Thursday 12 August 2021

सबसे घटिया सांसदों का भी चयन हो : संसद पर होने वाले खर्च का औचित्य सवालों के घेरे में



 
राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू सदन में ये कहते हुए रो पड़े कि बीते दिन हुए हंगामे से दुखी होकर रात भर नहीं सो सके | वहीं लोकसभा के अध्यक्ष ओम  बिरला ने सत्र स्थगित करने के बाद प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी , कांग्रेस की कार्यकारी  अध्यक्ष सोनिया गांधी , लोकसभा में नेता अधीर रंजन चौधरी सहित विपक्ष के बाकी नेताओं को एक साथ बिठाकर भविष्य में  सदन की कार्यवाही सुचारु तरीके से संचालित करने के बारे में चर्चा की | श्री नायडू की नाराजगी से ये संकेत भी मिला कि ज्यादा हंगामा करने वाले कुछ  सदस्यों के विरुद्ध वे कड़ी कार्रवाई कर सकते हैं | संसद के मानसून सत्र में कहने को तो सरकार द्वारा अनेक विधेयक पारित करवा लिए गये लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग संशोधन को छोड़कर बाकी  किसी पर भी न बहस हुई और न चर्चा | दोनों सदनों में आखिरी दिन तक सिवाय हंगामे के कुछ नहीं हुआ | सत्र की समाप्ति  के बाद एक बार फिर बताया जा रहा है संसद को चलाने में प्रति मिनिट  और पूरे सत्र पर कितने करोड़ खर्च हो गए | वैसे संसद में हंगामा , बहिर्गमन , नारेबाजी नई बात नहीं है , जिसकी देखा - सीखी विधानसभाओं में भी वैसा ही नजारा देखने मिलने लगा | सदन नहीं चलने देने के लिए सत्ता पक्ष और विरोधी दल एक दूसरे को कठघरे में खड़ा करते हुए खुद को बेकसूर बताते हैं लेकिन असलियत यही है कि दोनों इस मामले में बराबर के दोषी हैं | संसद के मानसून सत्र को ही लें तो  विपक्ष ने पेगासस जासूसी मामले में चर्चा करवाने की जिद पकड़कर सदन की कार्यवाही नहीं चलने दी | दूसरी तरफ सत्ता पक्ष ने उसकी इस कमजोरी को भांपकर बहस नहीं करवाने की जो रणनीति अपनाई उसमें विपक्ष उलझ गया | उसकी सबसे बड़ी विफलता ये रही कि सरकार  ने तो अपना विधायी कार्य पूरी तरह संपन्न करवा लिया और बड़ी ही चतुराई से हंगामे के बीच भी आनन – फानन  तमाम विधेयक सदन से विधिवत पारित करवा लिए किन्तु विपक्ष न जासूसी के मुद्दे पर बहस करवा सका और न ही कृषि कानून , कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुई जनहानि , पेट्रोल – डीज़ल के अलावा अन्य जरूरी चीजों की महंगाई जैसे मुद्दों पर ही  सरकार को घेर सका | यदि वह पेगासस प्रकरण को पकड़कर नहीं बैठा होता तब  सरकार को बात – बात पर घुटनाटेक करवा सकता था | बावजूद इसके कि लोकसभा के साथ ही राज्यसभा में भी सरकार के पास बहुमत होने से वह विपक्ष के चक्रव्यूह से सुरक्षित बाहर निकलने में सक्षम है , विपक्ष के पास शब्दबाणों से हमले की जो ताकत है उसके उपयोग से वह जनता को अपनी मौजूदगी का एहसास करवा सकता था | इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि आजकल सत्ता पक्ष बहुमत के बाद भी सदन में बहस से बचता है और मौका मिलते ही सत्रावसान करने की चाल चलकर विपक्ष को असहाय साबित कर देता है | संसद के मानसून सत्र का चलना न चलना एक तरह से बराबर ही रहा | विपक्ष के पास अब सरकार को कोसने के अलावा और कुछ बचा ही नहीं है किन्तु संसद के माध्यम से जनता की तकलीफों को  पेश करने का अवसर गंवाने के पीछे उसकी अपरिपक्व और गैर जिम्मेदार नीति ही रही | अब सवाल ये है कि  जनता के कर से चलने वाली संसद को ठप्प करने का ये सिलसिला कब तक जारी रहेगा  ? जो  सदस्य लोकतंत्र का मंदिर कहलाने वाली संसद या विधानसभा की गरिमा तार – तार करते हैं उनको महज एक या कुछ दिन के लिए निलम्बित करने का रत्ती भर भी असर नहीं होता | ये कहना अच्छा तो नहीं लगता लेकिन कुछ सदस्य बेशर्मी की हद तक उद्दंड हो चले हैं | उनकी पार्टी के नेता उन्हें न टोकते हैं और न ही रोकने की कोशिश करते हैं | जिससे लगता है हंगामेबाजों को प्रोत्साहन मिलता है | गत दिवस लोकसभा अध्यक्ष के बुलावे पर सोनिया जी सहित बाकी विपक्षी  नेता भले ही आ  गये हों लेकिन किसी ने भी सत्र का अधिकांश समय बर्बाद होने पर अफसोस जताया हो , ऐसा सुनने  नहीं मिला | लोकतंत्र के रखवालों का ये रवैया  कुत्ते की पूंछ के सीधे नहीं होने जैसा है | जो मतदाता सांसदों और विधायकों  का चुनाव करते हैं  उनमें से कोई सदन की दर्शक दीर्घा में नारेबाजी या हंगामा कर दे तो उसे जेल भेज दिया जाता है | लेकिन उसके चुने हुए सांसद या विधायक गर्भगृह में नारेबाजी  करें , आसंदी पर कागज  फेंकें , विधेयक छीनकर फाड़ दें और टेबिल पर खड़े होने जैसा आशोभनीय आचरण  करें तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा  कुछ समय तक के लिए निलम्बित किये जाने के अलावा और कुछ नहीं किया जाता | संसद में हर साल सर्वश्रेष्ठ सांसद चुने जाते हैं और उनका सम्मान भी किया जाता है | लेकिन अब समय आ गया है कि सदन के भीतर सबसे घटिया व्यवहार  करने  वाले सांसदों को चुनकर उनकी सार्वजनिक निंदा जैसा आयोजन भी किया जाना चाहिए | संसद का सत्र यदि इसी तरह चलाना है तब बेहतर है उसे एक – दो दिन के लिए ही बुलाया जाए जिससे संवैधानिक बाध्यता पूरी हो सके और उसी में सरकार अपने सभी विधेयक पटल पर रखकर बहुमत  से पारित करवा ले | रही विपक्ष की बात तो उसे जब सदन में चर्चा करनी ही नहीं तो करोड़ों की बर्बादी का औचित्य ही क्या  है ? 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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