संसद के मानसून सत्र में पहले दिन से ही विपक्ष हंगामे पर उतारू है | पेगासस जासूसी मामले को लेकर वह संसद के कामकाज में लगातार व्यवधान डाल रहा है | इस वजह से रोज सदन की कार्रवाई स्थगित हो जाती है | ठीक से बहस नहीं हो पाने के कारण अनेक विधेयकों को बिना चर्चा के ही पारित कर दिया गया | गत दिवस राज्यसभा में जब लद्दाख में केन्द्रीय विश्वविद्यालय खोलने का विधेयक ध्वनि मत से पारित किया गया तब भी विपक्षी सदस्य बहिर्गमन कर रहे थे | इसी तरह लोकसभा में भी हंगामे के बीच ही तमाम महत्वपूर्ण विधेयकों को मंजूरी दे दी गई | लेकिन जब सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग ( ओबीसी ) सम्बन्धी संशोधन विधेयक पेश किया तब कांग्रेस ने इसका समर्थन करने का ऐलान कर दिया | सदन में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने विपक्ष की जिम्मेदारी का हवाला देते हुए उक्त विधेयक को पारित करवाने में सरकार का साथ देने का आश्वासन दे डाला | बाकी विपक्षी पार्टियाँ भी इसको पारित कराने के लिए तैयार हैं जिसके कानून बन जाने पर राज्य सरकारें अन्य पिछड़ी जातियों की सूची स्थानीय आधार पर बना सकेंगी | सर्वोच्च न्यायालय द्वारा महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को अवैध करार दिए जाने के बाद जो स्थितियां उत्पन्न हुईं उनको दृष्टिगत रखते हुए केंद्र सरकार यह विधेयक लेकर आई है | हालाँकि इसके पीछे पिछड़ी जातियों के उत्थान का उद्देश्य न होकर विशुद्ध वोट बैंक की राजनीति है | अन्य पिछड़ी जातियों की जनगणना कराये जाने के चौतरफा दबाव के साथ ही उ.प्र विधानसभा के आगामी चुनाव में पिछड़ी जातियों के वोटों की फसल काटने की गरज से उक्त विधेयक इसी सत्र में पेश करने की जल्दबाजी की गई | इसके पारित होने के बाद चुनाव वाले राज्य नई जातियों को अन्य पिछड़ी जातियों के सूची में शामिल कर उनका राजनीतिक तुष्टीकरण कर सकेंगे | सवाल ये है कि बाकी जो विधेयक संसद में हंगामे के दौरान बिना किसी भी तरह की चर्चा के ही पारित हो गये, उनके बारे में विपक्ष इतना लापरवाह क्यों रहा ? क्या उनका देश और जनता से कोई सरोकार नहीं था ? लद्दाख जैसे पिछड़े इलाके में केंद्रीय विवि खोलने संबंधी विधेयक का समर्थन करने की बजाय विपक्ष द्वारा सदन छोड़कर चला जाना बेहद गैर जिम्मेदाराना कदम ही कहा जाएगा | ऐसे में अधीर रंजन का ये कहना कि हम विपक्ष की जिम्मेदारी समझते हैं , हास्यास्पद है | अन्य पिछड़ी जातियां चूँकि अब वोट बैंक का हिस्सा बन चुकी हैं और उन जाति समूहों के नेता वोटों के ठेकदार हैं इसलिये न सिर्फ कांग्रेस अपितु शेष विपक्षी दल भी पैगासस जासूसी मामले में बहस की जिद पूरी नहीं होने के कारण संसद की कार्यवाही बाधित करने के निर्णय से पीछे हटकर अन्य पिछड़ा वर्ग संशोधन विधेयक पर सरकार का साथ देने एक पैर पर खड़े नजर आ रहे हैं | मौजूदा सत्र में केंद्र सरकार ने अनेक ऐसे विधेयक पारित करवाए जिनका आर्थिक और सामजिक क्षेत्र पर काफी असर पड़ेगा | विपक्ष ने इन विधेयकों का न तो समर्थन किया और न ही विरोध क्योंकि वह अपनी मांग पूरी हुए बिना सदन को न चलने देने की रणनीति पर चलता रहा | चूँकि उन विधेयकों का चुनावी राजनीति से सीधा सम्बन्ध नहीं है इसलिए विपक्ष की नजर में वे महत्वहीन समझे गए परन्तु पिछड़ी जातियों के बारे में ज्योंही संशोधन विधेयक लाया गया त्योंही अकड़ खत्म हो गई | इस प्रकार उसकी दोहरी भूमिका एक बार पुनः उजागर हो गई | होना तो ये चाहिए था कि जितने भी विधेयक इस सत्र में पारित हुए उन पर विपक्ष का अभिमत भी देश को ज्ञात होता | उसे इस बात का जवाब देना चाहिए कि क्या उसकी जिम्मेदारी केवल अन्य पिछड़ा वर्ग से जुड़े संशोधन विधेयक को पारित करवाना है और उसके पूर्व पारित हुए लगभग दर्जन भर विधेयक अनुपयोगी या अर्थहीन थे ?
- रवीन्द्र वाजपेयी
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