाया किन्तु  गांधी परिवार को बुलावा नहीं भेजा | श्री सिब्बल ने उस भोज का मकसद भाजपा विरोधी विपक्षी गठबंधन बनाना बताया था लेकिन गांधी परिवार ने उसके निहित उद्देश्य को समझते हुए जवाबी कदम उठाने का निर्णय किया और उसी के तहत श्रीमती गांधी द्वारा  संदर्भित बैठक बुलाई गई | वरना 2024 के पहले विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होंगे जिनमें से कुछ में क्षेत्रीय पार्टियां ही भाजपा का मुकाबला करने लायक हैं | उ.प्र को ही लें तो वहां बसपा और सपा दोनों में से एक भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा भाव नहीं देंगी  | इसी प्रकार  पंजाब , उत्तराखंड और गोवा में आम आदमी पार्टी कांग्रेस के लिए सिरदर्द बनने जा रही है | अकाली दल से तो वैसे भी उसका सांप और नेवले जैसा रिश्ता है | बंगाल में भी विधानसभा चुनाव कुछ महीने पहले ही  हुए हैं जिनमें कांग्रेस शून्य पर सिमटकर रह गई | ममता ने हाल ही में महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुष्मिता देव को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया जबकि पूर्व राष्ट्रपति स्व.प्रणव मुखर्जी के पुत्र अभिजीत पहले ही तृणमूल का दामन थाम चुके थे | इसी तरह शरद पवार महाराष्ट्र में कांग्रेस को शायद ही पनपने देंगे | जम्मू – कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का गठबंधन पहले भी  होता रहा है लेकिन उसकी हैसियत  कनिष्ठ भागीदार की ही है | राष्ट्रीय से क्षेत्रीय पार्टी में तब्दील होते जा रहे वामपंथी दलों का वैचारिक और मैदानी असर भी  अब पहले जैसा नहीं रहा | सोनिया जी की  बैठक में शरीक  हुईं शेष विपक्षी पार्टियों में से एक - दो को छोड़कर बाकी कांग्रेस की सहायक बनने की बजाय बोझ बन जाएँ तो आश्चर्य नहीं होगा | तेलंगाना से टी.आर.एस , आंध्र से वाई.एस.आर कांग्रेस  और उड़ीसा से बीजू जनता दल उक्त बैठक में आये नहीं अथवा उनको बुलाया नहीं गया ये स्पष्ट नहीं है | तेलुगु देशम के चन्द्र बाबू नायडू भी  कांग्रेस की संगत का दंड भोग चुके हैं | भले ही तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी द्रमुक कांग्रेस के साथ है लेकिन वह भी कब पलटी मार जाए ये कहा नहीं जा सकता | कर्नाटक  से जनता दल ( एस ) भले आ गयी लेकिन अब देवगौड़ा परिवार का प्रभाव ढलान पर है | इस तरह देखें तो दो - चार नाम छोड़कर एक भी ऐसा नेता या दल नहीं है जिसके साथ आने से श्रीमती गांधी  2004 वाला करिश्मा दोहरा सकें  जब अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार को अप्रत्याशित रूप से पराजय का सामना करना पड़ा | तब भाजपा के पास अपने  बलबूते सरकार बनाने लायक ताकत नहीं होती थी लेकिन 2014 और 2019 में उसने खुद ही बहुमत हासिल कर एक मिथक तोड़ दिया | अटल जी के पराभव के उपरान्त भाजपा ने तो नरेंद्र मोदी के तौर पर वैकल्पिक चेहरा देश के सामने रखा , वहीं अपने संगठन में भी युवाओं को महत्व देते हुए अगली पीढ़ी के  नेताओं को तैयार करने की प्रक्रिया भी शुरू कर  दी किन्तु कांग्रेस सोनिया जी से बढ़कर पहले राहुल और प्रियंका पर आकर रुकी और फिर वापिस उन्हीं के पास लौट आई | हालांकि कल की बैठक के बारे में भाजपा का ये कहना निरर्थक है कि गठबंधन की कोशिश कर कांग्रेस ने अपनी हार स्वीकार कर ली क्योंकि भाजपा पूर्ण बहुमत के बाद भी उ.प्र में छोटे  – छोटे दलों के साथ गलबहियां किये हुए है | मोदी सरकार में भी अनेक छोटे दलों के मंत्री हैं | लेकिन कांग्रेस के साथ ये समस्या है कि वह चंद नेताओं की पार्टी बनकर रह गई है और उनमें से भी बहुतायत उनकी है जो गांधी परिवार के इर्द – गिर्द मंडराने को ही राजनीति मान बैठे हैं | जी – 23 नामक गुट में भी जनाधारविहीन नेता ही हैं | ये सब देखते हुए कहना गलत न होगा कि कांग्रेस भले ही कोशिश कर  रही हो लेकिन 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए  उ.प्र में भाजपा को सत्ता से अलग करना होगा किन्तु आज की स्थिति में कांग्रेस के लिए वैसा कर पाना असम्भव है | सपा – बसपा जैसी क्षेत्रीय ताकतें भी उसे बोझ मान रही हैं | यद्यपि विपक्ष में बैठीं तमाम क्षेत्रीय पार्टियाँ भाजपा को तो हटाना  चाहती हैं किन्तु वे कांग्रेस को भी दोबारा ताकतवर नहीं होने देना चाहतीं क्योंकि उसका पुनरोदय उनको अस्ताचल की ओर भेज देगा | श्रीमती गांधी भी ये जानती हैं कि शरद पवार , ममता बैनर्जी , अखिलेश यादव , मायावती और तेजस्वी यादव जैसे नेता कांग्रेस को मजबूत नहीं होने देंगे |  जहां तक राहुल गांधी का सवाल है तो आज विपक्ष की राजनीति में एम .के स्टालिन ,अखिलेश और तेजस्वी यादव के अलावा अरविन्द केजरीवाल जैसे नेता युवा वर्ग को ज्यादा आकर्षित कर पा रहे हैं | कपिल सिब्बल का ये तंज वाकई मायने रखता है कि भला पूर्णकालिक अध्यक्ष के बिना भी कोई पार्टी चलती है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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