Friday 27 August 2021

तेल संपन्न अरब के बजाय अफीम संपन्न अफगानिस्तान होगा युद्ध का नया मैदान



अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर हुए विस्फोटों में तकरीबन 100 लोगों की मौत और सैकड़ों के घायल होने की खबर है | एक दर्जन से ज्यादा अमेरिकी सैनिक भी धमाके के शिकार होकर जान गँवा बैठे | इस घटना के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की उनके अपने देश में थू- थू होने लगी तब उन्होंने अंजाम भुगतने की धमकी तो दी किन्तु ये बात भी दोहरा दी कि 31 अगस्त तक अमेरिकी सैनिक पूरी तरह से अफगानिस्तान खाली कर देंगे | तालिबान ने तो पहले ही इस तारीख के बाद किसी भी तरह की मोहलत न देने की चेतावनी दे दी थी | उल्लेखनीय है काबुल हवाई अड्डा अभी तक अमेरिकी सेना के कब्जे में ही है और वही उड़ानों के आने - जाने संबंधी व्यवस्था का संचालन कर रही है | काबुल छोड़कर जाने के इच्छुक अफगानी या दूसरे देशों के नागरिक भी हवाई अड्डे के भीतर आने के बाद खुद को सुरक्षित मान रहे थे | लेकिन कल हुए धमाकों के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति भी ये कहने लगे कि वहां रहना खतरे से खाली नहीं है | लेकिन उनका ये कहना  कि अमेरिका हमलावार्रों की तलाश कर  बदला लेगा , इस बात का संकेत हो सकता है कि नाटो देश अफगानिस्तान में बने रहने का नया बहाना खोज रहे हों | लेकिन उक्त घटना इसलिए अचरज में डालने वाली है  क्योंकि तालिबान ने उसे आतंकी वारदात बताया है | उसके बाद ये खुलासा भी हुआ कि आई.एस.आई.एस ( खुरासान ) नामक गुट का इन विस्फोटों में हाथ था | यदि ये सच है तब अफगानिस्तान एक बार फिर आतंकवादी संगठनों की क्रीड़ास्थली  बनने जा रहा है | वैसे भी  पाकिस्तान के साथ लगी उसकी सीमा पर अनेक आतंकवादी गुटों के अड्डे हैं | तालिबान को अपना भाई बताने वाला पाकिस्तान भी इसे लेकर चिंतित है | गत दिवस की घटना में आई.एस.आई.एस ( खुरासान ) का हाथ होने से तालिबान के माथे पर भी पसीना छलछलाया होगा क्योंकि ये उसके एकाधिकार के लिए भी चुनौती है | अमेरिका को 31 अगस्त तक देश छोड़ देने की चेतावनी देकर तालिबान अपने वर्चस्व को साबित करना चाह रहा था किन्तु किसी और आतंकवादी संगठन द्वारा हवाई अड्डे के बाहर किया गया विस्फोट अफगानिस्तान में आने वाले  संकट का ऐलान है | आई.एस.आई.एस ( खुरासान ) द्वारा किये गये धमाकों का उद्देश्य अब तक स्पष्ट नहीं है | लेकिन जब काबुल हवाई अड्डा छोड़कर लगभग पूरे देश पर तालिबान का कब्ज़ा हो चुका हो तब उक्त विस्फोट किसे डराने के लिए किये गये ये बड़ा सवाल है | ये भी  गौरतलब है कि सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को व्यवस्थित तरीके से संपन्न  करने के लिए बनाई गयी संयोजन समिति के प्रमुख और अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई को गत दिवस घर में नजरबंद करते हुए उनकी सुरक्षा वापिस ले ली गई और वाहन भी छीन लिए गये | इन सब बातों की वजह से तालिबान द्वारा सत्ता हासिल होते ही अपनी छवि बदलने की खातिर किये गये वायदे हवा – हवाई साबित हो रहे हैं | पूरे देश में सशस्त्र लड़ाके लूटपाट, हत्या और बलात्कार जैसी वारदातें करने में जुटे हैं | कानून – व्यवस्था का नामो – निशान कहीं नहीं है | महिलाओं को इस्लाम के अनुसार सम्मान देने का आश्वासन भूलकर ये धमकी दी जा रही हैं कि वे घर पर ही रहें क्योंकि तालिबान लड़ाकों को उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाए इसकी तालीम नहीं  दी गई है | इस तरह की और भी बातें सामने आ रही हैं जिनके आधार पर तालिबान की सोच में आये बदलाव की उम्मीद खत्म हो चली है और पूरी दुनिया इस बात से भयभीत है कि आई.एस.आई.एस सहित अन्य इस्लामी आतंकवादी संगठनों का मुख्यालय कहीं  अफगानिस्तान न बन जाए | वैसे इस आशंका से तालिबान को भी खतरा है क्योंकि एक से अधिक आतंकवादी गुटों की मुल्क में मौजूदगी गृह युद्ध का कारण बन सकती है | इस बारे में ध्यान देने योग्य बात ये है कि अफगानिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक देश होने से आतंकवादी संगठनों के लिए धन का सबसे बड़ा स्रोत है | चूँकि तालिबान खुद भी आतंकवादी है अतः वह चाहकर भी अन्य संगठनों को रोकने की स्थिति में नहीं है | इसीलिये अब ये कहा जाने लगा है कि इस मुल्क के दुर्भाग्य का नया अध्याय शुरू हो गया है | बीते दो दशक में जो सुखद परिवर्तन हुए थे वे एक झटके में मिट्टी के घरोंदे की तरह बिखरकर रह गये हैं | कल हुए धमाकों ने सत्ता के लिए होने वाले संघर्ष का एक और मोर्चा खोल दिया है | बड़ी बात नहीं इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाने वाले संगठन  तालिबान से अपना हिस्सा मांगें क्योंकि पाकिस्तान के जरिये वे सब भी अमेरिका के विरुद्ध लड़ाई में उसके साथ थे | इस प्रकार काबुल में सत्ता के हस्तान्तरण के बाद शांति की उम्मीदें  नाउम्मीदी में बदलती दिखाई देने लगी हैं | बड़ी बात नहीं अफगानिस्तान पर अगला हमला सोवियत संघ से अलग हुए किसी मध्य एशियाई देश की तरफ से हो क्योंकि कबीलों में बंटे अफगानिस्तान में बड़ी आबादी पड़ोसी देशों के मूल की भी है जिनके पठानों से नस्लीय झगड़े चले आ रहे हैं | अमेरिकी राष्ट्रपति  द्वारा आई.एस.आई.एस के विरुद्ध मोर्चा खोल देने का आदेश अपनी सेना  को देने के बाद अफगानिस्तान में  ठीक वैसी ही कार्रवाई हो सकती है जैसी बीस साल पहले ओसामा बिन लादेन की खोज में  की गई थी | ये भी जानकारी आ रही है कि आई.एस.आई.एस ( खुरासानी ) नामक इस गुट को पाकिस्तान ने ही दूध पिलाकर पाला है और इसकी तालिबान से पुरानी दुश्मनी है | इसका आशय ये हुआ कि पाकिस्तान भी दोहरी नीति अपना रहा है क्योंकि तालिबान  सर्वशक्तिमान होते ही उसके  उन  सीमावर्ती इलाकों पर अपना कब्जा जमाने से बाज नहीं आयेगा  जिनमें उसके अड्डे काम कर रहे हैं और जिन्हें अफगानिस्तान का ही क्षेत्र वे मानते हैं | कुल मिलाकर ये लगने लगा है कि पश्चिम एशिया के तेल संपन्न देशों से खिसक कर अब दुनिया की ताकतें अफीम संपन्न अफगानिस्तान को युद्ध का मैदान बनायेंगी | यूँ भी नशे के कारोबारियों का हथियारों के सौदागरों से पुराना रिश्ता रहा है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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