Friday 20 August 2021

तालिबान को चरित्र प्रमाणपत्र देने में जल्दबाजी गलत : कूटनीति में धैर्य सबसे बड़ा हथियार है



 क्रिकेट के खेल में अच्छा बल्लेबाज शॉट लगाने के लिए कमजोर गेंद का इंतजार करता है | महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर  नये बल्लेबाजों को ये नसीहत देते रहे  हैं कि गेंद के पीछे भागने की बजाय उसके बल्ले तक आने की प्रतीक्षा करना चाहिए | यही बात कूटनीति में भी बेहद कारगर है | इसीलिये किसी भी घटना के बारे में प्रतिक्रिया व्यक्त करते समय जल्दबाजी से बचा जाता है | दो देशों के बीच राजनयिक संबंधों में भी धैर्यपूर्वक आगे बढ़ने की नीति अपनाई जाती है | अति उत्साह में दिया गया आश्वासन और आकस्मिक नाराजगी दोनों कूटनीति के लिहाज से नुकसानदेह होते हैं | अफगानिस्तान में हुए हालिया सत्ता परिवर्तन के बारे में भारत सरकार द्वारा अब तक किसी भी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं किये जाने की  पूर्व विदेश मंत्री और विदेश सचिव नटवर सिंह , पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और  वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक ने आलोचना करते हुए कहा है कि भारत को तत्काल तालिबान से बातचीत कर कूटनीतिक सम्बन्ध कायम करना चाहिए जिससे भविष्य में वहां भारत के हित सुरक्षित रहें | उनका इशारा अतीत में तालिबान की सत्ता के साथ हमारे कूटनीतिक रिश्ते न होने से कंधार विमान अपहरण कांड के समय बंधकों की रिहाई में आई अड़चनों की तरफ था | इस तरह का सुझाव और भी कुछ लोगों की तरफ से आया है | कतिपय मुस्लिम नेताओं के अलावा मुनव्वर राणा जैसे शायर ने भी तालिबान की तारीफ़ में कसीदे पढ़ते हुए उनको जीत की बधाई देने के साथ ही इस बात का प्रमाण पत्र भी जारी कर दिया कि नये तालिबान शासक पुराने वालों से सर्वथा अलग होने से कट्टर नहीं हैं तथा भारत के प्रति उदार रहेंगे | उल्लेखनीय है काबुल पर तालिबान का आधिपत्य होते ही भारत ने अपने राजदूत सहित दूतावास के सारे कर्मचारियों को वापिस बुलवा लिया | हालाँकि तालिबान की ओर से आयोजित पहली पत्रकार वार्ता में काश्मीर को भारत – पाकिस्तान के बीच का मामला बताने के साथ ही ये आश्वासन भी दिया कि भारत द्वारा अफगनिस्तान में किये जा रहे काम जारी रखे जा सकते हैं किन्तु  उसके फौरन बाद ही ये खबर भी आ गई कि तालिबान के हुक्मरानों ने भारत के साथ होने वाले व्यापार को पूरी तरह रोक दिया है |  इससे जाहिर हो गया कि तालिबान की कथनी और करनी विरोधाभासी है | भारत में बैठे तालिबान के हमदर्द और प्रशंसक उसके ह्रदय परिवर्तन के बारे में चाहे जो कह रहे हों लेकिन वहां  से आ रही खबरें न सिर्फ भारतीय अपितु समूचे विश्व समुदाय को विचलित कर रही हैं | काबुल में ही तालिबान लड़ाकों ने आतंक का राज  स्थापित कर रखा  है | खुलेआम लूटखसोट होने के साथ ही बात – बात में गोली मारने की घटनाएँ सामने आ रही हैं | राजधानी से कुछ दूर निकलते ही तालिबान के लड़ाकों का राक्षसी रवैया नजर  आने लगता है | मासूम लड़कियों तक को हवस का शिकार बनाने के साथ ही युवतियों  को घरों से जबरन उठाकर उनकी नीलामी की जा रही है | पुरुषों से जान बख्शने की कीमत उनकी पत्नी के रूप में वसूली जा रही है | राह चलते लोगों को रोककर कीमती सामान छुड़ा लेना आम हो गया है | तालिबान के हथियारबंद गुंडे देश छोड़कर जाने के इच्छुक लोगों को काबुल हवाई अड्डे के भीतर नहीं जाने दे रहे | ऐसी ही घटना में एक महिला को जब हवाई अड्डे में जाने से रोका गया तो उसने  अपनी गोद में से बच्ची को ये कहते हुए भीतर फेंक दिया कि मेरा जो होगा वह होगा , कम से कम से ये तो दरिंदों से बच जायेगी | ये सब देखते हुए भी जो राजनेता , बुद्धिजीवी , पत्रकार और मुस्लिम  समुदाय के स्वयंभू प्रवक्ता भारत सरकार की चुप्पी पर सवाल उठा रहे हैं उनकी अक्ल पर तरस खाएं या नीयत पर शक करें ये फिलहाल तय नहीं किया जा सकता किन्तु इतना तो मानना ही पड़ेगा कि या तो इन्हें तालिबान की असलियत नहीं पता या फिर ये सरकार के विरोध की आड़ में राष्ट्रीय हितों को नजरंदाज कर रहे हैं | मुनव्वर राणा ने तो तालिबान की तुलना रास्वसंघ और उसके अनुषांगिक संगठनों से कर अपनी खीझ निकाली परन्तु कांग्रेस के प्रवक्ता द्वारा भी सरकार की चुप्पी पर सवाल खड़े करना चौंकाने वाला है क्योंकि दशकों तक  देश की सत्ता में रही पार्टी को कम से कम इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि तालिबान के बदले हुए चरित्र की पुष्टि करने में समय लगेगा | और फिर भारत के लिए अफगानिस्तान में हुआ सत्ता परिवर्तन केवल उसका आंतरिक मसला न होकर हमारी सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा उत्पन्न करने वाला भी हो सकता है क्योंकि भारत विरोधी अनेक  इस्लामी आतंकवादी संगठन उस देश की धरती पर पल रहे है जिन्हें तालिबान का खुला  समर्थन और संरक्षण  है | इसके अलावा भारत के दो सबसे बड़े घोषित दुश्मन चीन और पाकिस्तान जिस तरह से तालिबान को हाथों – हाथ उठा रहे हैं वह देखते हुए भारत का अफगानिस्तान की नई सत्ता से रिश्ता बनाने में फूंक – फूंककर कदम उठाना पूरी तरह सही और बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन है | इस बारे में ये बात  भी विचारणीय है कि तालिबान की तरफ से भी भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने जैसी कोई पहल नहीं हुई | ऐसे में उसके द्वारा शराफत और मानवीयता का जो दावा किया जा रहा है उसकी असलियत परखे बिना कूटनीतिक रिश्ते कायम कर लेना धोखे और शर्मिंदगी का कारण बन सकता है | कूटनीति की साधारण समझ रखने वाला भी ये मानेगा कि अफगानिस्तान के नए सत्ताधीश तालिबान चाहे कितने भी सुधरे हुए हों लेकिन चीन और पाकिस्तान की संगत में रहने के बाद  वे भारत के प्रति भी सद्भावना रखेंगे ये भरोसा नहीं होता | ये सब देखते हुए केंद्र सरकार द्वारा समूचे घटनाक्रम और उससे पैदा हुईं परिस्थितियों का सूक्ष्म अध्ययन करने के उपरांत ही कोई कदम उठाने की  रणनीति समयानुकूल है | और फिर कूटनीति परदे के पीछे चलने वाली सतत प्रक्रिया है जिसे रोज – रोज सार्वजानिक नहीं किया जा सकता |

 -रवीन्द्र वाजपेयी

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