Wednesday 11 August 2021

लोकतंत्र : अपराधियों का , अपराधियों द्वारा और अपराधियों के लिए !



राजनीति के  अपराधीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी चिंता व्यक्त्त करने के साथ ही ये भी बता दिया कि वह इस मामले में असहाय है | सरकार के अधिकार क्षेत्र में दखल देने से परहेज करते हुए उसने कहा कि वह केवल कानून बनाने वालों की अंतरात्मा से अपील कर सकता है |  हालाँकि न्यायालय ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि राजनीतिक दल जिन उम्मीदवारों को टिकिट देते हैं उनके आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी का समुचित प्रचार नहीं किया जाता | भविष्य में 48 घंटे के भीतर तत्सम्बन्धी जानकारी देना अनिवार्य होगा | राज्य सरकारों द्वारा जनप्रतिनिधियों पर चल रहे  आपराधिक  प्रकरण वापिस लेने के पूर्व सम्बन्धित उच्च न्यायालय की अनुमति को भी सर्वोच्च न्यायालय ने  अनिवार्य कर दिया है | राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले  तत्वों की बढ़ती संख्या पर तीखी टिप्पणी करते हुए उसने  कहा कि ऐसे  नेताओं को क़ानून बनाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए | देश की  सर्वोच्च न्यायिक आसन्दी से निकली उक्त सभी बातें पूरे देश के संज्ञान में हैं | आम आदमी तक ये देखकर दुखी और परेशान है कि उसके लिए  साफ़ – सुथरी छवि के जनप्रतिनिधियों को चुनना कठिन होता जा रहा है | अनेक सीटों पर प्रमुख उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि के होने से नागनाथ और सांपनाथ में से किसी एक का चयन करना  मजबूरी बन जाती है | नेताओं द्वारा किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने के लिए अपराधी तत्वों का सहयोग लेने से राजनीति का अपराधीकरण प्रारम्भ हुआ | शुरू – शुरू में नेताओं की मदद करने वाले अपराधियों को बाद में ये लगने लगा कि जब वे दूसरों को चुनाव जितवा सकते हैं तब क्यों न खुद ही विधानसभा और लोकसभा में जाकर बैठ जाएँ | धीरे – धीरे  राजनीति और अपराधियों में इतना घालमेल हो गया कि उनमें अंतर करना कठिन होने लगा | सर्वोच्च न्यायालय काफी पहले से इस विषय में अपनी चिंता व्यक्त करता आ रहा है | चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड का उल्लेख नामांकन पत्र में किये जाने के साथ ही  समाचार माध्यमों के जरिये उनकी जानकारी मतदाताओं को देने की बाध्यता भी उत्पन्न की | लेकिन कानून की नजर में कोई आरोपी तब तक अपराधी  नहीं कहलाता  जब तक न्यायालय में  दोषी साबित न हो जाये | इसी प्रावधान का लाभ लेते हुए कुख्यात अपराधी तत्व चुनाव मैदान में उतरने लगे और मतदाता भी उनके खौफ से बचने के लिए उनको जिताने मजबूर होते गये | हत्या , अपहरण , डकैती जैसे संगीन मामलों में आरोपी होने के कारण जेल में बंद एक सांसद को कड़ी सुरक्षा के बीच  राष्ट्रपति चुनाव में मतदान हेतु  संसद भवन लाये जाने जैसे दृश्य लोकतंत्र को कलंकित करने के लिए पर्याप्त हैं | सर्वोच्च न्यायालय  के इस अभिमत से भला कौन असहमत होगा कि आपराधिक छवि वाले नेताओं को कानून बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती | लेकिन ये सवाल  भी उठता  है कि आपराधिक छवि का निर्धारण कौन और कैसे करेगा ? कुख्यात डकैत स्व. फूलन देवी के उ.प्र की मिर्जापुर सीट से लोकसभा के लिए चुने जाने का मुख्य कारण वैसे तो  उस क्षेत्र में उनके सजातीय  मल्लाहों का बाहुल्य होना था | लेकिन समाजवादी पार्टी  उम्मीदवार न बनाती तब शायद वे नहीं जीत पातीं | हालांकि अनेक कुख्यात अपराधी सरगना निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर भी जीतकर आते रहे हैं लेकिन संसद और विधानसभाओं ही नहीं वरन नगरीय निकायों तक में प्रमुख राजनीतिक दल उनको उम्मीदवारी देने लगे  हैं | संसदीय लोकतंत्र के लिए ये स्थिति निश्चित रूप से शोचनीय है क्योंकि जिस देश की कानून बनाने वाली संस्थाओं में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग बैठने लगें वहां के समाज में सज्जनों की स्थिति दांतों के बीच जीभ जैसी होकर रह जाती है | क्षेत्रीय दलों पर अक्सर ये आरोप लगा करता था कि वे अपराधी  तत्वों को चुनाव में उम्मीदवार बनाते हैं , परन्तु  अब तो भाजपा और कांग्रेस  जैसे राष्ट्रीय दल भी आपराधिक व्यक्तियों को सांसद और विधायक बनाने में संकोच नहीं करते क्योंकि उनके लिए उम्मीदवार की छवि से ज्यादा उसकी चुनाव जीतने की क्षमता  महत्वपूर्ण होने लगी है | पहले धनकुबेरों को इसी वजह से उम्मीदवार बनाया जाता था लेकिन उसके बाद बात आपराधिक तत्वों तक जा पहुँची जिसके कारण राजनीति का चेहरा बदसूरत होते – होते अंततः विकृत हो गया | सर्वोच्च न्यायालय ने गत दिवस जो पीड़ा व्यक्त की वह सही मायनों में उन करोड़ों देशवासियों की  अभिव्यक्ति है जो लोकतंत्र की पवित्रता को बचाए रखने के लिए निरंतर चिंता में डूबे रहते हैं | अमेरिका के महान राष्ट्रपति स्व. अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए कहा था कि वह  जनता की , जनता द्वारा और जनता के लिए बनी शासन प्रणाली है | लेकिन हमारे देश में सत्ता की  वासना ने उस परिभाषा को बदलकर अपराधियों की  , अपराधियों द्वारा और अपराधियों के लिए प्रचलित शासन प्रणाली बनाने की परिस्थिति निर्मित कर दी है | ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय की नसीहतों पर अमल होने की उम्मीद करना व्यर्थ है क्योंकि उसकी  स्थिति घर के उस बुजुर्ग की तरह हो गई  है जिसकी बात सुनने का नाटक तो सभी करते हैं लेकिन मानता कोई नहीं है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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