Saturday 14 August 2021

अपनी बनाई जंजीरों से मुक्त हुए बिना आज़ादी अधूरी रहेगी



स्वाधीनता का ७५ वां वर्ष कल से प्रारंभ हो जाएगा | इस हेतु सरकारी स्तर पर काफी पहले से तैयारियां की जा रही हैं | १५ अगस्त को लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनकल्याण की कुछ योजनाओं के साथ ही कोरोना काल के बाद देश के समक्ष  उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के बारे में भी नीतिगत घोषणाएं कर सकते हैं | जैसा कि होता आया है ,  मौजूदा हालातों में विश्व रंगमंच पर  भारत की भूमिका के बारे में भी वे अपनी सरकार का दृष्टिकोण देश और दुनिया के सामने रखेंगे | घरेलू मोर्चे पर जो समस्याएँ हैं उनके समाधान के बारे में भी जनता उनसे सुनना चाहेगी |  आगामी वर्ष  भारत के लिए भावनात्मक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है |  ७४ साल पहले प्राप्त आजादी  के बाद  सामाजिक और आर्थिक तौर पर हुए  परिवर्तनों की समीक्षा के साथ ही भविष्य की कार्ययोजना बनाना भी आगामी वर्ष की विषय सूची में होगा | बीते ७४ वर्ष से हमारा देश संसदीय प्रजातंत्र  से संचालित है | आज का विश्व कमोबेश इस व्यवस्था को अपना चुका है जिसमें हर नागरिक को अपना मत व्यक्त करने की आजादी हासिल है | वयस्क मताधिकार के जरिये करोड़ों मतदाता ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक में अपने प्रतिनिधि भेजते हैं | इस बात का ध्यान हमारे संविधान निर्माताओं ने रखा था कि समाज के उस तबके को भी निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जावे जो सदियों से उपेक्षित और शोषित रहा और उसे किसी भी प्रकार से अधिकार संपन्न नहीं होने  दिया गया | इसका लाभ ये हुआ कि वंचित और शोषित वर्ग का आत्मविश्वास बढ़ा और उसमें आत्मसम्मान के साथ जीने की इच्छा  जागी | सर्वविदित है कि जातिवाद के नाम पर ऊंच - नीच का भेद भारतीय समाज को टुकड़ों – टुकड़ों में बांटने का कारण बना जिसका लाभ पहले मुगलों और बाद में अंग्रेजों ने उठाते हुए सैकड़ों साल तक हमें गुलाम बनाकर रखा | महात्मा गांधी ने सामाजिक समरसता का अनुष्ठान प्रारम्भ करते हुए  छुआछूत रूपी कलंक को धोने का  जो ऐतिहासिक प्रयास किया वह बहुत  बड़ा सामाजिक परिवर्तन था | आजादी  के बाद प्रख्यात समाजवादी चिंतक  डा. राममनोहर लोहिया ने तो जाति तोड़ो जैसा  नारा तक दिया | इस सबके पीछे  सोच यही थी कि स्वाधीन भारत  एक ऐसा समाज होगा जिसमें जातिगत आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं रहेगा और विकास के अवसरों पर कुछ लोगों का एकाधिकार नहीं रहेगा | एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था की  इस कल्पना को मूर्तरूप देने के लिए संविधान में ही अनेक प्रावधान कर दिये गए थे | कालान्तर में समयानुकूल उनका और विस्तार भी किया गया | आरक्षण नामक इस व्यवस्था का उद्देश्य बहुत ही पवित्र और दूरदर्शितापूर्ण था | सदियों से प्रताड़ना सहते आये वर्ग को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास भारत की तकदीर और तस्वीर बदलने में सक्षम था | इसके प्रणेताओं को उम्मीद रही होगी कि आजादी के बाद एक – दो दशक के भीतर ऐसे  नए समाज की रचना की जा सकेगी जो जाति की बेड़ियों को तोड़कर मानवीयता पर आधारित होगा और जिसमें किसी एकलव्य का अंगूठा नहीं काटा जावेगा |  लेकिन आजादी के ७५ वें वर्ष में प्रविष्ट होते हुए ये सवाल हर जिम्मेदार नागरिक को झकझोर रहा है कि क्या हम वह समाज बना पाए ? और उसका उत्तर खोजने पर नजर आता है कि जाति नामक जिस जाल से देश को निकालने का लक्ष्य रखा गया था वह और भी घना होता जा रहा है और उससे निकलने के  जितने भी जतन आज तक हुए वे या तो आधे रास्ते ही दम तोड़ बैठे या फिर लक्ष्य से भटक गये | अछूतोद्धार और जाति तोड़ो का नारा लगाने वालों के अनुयायियों ने जातियों के दायरे को और बढ़ा दिया | जातियों के भीतर उपजातियां , पिछड़ों के बीच अति पिछड़े और दलितों में महादलित तलाशकर सामाजिक एकता को मजबूत करने की बजाय  छिन्न – भिन्न करने का जो महापाप हुआ  उसकी वजह से आरक्षण नामक उपाय भी  सियासत के मकड़जाल में फंसकर सामाजिक वैमनस्य और ईर्ष्या का कारण बनने लगा  | अनु. जाति और जनजाति से शुरू हुई बात कहाँ तक आ पहुँची और आगे कहाँ जाकर रुकेगी ये कोई नहीं  बता पा रहा | विदेशी सत्ता से तो हमने आजादी हासिल कर ली  किन्तु हम अपनी ही बनाई जंजीरों की पकड़ से आजाद  नहीं हो पाए ,  जो किसी विडंबना से कम नहीं है | आज देश उस दौर में आ खड़ा हुआ है जब पूरी दुनिया उसकी तरफ उम्मीदों के साथ देख रही है | महर्षि अरविन्द और स्वामी विवेकानंद ने आजादी के काफी पहले भविष्यवाणी कर दी थी कि २१ वीं सदी भारत की होगी और वह एक बार फिर दुनिया को दिशा दिखायेगा | बीते ७४ सालों में देश  ने हर क्षेत्र में अपने कदम आगे बढ़ाये हैं | ज्ञान – विज्ञान का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिसमें हमारी उपस्थिति न हो | सपेरे और मदारी अब हमारी पहिचान नहीं रहे | धरती के गर्भ से अन्तरिक्ष की अनन्त ऊंचाइयों तक भारत की प्रशस्ति गुंजायमान है | आर्थिक और सामरिक दृष्टि से हमें विश्व के विकसित देशों के समकक्ष माना जाता है | देश की युवा प्रतिभायें पृथ्वी  के प्रत्येक हिस्से में अपनी सम्मानजनक मौजदूगी से प्रभावित कर रही हैं | भारत के प्रति बढ़ते वैश्विक विश्वास के प्रतीकस्वरूप विदेशी मुद्रा का भण्डार निरंतर बढ़ता ही जा रहा है | केन्द्र में राजनीतिक स्थायित्व से भी अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत को महत्व मिलने लगा है | लेकिन जातियों में विभाजित होते जा रहे देश के भविष्य को लेकर जो चिंताएं मन – मष्तिष्क में उठ रही हैं वे डराने वाली हैं | आजादी की ७५ वीं जयंती का जश्न कल से शुरू होने जा रहा है किन्तु सबसे बड़ा और यक्ष प्रश्न ये है कि क्या भारतीय समाज जातीय संघर्ष में फंसकर उसी तरह विभाजित तो नहीं  होने जा रहा जिसकी वजह से अतीत में  विदेशी शक्त्तियाँ यहाँ आने का दुस्साहस कर सकीं | आज भी  देश शत्रुओं से घिरा हुआ है जो हमारी किसी भी कमजोरी का लाभ उठाने में नहीं चूकेंगे | जातियों के नाम पर  पैदा हुए नेता कबीलों के सरदारों की तरह आचरण करते दिख रहे हैं और राजनीति उन्हें सिर पर बिठाने पर आमादा है क्योंकि वे वोट बैंक के ठेकेदार जो  हैं | दुर्भाग्य से बीते सात दशक में चुनाव जीतने के लिए किये जाने हथकंडों ने बहुत नुकसान किया जिसकी वजह से भ्रष्टाचार जड़ों तक जा पहुंचा है | ये अवसर उन विसंगतियों को दूर करने के लिए कार्ययोजना बनाने का है जिनके कारण हमें आज भी आजादी अधूरी प्रतीत होती है | आइये , हम सब मिलकर उस भारत के निर्माण का संकल्प लें जो सामाजिक एकता और सद्भाव के साथ आगे बढ़ते हुए विश्व का मार्गदर्शन कर सके | जरूरत है अपनी उन अंतर्निहित शक्तियों और गुणों के पुनर्जागरण की जिनको भुला देने के कारण हमें गुलामी का जहर पीना पड़ा था |

स्वाधीनता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ |

 रवीन्द्र वाजपेयी



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